उत्तर- नहीं! गन्धोदक को कभीनहीं पीना चाहिए। ये कोई अन्य मतों जैसा चरणामृत नहीं है कि सभी मंदिर में पीने लगें एवं जिस गन्धोदक को इतना महान बताया है, जिसकी हम वंदना करते हैं, भूमि पर गन्धोदक गिर जाए तो नौ बाार णमोकार मन्त्र पढ़ते हैं एवं उस गन्धोदक को मस्तक पर लगाते हैं। उसे पीने में तो गन्धोदक की अविनय है एवं अविवेकपूर्ण क्रिया है। क्योंकि गन्धोदक पीने से पेट में जाकर वह मलमूत्र में परिवर्तित होता है जिससे पाप का ही आश्रव होता है। गन्धोदक तो स्पर्श मात्र से ही पापों का नाश करता है। पीने की तो आवश्यकता ही नहीं। इस तरह गन्धोदक को लगाने के उपरांत हाथ जोड़कर विनय पाठ पढ़ें।
इह विधि ठाडों होय के, प्रथम पढ़े जो पाठ। धन्य जिनेश्वर देव तुम, नाशे कर्म जु आठ।। अनन्त-चतुष्टय के धनी, तुम ही हो सिरताज। मुक्तिवधू के कंत तुम तीन-भुवन के राज। तिहुं जग की पीड़ा हरन, भव-दधि शोषणहार। ज्ञायक हो तुम विश्व के, शिव-सुख के करतार।। हरता अघ-अंधियार के, करता धरम-प्रकाश। थिरतापद दातार हो, धरता निज-गुण-रास।। धर्मामृत उस जलधि सों, ज्ञान-भानु तुम रूप। तुमरे चरण सरोज को, नावत तिहुं-जग-भूप।। मैं वन्दों जिनदेव को, कर अति निर्मलभाव। कर्मबन्ध के छेदने, और न कुछ उपाव। भविजन को भव कूप ते, तुम ही काढ़नहार। दीनदयाल अनाथ पति, आतम गुण भण्डार।। चिदानन्द निर्मल कियो, धोय करमरज मैल। सरल कारी या जगत में, भविजन को शिव-गैल।। तुम पद पंकज पूजतैं, विघ्न-रोग टर जाय। शत्रु मित्रता को धरैं, विष निरविषता थाय। चक्री खगधर इन्द्रपद, मिलैं आपतें आप। अनुक्रम करि शिवपद लहैं, नेम सकल हनि पाप।। तुम बिन मैं व्याकुल भयो, जैसे जल बिन मीन। जनम जरा मेरी हरो, करो मोहि स्वाधीन।। पतित बहुत पावन किए गिनती कौन करेव। अंजन से तारे प्रभु, जय जय जय जिनदेव।। थकी नाव भवदधिविष, तुम प्रभु पार करेय। खेवटिया तुम हो प्रभु, जय जय जय जिनदेव।। राग संहिता जग में रूल्यो, मिले सरागी देव। वीतराग भेट्यों, अबै, मेटो राग कुटेव।। कित निगोद कित नारकी, कित तिर्यंच अज्ञान। आज धन्य मानुष भयो, पायो जिनवर थान।। तुमको पूजैं सुरपति, अहिपति नरपति देव। धन्य भाग्य मेरों भयो, करन लग्यों तुम सेव।। अशरण के तुम शरण हो, निराधार आधार। मैं डूबत भवसिंधु में, खेओ लगाओ पार।। इन्द्रादिक गणपति थके, कर विनती भगवान। अपनो विरद निहारिकै, कीजै आप समान।। तुम्हारी नेक सुदृष्टि तैं, जग उतरत है पार। हा हा डूब्यो जात हो, नेक निहार निकार।। जीम ैं कहहूं औरसों, तो न मिटे उर भार। मेरी तो तोसों बनी, तातैं करौं पुकार।। वन्दों पांचों परम गुरू, सुरगुरू वन्दत जास। विघ्नहरन मंगलकरन, पूरन परम प्रकाश। चैबीसों जिनपद नमों, नमों शारदा माय। श्ज्ञिवमग साधक साधु नमि, रज्यो पाठ सुखदाय।। मंगलमूर्ति परमपद पंच धरो नित ध्यान। हरी अमंगल विश्व का, मंगलमय भगवान।। मंगल जिनवर-पद नमो, मंगल अरहंत देव। मंगलकारी सिद्धपद सो वन्दों स्वयमेव।। मंगल आचारज मुनि मंगल गुरू उवज्झाय। सर्व साधु मंगल करो वन्दों मन-वच-काय।। मंगल सरस्वती-मात का मंगल जिनवरधर्म। मंगलमय मंगल करो, हरो असाता-कर्म।। या विधि मंगल-करन से जग में मंगल होत। मंगल ‘नाथूराम’ यह भवसागर दृढ़-पोत।। (पुष्पांजलि क्षिपेत्)
माँ-वन्दना
जिनवाणी जग मैय्या जनम दुःख मेट दो। जनम दुःख मेट दो मरण दुःख मेट दो।। सात तत्व छः छ्रवय बताए, हो उपकारी मैय्या। जो भी शरण में आया उसकी पार लगा दी नैय्या।। जनम दुख मेट दो....... संकट मोचन नाम तुम्हारा, तुम हो जग की मैय्या। हाथ जोडत्रकर शीश नवाऊं, पडूं तुम्हारे पैय्या। जनम दुख मेट दो.......
सूतक पातक में देव-शस्त्र-गुरू का पूजन-अभिषेक तथा मंदिर की अन्य धार्मिक उपकरणों का स्पशर्् न करें, शुद्धि न करें, शुद्धि होने के बाद ही पूजन इत्यादि करें-
सूतक/पातक - दिन जन्म का - 10 दिन गर्भपात हो जाए तो - जितने माह का गर्भ अतने दिन का प्रसूति स्त्री - 45 दिन का रजस्वला स्त्री - भोजन के लिए चैथे दिन शुद्ध दर्शन पूजन के लिए 5वे दिन शुद्ध व्यभिचारणी स्त्री एवं गर्भपात - आजीवन जानबूझकर कराए पातक-तीन पीढ़ी तक - 12 दिन चैथी, पांचवी, छठी तक - 4 दिन सातवीं, आठवीं नौवी पीढी तक - क्रम से 3 दिन, 24 घण्टे और स्नान मात्र मृत्यु-3 दिन के बालक को - 1 दिन 8 वर्ष के बालक की मृत्यु पर - 3 दिन 8 वर्ष से ऊपर - 12 दिन घर का देशांतर में मरण - 12 दिन पहले खबर सुने तो शेष दिन का। 12 दिन बाद सुने तो स्नान मात्र आत्म हत्या - 6 महीने का पालतू पशु घर में जनै - 1 दिन का दासी नौकर आदि घर में - 1 दिन का मरण हो तो 3 दिन का बच्चे को जन्म दे सन्याी या गृह त्यागी मरण - 1 दिन का