जैन परम्परा के ग्रन्थों में भगवान महावीर के शिष्य     भगवान महावीर के निर्वाण के समय ईसा पूर्व 527 से लेकर अगले 600 वर्षो तक के इतिहास मे जैन संघ मे अनेक आचार्य हुए है और उन्होंने अपनी साधना तथा ज्ञान के आधार पर जैन धर्म के विाकास मे अपूर्व योगदान किया है भगवान महावीर के 11 गणधरो मे से उनके निर्वाण के बाद गणधर इन्द्रभूति गौतम और गणधर आर्य सुधर्मा ने जैन संघ को नेतृत्व प्रदान किया। इसके बाद आर्य जंबूस्वामी अंतिम केवल ज्ञान धारी आचार्य हुए हैं, जिन्हो ने जैन संघ के नेतृत्व को गति प्रदान की थी। इन तीन केवल ज्ञान धारी आचार्यो को जैन धर्म की प्रमुख दोनो परम्पराएं पूर्ण आदि के साथ स्वीकृति प्रदान करती हैं। इनके बाद जैनाचार्यों की परम्परा मे जो भी प्रभावशाली आचार्य हुए है उनका विवरण श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा मे भिन्नता लिए हुए है। तुलना की दृष्टि से यहां पर दोनो परम्परा के साहित्य मे उपलब्ध जैनाचार्यों के नामो और उनके साधना-काल का विवरण यहां प्रस्तुत है। सर्वप्रथम श्वेताम्बर परम्परा मे मान्य प्राकृत ग्रंथ कल्पसूत्र के अनुसार प्रमुख प्राचीन जैनाचार्यों की नामावली इस प्रकार हैः
1 गणधर गौतम- भगवान महावीर का परिनिर्वाण होने पर गणधर गौतम को केवल ज्ञान हुआ, अतः उन्होंनें संध संचालन का कार्य आर्य सुधर्मा को सौंप दिया। गणधर गौतम घोर तपस्वी और चैदह पूर्वग्रन्थों के ज्ञाता थे। ज्ञातव्य है कि जैन साहित्य का अधिकांश भाग महावीर और गौतम के संवाद के रूप मे ही है। गौतम 12 वर्ष तक जीवन-मुक्त (केवली) अवस्था मे रहकर 92 वर्ष की आयु पूर्ण कर मुक्त हुए थे। दिगम्बर परम्परा के अुनसार भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात 12 वर्ष तक गौतम ने ही संघ का दायित्व संभाला था।
2 आर्य सुधर्मा - गणधर गौतम के पश्चात आर्य सुधर्मास्वामी को आचार्य पद परप्रतिष्ठित किया गया था।
3 आर्य जम्बू - आर्य जम्बू का जन्म महावीर निर्वाण के 16 वर्ष पूर्व हुआ था। वे 36 वर्ष की आयु मे जैन संघ के आचार्य बने। वी.नि. सं. 64 में 80 वर्ष की आयु पूर्ण करके वे स्वर्गवासी हुए।
4 आर्य प्रभद - स्वामी-आर्य जम्बू के पश्चात आर्य प्रभवस्वामी आचार्य बने थे। 105 वर्ष की आयु पूर्ण कर के वे स्वर्गवासी हुए।
5 आर्य शयंभव - आर्य प्रभवस्वामी के पट्टधर आर्य शयंभव 85 वर्ष की आयु पूर्ण कर के वी.नि.सं. 98 मे स्वर्ग वासी हुए।
6 आर्य यशोभद्र - आर्य शयंभव के प्रधान शिष्य आर्य यशोभद्र 86 वर्ष की आयु पूर्ण कर के वी.नि.स. 148 मे स्वर्ग वासी हुए।
7 आर्य संभूति विजय- आर्य यशोभद्र के उत्तराधिकारी आर्य संभूति विजय 90 वर्ष की आयु पूर्ण कर के वी.नि.सं. 156 मे स्वर्ग वासी हुए।
8 आर्य भद्रबाहु - पंचम श्रुत केवली के रूप् मे विख्यात आर्य भद्रबाहुस्वामी चैदह पूर्व ग्रन्थों के ज्ञाता थे। उनका स्वर्ग वासी वी.नि.सं 170 मे हुआ।
9 आर्य स्थूलिभद्र - आर्य स्थूलिभद्र महापंडित के रूप् मे विख्यात थे। वी.नि.सं. 215 में 99 वर्ष की आयु पूर्ण करके आप स्वर्ग वासी हुए।
10 आर्य महागिरि - आर्य महागिरि उग्र तपस्वी थे तथा उन्हे दस पूर्व ग्रन्थो का ज्ञान था। 100 वर्ष की आयु पूर्ण करके आप वी.नि. सं. 245 मे स्वर्ग वासी हुए।
11 आर्य सुहस्ती - आर्य महागिरि के बाद आर्य सुहस्ती आचार्य बने थे। आप भी 100 वर्ष की आयु पूर्ण कर के वी.नि. सं. 291 मे स्वर्ग वासी हुए।
12 आर्य सुस्थित - आर्य सुहस्ती के पट्टधर आर्य सुस्थित 96 वर्ष की आयु पूर्ण कर के वी.नि.सं. 339 मे स्वर्ग वासी हुए।
13 आर्य सुप्रतिबद्ध - आर्य सुहस्ती के पश्चात आर्य सुप्रतिबद्ध आचार्य बने।
14 आर्य इन्द्रदिन्न - आर्य सुप्रतिबद्ध के पश्चात युग प्रधान आचार्य के रूप् मे आर्य इन्द्रदिन्न का नाम लिया जाता हैं
16 आर्य सिंहगिरि - आर्य कालक के पट्टधर आर्य सिंहगिरि माने जाते हैं।
17 आर्य वज्रस्वामी - आर्य वज्रस्वामी का जन्म वी.नि.सं. 496 मे हुआ था। 88 वर्ष की आयु पूर्ण कर के आप वी.नि.सं. 584 मे स्वर्ग वासी हुए।
18 आर्य वज्रसेन - वजस्वामी के पश्चात आर्य वज्रसेन युगप्रधान आचार्य हुए थे।
19 आर्य रक्षित - आर्य वज्रसेन के पट्टधर आर्य रक्षित वी.नि.स. 517 मे स्वर्ग वासी हुए।