सप्तम अध्याय
प्र.१. पाप कितने और कौन से हैं ?
उत्तर — पाप ५ होते हैं :— (१) हिंसा, (२) झूठ, (३) चोरी, (४) कुशील, (५) परिग्रह
प्र.२. व्रत किसे कहते हैं ?
उत्तर — ‘‘हिंसानृतस्तेयाब्रह्म परिग्रहेभ्यो विरतिव्र्रतम् ।’’ हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्म और परिग्रह से निवृत्त होना व्रत है।
प्र.३. हिंसा किसे कहते हैं ?
उत्तर — प्रमाद योग से प्राणों का वियोग करना हिंसा है।
प्र.४. असत्य किसे कहते हैं ?
उत्तर — जो जैसा है उसे वैसा ना कहकर अन्य तरीके से कहना असत्य है।
प्र.५. चोरी किसे कहते हैं ?
उत्तर — नहीं दी गई वस्तु को ग्रहण करना चोरी है।
प्र.६. अब्रह्म या कुशील किसे कहते हैं ?
उत्तर — स्व पत्नि को छोड़ अन्य स्त्रियों के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करना अथवा उसके प्रति दुर्भावना लाना अब्रह्म/ कुशील है।
प्र.७. परिग्रह किसे कहते हैं ?
उत्तर — मन का मूर्छित होना अथवा चारों तरफ से ग्रहण का भाव परिग्रह है ।
प्र.८. व्रत क्या है स्पष्ट करें ?
उत्तर — प्रतिज्ञा करके हिंसादि पांच पापों के त्याग का नियम लेना व्रत है।
प्र.९. व्रत के कितने भेद है ?
उत्तर — व्रत २ प्रकार के हैं — (१) अणुव्रत (२) महाव्रत
प्र.१०. अणुव्रत और महाव्रत क्या है ?
उत्तर — ‘‘देशसर्वतोऽणुमहती।’’ अर्थात् हिंसादिक पांच पापों का एक देश त्याग करना अणुव्रत है और सब प्रकार त्याग होना महाव्रत है।
प्र.११. अणुव्रत और महाव्रत कौन पालते हैं ?
उत्तर — गृहस्थ अणुव्रत पालन कर सकते हैं और मुनिराज महाव्रत का पालन करते हैं।
प्र.१२. इन व्रतों के पालन का फल क्या है ?
उत्तर — जो पुरुष उत्तम औषधि के समान व्रतों का पालन करता है उसके दु:खों का क्षय होता है।
प्र.१३. व्रतों को स्थिर करने के लिये कौन सी भावना करनी चाहिए ?
उत्तर — ‘‘तत्स्थैर्यार्थं भावना: पञ्च पञ्च।’’ उन अहिंसादि पांच व्रतों को स्थिर करने के लिये एक— एक व्रत की पाँच—पाँच भावनायें होती हैं।
प्र.१४. अहिंसाव्रत की भावनायें कौन सी है ?
उत्तर — ‘‘वाङ्मनोगुप्तीर्यादान—निक्षेपण—समित्या—लोकित—पान—भोजनानि पञ्च।’’ वचन गुप्ति, मन गुप्ति, ईर्या समिति, आदान निक्षेपण समिति और आलोकित पान भोजन ये अहिंसा व्रत की ५ भावनायें हैं।
प्र.१५. वचन और मन गुप्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर — वचन को वश में रखना वचन गुप्ति तथा मन को वश में रखना मन गुप्ति है।
प्र.१६. ईर्यासमिति क्या है ?
उत्तर — चार हाथ भूमि को देखकर चलना ईर्यासमिति है।
प्र.१७. आदाननिक्षेपण समिति क्या है ?
उत्तर — भूमि को शोधकर, उचित प्रकार से देखकर किसी भी वस्तु को रखना या उठाना आदाननिक्षेपण समिति है।
प्र.१८. आलोकित पान भोजन क्या है ?
उत्तर — सूर्य के प्रकाश में देखकर वस्तु का खाना—पीना आलोकित पान भोजन है।
प्र.१९. सत्यव्रत की भावनायें कौन सी हैं ?
उत्तर — ‘‘क्रोध—लोभ— भीरुत्व, हास्य—प्रत्याख्यानान्य—नुवीचिभाषणं च पञ्च ’’ क्रोध प्रत्याख्यान, लोभ प्रत्याख्यान, भीरुत्व प्रत्याख्यान, हास्य प्रत्याख्यान और अनुवीचिभाषण ये सत्यव्रत की ५ भावनायें हैं।
प्र.२०. अचौर्यव्रत की भावनायें कौन सी हैं ?
उत्तर — ‘‘शून्यागार विमोचितावास परोपरोधाकरण भैक्ष्य शुद्धि सधर्माऽविसंवादा: पञ्च।’’ शून्यागार, विमोचित आवास, परोपरोधाकरण, भैक्ष्य शुद्धि, सधर्मा अविसंवाद ये अचौर्यव्रत की पाँच भावनायें हैं ।
प्र.२१. ब्रह्मचर्यव्रत की भावनायें कौन सी हैं ?
उत्तर —‘‘स्त्रीरागकथा श्रवणतन्मनोहराङ्गनिरीक्षण—पूर्व रतानुस्मरण—व्रष्येष्ट— रस स्व—शरीर संस्कार—त्यागा: पञ्च।’’ स्त्रीरागकथा श्रवण त्याग, तन्मनोहरांग निरीक्षणत्याग , पूर्वरतानुस्मरण त्याग, वृष्येष्टरस त्याग और स्वशरीर संस्कार त्याग ये ब्रह्मचर्यव्रत की ५ भावनायें हैं ।
प्र.२२. परिग्रह त्याग व्रत की भावनायें कौन सी हैं ?
उत्तर — ‘‘मनोज्ञामनोज्ञेन्द्रिय विषयरागद्वेषवर्जनानि पञ्च।’’ मनोज्ञ और अमनोज्ञ इंद्रियों के विषयों में क्रम से राग और द्वेष का त्याग करना ये पाँच अपरिग्रहव्रत की भावनायें हैं।
प्र.२३. पांच व्रतों की दृढ़ता के लिये कौन सी भावना भानी चाहिए ?
उत्तर — ‘‘हिंसादिष्विहामुत्रापायावद्यदर्शनम्’’।हिंसादिक पांच दोषों में ऐहिक और पारलौकिक अपाय और अवध का दर्शन भावने योग्य है।
प्र.२४. अपाय का क्या अर्थ है ?
उत्तर — स्वर्ग और मोक्ष की प्रयोजक क्रियाओं का विनाश करने वाली प्रवृत्ति अपाय है।
प्र.२५. अवध का अर्थ क्या है ?
उत्तर — अवध का अर्थ है निंदनीय, अयोग्य।
प्र.२६. पांच पापों के विषय में हमारा कैसा चिंतन होना चाहिए।
उत्तर — ‘‘दु:खमेव वा।’’ ये हिंसादिक पांचों पाप दु:ख रूप हैं ऐसा चिंतन करना चाहिए।
प्र.२७.निरंतर चिंतन करने योग्य कौन सी भावनायें हैं ?
उत्तर —‘‘मैत्री प्रमोद कारुण्य माध्यस्थानि च सत्वगुणाधिक क्लिश्यमानाविनयेषु ।’’
प्र.२८. मैत्री से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर — दूसरों को दु:ख ना हो ऐसी अभिलाषा रखना मैत्री है।
प्र.२९. प्रमोद से क्या समझते हैं ?
उत्तर — मुख की प्रसन्नता आदि द्वारा भीतर भक्ति और अनुराग का व्यक्त होना प्रमोद है।
प्र.३०. कारुण्य क्या है ?
उत्तर — दीनों पर दयाभाव रखना ‘कारुण्य’ है।
प्र.३१. माध्यस्थ भावना क्या है ?
उत्तर — राग द्वेष पूर्वक पक्षपात का ना करना माध्यस्थ भावना है।
प्र.३२. संवेग और वैराग्य के लिये कौनसी भावना का चिंतन करना चाहिये ?
उत्तर — ‘‘जगत्कायस्वभावौ वा संवेगवैराग्यार्थम्’’ संवेग और वैराग्य के लिये संसार और शरीर का चिंतन करना चाहिए।
प्र.३३. जगत से क्या आशय है ?
उत्तर — जगत का अर्थ संसार है। जीव जिसमें भ्रमण करे उसे जगत कहते हैं ।
प्र.३४. काय क्या है ?
उत्तर — शरीर को काय कहते हैं जो नामकर्म के उदय से मिलता है।
प्र.३५. संवेग का लक्षण बतलाईये ।
उत्तर — धर्मानुराग एवं संसार से भय का नाम संवेग है।
प्र.३६. वैराग्य किसे कहते हैं ?
उत्तर — शरीर और पंचेन्द्रियों के विषयों से विरक्ति को वैराग्य कहते हैं ।
प्र.३७. हिंसा का लक्षण क्या है ?
उत्तर — ‘‘प्रमत्तयोगात्प्राणव्यपरोपणं हिंसा’’ प्रमत्तयोग से प्राणों का वध करना हिंसा है।
प्र.३८. प्रमाद कितने हैं ?
उत्तर — प्रमाद १५ हैं ? पांच इंद्रियां :— स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु, कर्ण चार कषाय :— क्रोध, मान, माया, लोभ चार विकथा :— स्त्रीकथा, राज्यकथा, चौरकथा और भोजनकथा।
प्र.३९. असत्य का लक्षण क्या है ?
उत्तर — ‘‘असदभिधानमनृतम्’’ । असत् बोलना अनृत है।
प्र.४०. असत् या अनृत क्या है ?
उत्तर — जो पदार्थ नहीं है उसको बताना या करना असत् अथवा अनृत है।
प्र.४१. स्तेय अर्थात् चोरी का क्या लक्षण है ?
उत्तर — ‘‘अदत्तादानं स्तेयं।’’ बिना दी हुई वस्तु का लेना स्तेय अर्थात् चोरी है।
प्र.४२. अब्रह्म किसे कहते हैं ?
उत्तर — ‘‘मैथुनमब्रह्म।’’ मैथुन अब्रह्म या कुशील है ।
प्र.४३. परिग्रह का लक्षण क्या है ?
उत्तर — ‘‘मूर्च्छा: परिग्रह:।’’ मूर्च्छा को परिग्रह कहते हैं ।
प्र.४४. मूर्च्छा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर — पर पदार्थों के ममत्व को मूर्च्छा कहते हैं।
प्र.४५. हिंसादि पांच पापों में प्रसिद्ध होने वाले व्यक्तियों के नाम बताइये ।
उत्तर — हिंसा पाप में धनश्री असत्य पाप में सत्यघोष चोरी पाप में तापस चोर अब्रह्म या कुशील पाप में यमदण्ड कोतवाल परिग्रह पाप में श्मश्रुनवनीत
प्र.४६. अहिंसा आदि पांच व्न्रतों में प्रसिद्ध महापुरुषों के नाम बताओ ?
उत्तर — अहिंसा अणुव्रत में यमपाल चाण्डाल, सत्यव्रत में धनदेव सेठ, अचौर्याणुव्रत में वणिक पुत्री नीली, परिग्रहपरिमाणव्रत में राजा जय प्रसिद्ध हुए।
प्र.४७. व्रती का लक्षण क्या है ?
उत्तर — ‘‘नि:शल्योव्रती’’ जो शल्य रहित होता है वह व्रती होता है।
प्र.४८. शल्य किसे कहते हैं ?
उत्तर — पीड़ा देने वाली वस्तु अथवा शरीर और मन संबंधी कष्ट का जो कारण है वह शल्य है।
प्र.४९. शल्य के कितने भेद हैं ?
उत्तर — शल्य के ३ भेद हैं :— १. माया शल्य , २. मिथ्या शल्य, ३. निदान शल्य।
प्र.५०. माया शल्य क्या है ?
उत्तर — ठगने या छल कपट करने की प्रवृत्ति का नाम माया शल्य है।
प्र.५१. मिथ्या शल्य क्या है ?
उत्तर — तत्वों का विपरीत श्रद्धान मिथ्या शल्य है।
प्र.५२. निदान शल्य क्या है ?
उत्तर — भोगों की लालसा बनी रहना निदान शल्य है।
प्र.५३. अहिंसादि व्रतों के पालन का फल विशेष रूप से क्या है ?
उत्तर — एकदेश अहिंसादि व्रतों को पालन करने वाला क्रमशः स्वर्गसुखों को प्राप्त कर परंपरा से मुक्ति को प्राप्त करता है। पूर्ण अहिंसादिव्रतों के पालन का फल है रागादि भावों का अभाव करके आत्म स्वरूप में लीन होकर मोक्ष पद की प्राप्ति होना।
प्र.५४. व्रती मनुष्य कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर — ‘‘अगार्यनगारश्च’’ व्रती मनुष्य अगारी और अनगारी के भेदपूर्वक २ प्रकार के होते हैं।
प्र.५५. अगारी का अर्थ क्या है ?
उत्तर — जो व्रती घर में रहता है (गृहस्थ) वह अगारी है।
प्र.५६. अनगारी का अर्थ क्या है ?
उत्तर — जो व्रती घर छोड़कर वन में रहता है अर्थात् गृहत्यागी मुनि अनगारी है।
प्र.५७. अगारी का लक्षण क्या है ?
उत्तर — ‘‘अणुव्रतोऽगारी’’ अणुव्रतों का धारी अगारी है।
प्र.५८. अणुव्रत का अर्थ क्या है ?
उत्तर — अणु—अल्प, व्रत—नयम, संकल्प, अर्थात् अल्पव्रतों को अणुव्रत कहते हैं।
प्र.५९. अणुव्रत कितने और कौन—कौन से हैं ?
उत्तर — अणुव्रत ५ हैं— १. अहिंसाणुव्रत, २. सत्याणुव्रत, ३. अचौर्याणुव्रत, ४.ब्रह्मचर्याणुव्रत, ५. परिग्रहपरिमाणाणुव्रत।
प्र.६०. अणुव्रती कौन है ?
उत्तर — जो श्रावक इन पांच अणुव्रतों का पालन करता है, वह अणुव्रती है।
प्र.६१. अहिंसाणुव्रती कौन है ?
उत्तर — जो संकल्पपूर्वक त्रस हिंसा का त्यागी है और बिना प्रयोजन स्थावर जीवों की भी विराधना नहीं करता है वह अहिंसाणुव्रती है।
प्र.६२. सत्याणुव्रती कौन है ?
उत्तर — राग, द्वेष, भय, आदि के वशीभूत होकर जो स्थूल असत्य बोलने का त्यागी होता है, वह सत्याणुव्रती है।
प्र.६३. अचौर्याणुव्रती का लक्षण बताओ।
उत्तर — स्थूल चोरी के त्याग का व्रत लेने वाला श्रावक अचौर्याणुव्रती कहलाता है।
प्र.६४. ब्रह्मचर्याणुव्रती का लक्षण बताओ है ?
उत्तर — स्व स्त्री को छोड़कर जो गृहस्थ पर स्त्री के प्रति रति नहीं करता है वह ब्रह्मचर्याणुव्रती है।
प्र.६५. परिग्रह परिणाणुव्रती कौन है ?
उत्तर — आवश्यकता से अधिक परिग्रह का त्याग करके, धन, धान्य, क्षेत्र, मकान आदि का स्वच्छ से परिमाण करने वाला परिग्रह परिमाणाणुव्रती है।
प्र.६६. अणुव्रत के सहायक व्रत कितने हैं ?
उत्तर — ‘‘दिग्देशानर्थदण्डविरतिसामायिकप्रोषधोपवासोपभोग परिभोग परिमाणातिथि संविभागव्रत संपन्नच।’’ दिग्देश अनर्थदण्डविरती, सामायिक, प्रोषधोपवास, उपभोग—परिभोग परिमाणव्रत और अतिथि संविभागव्रत।
प्र.६७. विरति और व्रत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर — विरति का अर्थ है विरक्ति तथा व्रत का अर्थ है नियमपूर्वक पालन।
प्र.६८. गुणव्रत किसे कहते हैं ?
उत्तर — जो अणुव्रतों का उपकार करे उसे गुणव्रत कहते हैं ।
प्र.६९. गुणव्रत कितने हैं ?
उत्तर — गुणव्रत ३ हैं — १. दिग्विरति , २. देशविरति, ३. अनर्थदण्डविरति।
प्र.७०. दिग्व्रत किसे कहते हैं ?
उत्तर — पूर्वादि दिशाओं में आवागमन की मर्यादा करके नियम लेना दिग्व्रत है।
प्र.७१. देशव्रत क्या है ?
उत्तर — ग्रामादिक की मर्यादा करके उससे बाहर जाने का त्याग करना देशव्रत है।
प्र.७२. अनर्थदण्डव्रत क्या है ?
उत्तर — उपकार न होकर जो प्रकृति केवल पाप का कारण है वह अनर्थदण्ड तथा इससे विरत होना अनर्थदण्डव्रत है।
प्र.७३. अनर्थदण्ड का लक्षण क्या है ?
उत्तर — प्रयोजन रहित—मन—वचन—काय अशुभोपयोग रूप क्रिया को अनर्थदण्ड कहते हैं
प्र.७४. अनर्थदण्ड व्रत के कितने भेद हैं ?
उत्तर — अनर्थदण्डव्रत के ५ भेद हैं— (१) पापोपदेश, (२) हिंसादान, (३) अपध्यान, (४) दु:श्रुति, (५) प्रमादचर्या।
प्र.७५. पापोपदेश अनर्थदण्ड क्या है ?
उत्तर —जन व्यापारों को करने से तिर्यंच जीवों को कष्ट होता है ऐसे व्यापार करने के लिये दूसरों को उपदेश देना , पापोपदेश नाम का अनर्थदण्ड है।
प्र.७६.हिंसादान अनर्थदण्ड क्या है ?
उत्तर — हिंसात्मक उपकरणों को प्रदान करना हिंसादान अनर्थदण्ड है।
प्र.७७. अपध्यान अनर्थदण्ड क्या है ?
उत्तर — दूसरे व्यक्ति को हराना, मारना, बांधना आदि बुरे विचार करना अपध्यान अनर्थदण्ड है।
प्र.७८. दु:श्रुति अनर्थदण्ड किसे कहते हैं ?
उत्तर — बिना प्रयोजन हिंसा और राग आदि बढ़ाने वाली दुष्ट कथाओं को सुनना और उनकी शिक्षा देना दु:श्रुति नामक अनर्थदण्ड है।
प्र.७९. प्रमादचर्या अनर्थदण्ड क्या है ?
उत्तर — बिना प्रयोजन वृक्षादि का छेदना, भूमि काटना, पानी सींचना, व्यर्थ घूमना प्रमादचर्या अनर्थदण्ड है।
प्र.८०. शिक्षाव्रत किसे कहते हैं ?
उत्तर — जिनसे दिंगबरत्व पालन करने की शिक्षा मिले उन्हें शिक्षाव्रत कहते हैं ।
प्र.८१. शिक्षा व्रत के कितने भेद हैं ?
उत्तर — शक्षाव्रत के ४ भेद हैं— (१) सामायिक (२) प्रोषधोपवास (३) भोगोपभोग परिमाण व्रत (४) अतिथिसंविभागव्रत ।
प्र.८२. सामायिक शिक्षाव्रत क्या है ?
उत्तर — मन, वचन, काय और कृत, कारित, अनुमोदना से पाँचों पापों का त्याग करना सामायिक है।
प्र.८३. प्रोषधोपवास शिक्षाव्रत क्या है ?
उत्तर — अष्टमी, चतुर्दशी पर्वों पर जो उपवास किया जाता है वह प्रोषधोपवास है।
प्र.८४. भोगोपभोग परिमाणव्रत क्या है ?
उत्तर — जो, वस्तु एक बार भोगने के बाद पुन: भोगने में ना आवे उसे भोग कहते हैं और जो वस्तु , पदार्थ बार—बार भोगने में आती हैं वे उपभोग कहलाती हैं। उनके विषय में शक्ति अनुसार नियम लेना भोगोपभोग परिमाणव्रत है।
प्र.८५. अतिथिसंविभाग शिक्षाव्रत क्या है ?
उत्तर — आगत अतिथि के लिये अपने भोजन में से विशिष्ट भोजन प्रदान करना अतिथि संविभाग शिक्षाव्रत है।
प्र.८६. अतिथिसंविभाग शिक्षाव्रत कितने प्रकार का है ?
उत्तर — अतिथि संविभाग शिक्षाव्रत ४ प्रकार का है — (१) भिक्षा (२) उपकरण (३) औषध (४) वसतिका दान।
प्र.८७. गृहस्थ धर्म अथवा गृहस्थ कैसा होता है ?
उत्तर — ‘‘मारणान्तिकीं सल्लेखनां जोषिता’’। गृहस्थ मारणान्तिक सल्लेखना को प्रीतिपूर्वक सेवन करने वाला होता है।
प्र.८८. ‘‘मारणान्तिक ’’ शब्द का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर — वर्तमान भव का अवसान मरणान्त है और जिसका प्रयोजन धर्ममय मरणान्त है वह मारणान्तिकी कहलाती है।
प्र.८९.सल्लेखना से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर — बाह्म में शरीर तथा अतंस में कषायों को सम्यक् प्रकार से कृष करना सल्लेखना है।
प्र.९०. सम्यग्दृष्टि के कितने अतिचार हैं ?
उत्तर —‘‘शंज्रकांक्षाविचिकित्सान्यदृष्टि प्रशंसासंस्तवा: सम्यग्दृष्टेरतिचारा:’’ शंका, कांक्षा, विचिकित्सा, अन्यदृष्टि प्रशंसा, अन्यदृष्टि संस्तव ये सम्यग्दृष्टि के ५ अतिचार हैं
प्र.९१.अतिचार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर — व्रत का एकदेश भंग होना अतिचार है।
प्र.९२. व्रत और शील के कितने अतिचार हैं ?
उत्तर — ‘‘व्रत शीलेषु पञ्चपञ्च यथाक्रमम् ।’’ व्रत और शील के ५—५ अतिचार हैं ।
प्र.९३. अहिंसाव्रत के अतिचार कौन से हैं ?
उत्तर — ‘‘बन्धवधच्छेदातिभारारोपणान्नपाननिरोधा:’’ बंध, वध, छेद, अतिभार का आरोपण और अन्नपान निरोध ये अहिंसाणुव्रत के ५ अतिचार हैं ।
प्र.९४. बंध का क्या अभिप्राय है ।
उत्तर — किसी को अपने इष्ट स्थान पर जाने से रोकना बंध है।
प्र.९५.वध का क्या अर्थ है ।
उत्तर — डंडा, चाबुक, बेंत आदि से प्राणियों को मारना वध है।
प्र.९६. अतिभार आरोपण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर — सामथ्र्य से अधिक किसी पर भार का लादना अतिभार आरोपण है।
प्र.९७. अन्नपान निरोध किसे कहते हैं ?
उत्तर — पालतू पशुओं तथा स्वाश्रित नौकर आदि को भूख प्यास लगने पर अन्नपान से वंचित रखना अन्नपान निरोध है।
प्र.९८. सत्याणुव्रत के अतिचार कौन से हैं ?
उत्तर — ‘‘मिथ्योपदेश रहोभ्याख्यान कूट लेख क्रियान्यासापहार साकार मंत्र भेदा:।’’ मिथ्याउपदेश, रहोभ्याख्यान, कूटलेखक्रिया, न्यासापहार, और साकार मंत्र भेद ये सत्याणुव्रत के अतिचार हैं।
प्र.९९. मिथ्योपदेश का लक्षण क्या है ?
उत्तर — मथ्या वचनों के द्वारा धन आदि के निमित्त दूसरों को ठगना मिथ्योपदेश कहलाता है।
प्र.१००. रहोभ्याख्यान का क्या अर्थ है ?
उत्तर — स्त्री पुरुष द्वारा एकांत में किये गये आचरण विशेष का प्रकट कर देना रहोभ्याख्यान कहलाता है।
प्र.१०१.कूटलेखक्रिया किसे कहते हैं ?
उत्तर — द्बेष के वशीभूत अथवा पीड़ा देने के लिये छल से लिखना कूट लेखक्रिया है।
प्र.१०२. न्यासापहार किसे कहते हैं ?
उत्तर — धरोहर का अपहरण न्यासापहार है।
प्र.१०३. साकार मंत्रभेद क्या है ?
उत्तर — अर्थ, प्रमाद या शरीर के विकार वश या भू्रक्षेप आदि के कारण दूसरे के अभिप्राय को जानकर ईष्र्या से उसे प्रकट करना साकार मंत्र है।
प्र.१०४. अचौर्याणुव्रत के अतिचार कौन से हैं ?
उत्तर — स्तेनप्रयोगतदाहृतादान विरुद्धराज्यातिक्रम हीनाधिक मानोन्मान प्रतिरूपक व्यवहारा:। स्तेनप्रयोग, स्तेन आहृतादान, विरुद्धराज्यातिक्रम, हीनाधिकमान—उन्मान और प्रतिरुपकव्यवहार ये पाँच अचौर्याणुव्रत के अतिचार हैं।
प्र.१०५. स्तेन प्रयोग किसे कहते हैं ?
उत्तर — चोरी के लिये स्वयं प्रेरित करना, दूसरे के द्वारा प्रेरणा दिलाना या चोरी करते हुए की अनुमोदना करना स्तेन प्रयोग है।
प्र.१०६. स्तेन आहृतादान किसे कहते हैं ?
उत्तर — चोर के द्वारा चुराई गई वस्तु को खरीदना ‘‘स्तेन आहृतादान’’ है।
प्र.१०७. विरुद्धराज्यातिक्रम किसे कहते हैं ?
उत्तर — राज्य में किसी प्रकार का विरोध होने पर मर्यादा का पालन नहीं करना विरुद्धराज्यातिक्रम है।
प्र.१०८. मान—उन्मान का लक्षण क्या है ?
उत्तर — मानपद से प्रस्थ या काष्ठ आदि से निर्मित मापने के बर्तन लिये जाते हैं और उन्मान पद से तराजू आदि से तोलने के बाट लिये जाते हैं।
प्र.१०९. हीनाधिक मानोन्मान किसे कहते हैं ?
उत्तर — कम तौलकर दूसरे को देना और अधिक तौलकर स्वयं लेना हीनाधिक मानोन्मान है।
प्र.११०. प्रतिरूपक व्यवहार किसे कहते हैं ?
उत्तर — बहुमूल्य वस्तु में अल्पमूल्य की वस्तु मिलाकर असली भाव से बेचना प्रतिरूपक व्यवहार है।
प्र.१११. ब्रह्मचर्याणुव्रत के अतिचार कौन से हैं ?
उत्तर — परविवाहकरणेत्वरिकापरिग्रहीता परिग्रहीतागमनानङ्ग क्रीड़ाकामतीव्राभिनिवेशा:। परविवाह करना, इत्वाकरिका परिगृहीता गमन, इरित्वका अपरिगृहीता गमन, अनंगक्रीड़ा, कामतीव्राभिनिवेश ये स्वदार संतोष ब्रह्मचर्याणुव्रत के ५ अतिचार हैं।
प्र.११२. परविवाह करण किसे कहते हैं ?
उत्तर — अपने पुत्रादिक से भिन्न दूसरों के पुत्र—पुत्री आदि का विवाह परविवाह करण है।
प्र.११३. इत्वरिकापरिगृहीतागमन और इत्वरिका अपरिगृहीता का स्वरूप क्या है ?
उत्तर —ऐसी स्त्री जो किसी की पत्नि है उसके पास आना जाना इत्वरिकापरिगृहीतागमन तथा जो स्त्री वेश्या है उसके पास आना जाना इत्वरिका अपरिगृहीतागमन कहलाता है।
प्र.११४. अनंगक्रीड़ा किसे कहते हैं ?
उत्तर — काम सेवन से निश्चित अंगों को छोड़कर अन्य अंगों से काम सेवन करना अनंगक्रीड़ा है।
प्र.११५. कामतीव्राभिनिवेश किसे कहते है ?
उत्तर — कामसेवन की तीव्र अभिलाषा करना कामतीव्राभिनिवेश कहलाता है।
प्र.११६. परिग्रह परिमाणाणुव्रत के कितने अतिचार हैं ?
उत्तर — ‘क्षेत्रवास्तुहिरण्य सुवर्ण धन धान्य दासी दास कुप्य प्रमाणातिक्रमा:।’ क्षेत्र तथा वस्तु के प्रमाण का अतिक्रम,हिरण्य और सुवर्ण के प्रमाण का अतिक्रम, धन धान्य के प्रमाण का अतिक्रम, दासी दास के प्रमाण का अतिक्रम तथा कुप्य के प्रमाण का अतिक्रम करना परिग्रह परिमाण अणुव्रत के अतिचार हैं।
प्र.११७. दिग्व्रत के पांच अतिचार कौन से हैं ?
उत्तर — उध्र्वाधस्तिर्यग्व्यतिक्रम क्षेत्र वृद्धि स्मृत्यन्तराधानानि। (१) उध्र्वव्यतिक्रम, (२) अधोव्यतिक्रम, (३) तिर्यग्व्यतिक्रम, (४) क्षेत्रवृद्धि, (५) स्मृत्यन्तराधान ये पाँच दिग्व्रत के अतिचार है।
प्र.११८. अतिचार किसे कहते हैं ? उसके कितने भेद हैं ?
उत्तर — दिशा की जो मर्यादा की गई है उसका उल्लंघन करना अतिक्रम है। अतिक्रम ३ प्रकार का है — १. उध्र्व, अतिक्रम, २. अध: अतिक्रम, ३. तिर्यक् अतिक्रम
प्र.११९. देशविरति के पाँच अतिचार कौन से हैं ?
उत्तर — ‘आनयनप्रेष्य प्रयोग शब्द रुपानुपात पुद्गलक्षेपा: ।’ १. आनयन, २. प्रेष्यप्रयोग, ३. शब्दानुपात, ४. रुपानुपात, ५. पुद्गलक्षेप ये पांच देशविरती के अतिचार हैं।
प्र.१२०. आनयन किसे कहते हैं ?
उत्तर — मर्यादा के बाहर की वस्तु को लाने की आज्ञा करना अथवा बुलाना आनयन है।
प्र.१२१. प्रेष्यप्रयोग किसे कहते हैं?
उत्तर — मर्यादित देश के बाहर नौकर आदि को भेजकर इच्छित कार्य की सिद्धि करना प्रेष्यप्रयोग है।
प्र.१२२. शब्दानुपात किसे कहते हैं ?
उत्तर — खांसी, ताली बजाना आदि शब्दों के द्वारा मर्यादा से बाहर वाले व्यक्तियों को अपना अभिप्राय समझाकर कार्य सिद्ध करना शब्दानुपात है।
प्र.१२३. पुद्गलक्षेप किसे कहते हैं ?
उत्तर — मर्यादा के बाहर , कंकर, पत्थर फैककर अपने कार्य की सिद्धि कर लेना पुद्गलक्षेप है।
प्र.१२४.अनर्थदण्डव्रत के अतिचार कितने और कौन से हैं ?
उत्तर — ‘कन्दर्प—कौत्कुच्य मौखर्या: समीक्ष्याधिकरण—भोगा, परिभोग—नर्थक्यानि’ अनर्थदण्डव्रत के ५ अतिचार हैं— १. कंदर्प, २. कौत्कुच्य, ३.मौखर्य, ४. असमीक्ष्याधिकरण, ५. उपभोगपरिभोगानर्थक्य।
प्र.१२५. कंदर्प किसे कहते हैं ?
उत्तर — रागभाव की तीव्रतावश हास्यमिश्रित असभ्यवचन बोलना कंदर्प है।
प्र.१२६. कौत्कुच्य का लक्ष्ण क्या है ?
उत्तर — हास्यमिश्रित और असभ्यवचन दोनों के साथ दूसरों के लिये शारीरिक कुचेष्टाएं करना कौत्कुच्य है।
प्र.१२७. मौखर्य किसे कहते हैं?
उत्तर — धृष्टतापूर्वक, आवश्यकता से अधिक बोलना मौखर्य है।
प्र.१२८. असमीक्ष्याधिकरण किसे कहते हैं?
उत्तर — प्रयोजन का विचार किये बिना मर्यादा के बाहर अधिक काम करना असमीक्ष्याधिकरण है।
प्र.१२९.उपभोग परिभोगानर्थक्य किसे कहते हैं ?
उत्तर — अधिक मूल्य देकर उपभोग परिभोग वस्तु को ग्रहण करना उपभोग परिभोगानर्थक्य है।
प्र.१३०. सामायिक व्रत के कितने और कौन से अतिचार हैं?
उत्तर — ‘योगदुष्प्रणिधानानादरस्मृत्यनुपस्थानानि’ काययोग दुष्प्रणिधान, वचन योग दुष्प्रणिधान, मनोयोग दुष्प्रणिधान, अनादर और स्मृति का अनुपस्थान ये सामायिक व्रत के पाँच अतिचार हैं ।
प्र.१३१.योग दुष्प्रणिधान से क्या आशय है ?
उत्तर — योगों की दुष्टप्रवृत्ति को योग दुष्प्रणिधान कहते हैं ।
प्र.१३२. काय दुष्प्रणिधान का लक्षण क्या है ?
उत्तर — शरीर के अंगोपांगों को नियंत्रित नहीं रखना काय दुष्प्रणिधान है।
प्र.१३३.वचन दुष्प्रणिधान का लक्षण क्या है ?
उत्तर — अर्थरहित शब्दों का प्रयोग करना वचन दुष्प्रणिधान है।
प्र.१३४.मन दुष्प्रणिधान किसे कहते हैं ?
उत्तर — सामायिक करते समय उदासीनता रखना मन दुष्प्रणिधान है।
प्र.१३५. अनादर किसे कहते हैं ?
उत्तर — उत्साह रहित होकर सामायिक करना।
प्र.१३६. समृत्यनुपस्थान क्या है ?
उत्तर — एकाग्रता के अभाव में सामायिक पाठ को भूल जाना समृत्यनुपस्थान है।
प्र.१३७.प्रोषधोपवास व्रत के कितने अतिचार हैं ?
उत्तर — ‘अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितोत्सर्गादानसंस्तरोपक्रमणानादर स्मृत्यनुपस्थानानि’
प्र.१३८. उत्सर्ग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर — मल मूत्रादि को छोड़ना उत्सर्ग कहलाता है ।
प्र.१३९. प्रत्युवेक्षित व प्रमार्जित क्या है ?
उत्तर — यहां जीव हैं या नहीं इस प्रकार अपने नेत्रों से देखना प्रत्यवेक्षित है तथा कोमल उपकरण पिच्छी आदि से झाड़ने को प्रमार्जित कहते है।
प्र.१४०. अप्रत्यवेक्षित अप्रमार्जित आदान किसे कहते हैं ?
उत्तर — अरिहंत और आचार्य की पूजा के उपकरण तथा स्वयं के ओढ़ने आदि के वस्त्रादि पदार्थों को बिना परिमार्जन किये लेना अप्रत्यवेक्षित प्रमार्जितादान है।
प्र.१४१. प्रोषधोपवास व्रत में स्मृत्यनुपस्थान नामक अतिचार क्या है ?
उत्तर — क्षुधा, तृषा आदि से व्याकुल होने के कारण करने योग्य षट् आवश्यक कार्यों के प्रति अनादर भाव रखना अथवा भूल जाना स्मृत्यनुपस्थान नामक अतिचार है।
प्र.१४२. भोगोपभोग परिमाण व्रत के अतिचार कितने हैं ?
उत्तर — पांच अतिचार हैं।
प्र.१४३. वे पांच अतिचार कौन से है ?
उत्तर — ‘सचित्तसंबंधसन्मिश्राभिषवदु:पक्वाहारा:।’ अर्थात् १. सचित्त आहार, २. सचित्त संबंध आहार, ३. सचित्त संमिश्र आहार, ४. अभिषव आहार, ५. दु:पक्व आहार। ये उपभोग परिभोग परिमाणव्रत के ५ अतिचार हैं।
प्र.१४४. सचित्त से क्या तात्पर्य है ।
उत्तर — जो चित्त सहित है वह सचित्त है।
प्र.१४५. सचित्त आहार क्या है ?
उत्तर — चेतना युक्त आहार सचित्त आहार कहलाता है।
प्र.१४६. सचित्त संबंधाहार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर — जो आहार स्वयं शुद्ध होते हुए भी सचित्त के संबंध मात्र से दूषित है वह सचित्त संबंध आहार है।
प्र.१४७. सचित्त सन्मिश्राहार क्या है ?
उत्तर — सचित्त से मिश्रित (एकमेक) जिसे पृथक करना संभव नहीं है वह सचित्त सन्मिश्राहार है।
प्र.१४८. अभिषव आहार से क्या आशय है ?
उत्तर — गरिष्ठ पदार्थ का आहार करना अभिषव आहार है।
प्र.१४९. दु:पक्व आहार किसे कहते हैं ?
उत्तर — जो अभी ठीक से पका नहीं है अद्र्धपक्व है, जो बहुत गीला है वह दु:पक्व है, जो जला हुआहै उसे भी दु:पक्व कहते हैं ऐसे आहार का सेवन दु:पक्व आहार कहलाता है।
प्र.१५०. अतिथि संविभागव्रत के ५ अतिचार कौन से हैं ?
उत्तर — ‘सचित्त निक्षेपापिधानपरव्यपदेशमात्सर्यकालातिक्रमा:।’१. सचित्त निक्षेप, २. सचित्त विधान, ३. परव्यपदेश, ४. मात्सर्य , ५. कालातिक्रम ये अतिथि संविभाग के ५ अतिचार हैं।
प्र.१५१. सचित्त निक्षेप किसे कहते हैं ?
उत्तर — सचित्त कमलपत्र, केले के पत्ते आदि में रखना सचित्त निक्षेप है।
प्र.१५२. अपिधान का क्या अर्थ है ?
उत्तर — अपिधान का अर्थ ढंकना है। सचित्त पत्रों से भोजन सामग्री को ढंकना अपिधान है।
प्र.१५३. पर व्यपदेश किसे कहते हैं ?
उत्तर — दूसरे दाता के द्वारा दी गई सामग्री देना अथवा मुझे कार्य है यह तुम दे देना, ऐसा कहना परव्यपदेश है।
प्र.१५४. मात्सर्य किसे कहते हैं ?
उत्तर — दान करते हुए भी पात्रादि में आदर ना होना अथवा दूसरे दाता के गुणों को सह नहीं पाना मात्सर्य है।
प्र.१५५. कालातिक्रम क्या है ?
उत्तर — भक्षाकाल को छोड़कर दूसरा काल अकाल है और उस अकाल में आहारदान देना कालातिक्रम है।
प्र.१५६. सल्लेखना के ५ अतिचार कौन से हैं ?
उत्तर —‘जीवितमरणाशंसामित्रानुरागसुखानुबन्धनिदानानि।’ १. जीवित आशंसा, २. मरण आशंसा, ३. मित्र अनुराग, ४. सुख अनुबंध और ५. निदान ये ५ सल्लेखना के अतिचार हैं।
प्र.१५७. जीवित आशंसा किसे कहते है ?
उत्तर — सल्लेखना धारणा करके जीने की इच्छा करना जीवित आशंसा है।
प्र.१५८. मरण आशंसा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर — सल्लेखना व्रत धारण करके शीघ्र मरने की इच्छा करना मरण आशंसा है।
प्र.१५९. मित्र अनुराग क्या है ?
उत्तर — मित्रों के साथ की गई (पूर्व में) क्रीड़ाओं का अथवा सुख दु:ख में की गई सहायता आदि क्रियाओं का स्मरण करना मित्रानुराग है।
प्र.१६०. सुखानुबंध क्या है ?
उत्तर — पूर्व में अनुभवित परिवार व वैभव जनित विविध सुखों का बार—बार स्मरण करना सुखानुबंध है।
प्र.१६१. निदान किसे कहते हैं ?
उत्तर — परलोक में विषयभोगों की कामना करना निदान है।
प्र.१६२. दान का लक्षण क्या है ?
उत्तर —‘अनुग्रहार्थं स्वस्यातिसर्गो दानम्।’ अनुग्रह के लिये अपनी वस्तु का त्याग करना दान है।
प्र.१६३. अनुग्रह क्या है ?
उत्तर — अपना और दूसरे का उपकार करना अनुग्रह है।
प्र.१६४. पात्र दान के फल की क्या विशेषता है ?
उत्तर — ‘विधिद्रव्यदातृपात्रविशेषात्तद्विशेष:।’ विधि विशेष, द्रव्य विशेष, दाता विशेष और पात्र विशेष से दान के फल में विशेषता होती है।
प्र.१६५. पात्रदान क्या है ?
उत्तर — नवधा भक्ति द्वारा किया गया पडगाहन पात्रदान है ।
प्र.१६६. नवधा भक्ति किस प्रकार से है ?
उत्तर — १. पड़गाहन, २. उच्चासन, ३. पाद प्रक्षालन, ४. पूजन, ५. नमस्कार, ६. मन शुद्धि, ७. वचन शुद्धि , ८. काय शुद्धि, ९. भोजन शुद्धि ये नवधा भक्ति हैं।