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पंचमेरू विधान
पंचमेरू विधान की आरती
-आर्यिका चन्दनामती
ऊँ जय श्री मेरूजिनं, स्वामी जय श्री मेरूजिनं।
ढाई द्वीपों में हैं-2, पंचमेरू अनुपम।। ऊँ जय।।
मेरू सुदर्शन प्रथम द्वीप के, मध्य विराज रहा।।स्वामी.।।
सोलह चैत्यालय से-2, पीते परमामृत।। ऊँ जय।।2।।
अपर धातकी अचलमेरू से, सुन्दर शोभ रहा।।स्वामी.।।
तीर्थंकर जन्माभिषेक भी-2, करते इन्द्र जहा।। ऊँ जय।।3।।
पुष्करार्ध के पूर्व अपर में, मेरू द्वय माने।।स्वामी.।।
मंदर विद्यन्माली-2, नामों से जाने।। ऊँ जय।।4।।
पंचमेरू के अस्सी, जिनमन्दिर शोभें।स्वामी.।
इस सौ अठ जिनप्रतिमा, सुर नर मन मोहें।। ऊँ जय।।5।।
जो जन श्रद्धा रूचि से, प्रभु आरति करते।स्वामी.।
वही ’’चंदनामति’’ क्रम से, भव आरत हरते।। ऊँ जय.।।6।।
पंचमेरू का भजन
-आर्यिका चन्दनामती
श्री पंचमेरू का पाठ, करो सब ठाट बाट से प्राणी।
जिनभक्ती भक्ति निशानी।।
ढाई द्वीपों में पांच मेरू,
जिनमें सबसे पहला सुमेरू।।1।।
प्रभू जन्म न्हवन करते गिरि पर,
निज परिकर सह सौधर्म इन्द्र।
श्रृंगार प्रभू का किया शची इन्द्राणी,
जिनभक्ती मुक्ति निशानी।।2।।
ऋषिगण जहं विचरण करते हैं,
सिद्धों का सुमिरन करते हैं।
निज आत्मरमण कर सफल करें जिन्दगानी,
जिनभक्ती मुक्ति निशानी।।3।।
जो पंचमेरू वंदन करते,
अस्सी जिनगृह दर्शन करते।
वे पा लेते निर्वाण कहे जिनवाणी,
जिनभक्ती मुक्ति निशानी।।4।।
हम भी प्रभु का गुणगान करें,
भक्ती पियूष का पान करें।
भक्ती गंगा ’चंदनामति’ कल्याणी,
जिनभक्ती मुक्ति निशानी।।5।।