अगनिपात्र में धूप खेऊं सुगंधी। सरस्वति कृपा से करूं मोह बंदी।। जजूं तीर्थंकर दिव्यध्वनि को सदा मैं। करूं चित्त पवन नहा ध्वनि नदी में।।7।। ऊँ ह्मीं तीर्थंकरमुखकमलविनिर्गतद्वादशांगमयीसरस्वतीदेव्यै धूपं.............। अनंनास अंगूर केला फलों को। चढ़ाऊं महामोक्ष फल हेतु ध्वनि को।। जजूं तीर्थंकर दिव्यध्वनि को सदा मैं। करूं चित्त पवन नहा ध्वनि नदी में।।8।। ऊँ ह्मीं तीर्थंकरमुखकमलविनिर्गतद्वादशांगमयीसरस्वतीदेव्यै फलं..............। जलादी लिये स्वर्ण पुष्पों सहित मैं। करूं अर्घ अर्पण सरस्वति चरण में।। जजूं तीर्थंकर दिव्यध्वनि को सदा मैं। करूं चित्त पवन नहा ध्वनि नदी में।।9।। ऊँ ह्मीं तीर्थंकरमुखकमलविनिर्गतद्वादशांगमयीसरस्वतीदेव्यै अघ्र्यं.............।
पुष्पांजलिः।