|| छहढाला ||

श्रीस्गुरूदेवाय नमः

अध्यात्मप्रेमी कविवर पण्डित दौलतरामजी कृत

छहढाला

(सुबोध टीका)

जिस प्रकार वायु के स्पर्शन से अग्नि और अधिक प्रज्वलित हो जाती है, उसीप्रकार भावनाओं के चिन्तवन से समतारूपी सुख और अधिक वृद्धिंगत हो जाता है अर्थात् बाहर भावनाओं का चिन्तवन न तो रो-रोकर और न ही हंस-हंसकर; बल्कि वीतराग भाव से करना चाहिए, जिससे समतारूपी सुख उत्पन्न हो। Read More...