।। निर्वाणकाण्ड भाषा ।।

-गणिनीज्ञानमती

चाल- हे दीन बंधु...................................

वृषभेषगिरिकैलाशसेनिर्वाणपधारे।
चंपापुरीसेवासुपूज्यमुक्तिसिधारे।।
नेमीशऊर्जयंतसेनिर्वाणगयेहैं।
पावापुरीसेवीरपरमधामगयेहैं।।१।।

इंद्रादिवंद्यबीसजिनेश्वरकरमहने।
सम्मेदगिरिशिखरसेशिवगयेनमूंउन्हें।।
इनचारबीसजिनकीसदावंदनाकरूँ।
निर्वाणसौख्यप्राप्तिहेतुअर्चनाकरूँ।।२।।

बलभद्रसातऔरआठकोटिबताए।
यादवनरेन्द्रआर्षमेंहैंसाधुकहाये।।
गजपंथगिरिशिखरसेयेनिर्वाणगयेहैं।
इनकोनमूंयेमुक्तिमेंनिमित्तकहेहैं।।३।।

वरदत्तऔवरांगसागरदत्तमुनिवरा।
ऋषिऔरसाढ़ेतीनकोटिभव्यसुखकरा।।
येतारवरनगरसेमुक्तिधामपधारे।
मैंनित्यनमूंमुझकोभीसंसारसेतारें।।४।।

श्रीनेमिनाथऔप्रद्युम्नशंभुकुमारा।
अनिरुद्धकुमरपालियाभवदधिकाकिनारा।।
मुनिराजबाहत्तरकरोड़सातसौकहे।
येऊर्जयंतगिरिसेसभीमुक्तिकोलहें।।५।।

दोपुत्ररामचंद्रकेऔलाडनृपादी।
येपाँचकोटिसाधुवृंदनिजरसास्वादी।।
येपावागिरीवरशिखरसेमोक्षगयेहैं।
भविबंदकेनिर्वाणमेंयेहेतुकहेहैं।।६।।

जोपांडुपुत्रतीनऔरद्रविडनृपादी।
येआठकोटिसाधुपरमसमरसास्वादी।।
शत्रुजयाद्रिशिखरसेयेसिद्धहुएहैं।
इनकोनमूंयेसिद्धिमेंनिमित्तहुएहैं।।७।।

श्रीरामहनुमानऔसुग्रीवमुनिवरा।
जोगवगवाख्यनीलमहानीलसुखकरा।।
निन्यानवेकरोड़तुंगीगिरिसेशिवगये।
उनसबकीवंदनासेसर्वपापधुलगये।।८।।

जोअंगऔअनंगदोकुमारहैंकहे।
वेसाढ़ेपाँचकोटिमुनिसहितशिवगये।।
सोनागिरीशिखरहैसिद्धक्षेत्रइन्होंका।
इनकोनमूंइनभक्तिभवसमुद्रमेंनौका।।९।।

दशमुखनृपतिकेपुत्रआत्मतत्त्वकेध्याता।
जोसाढ़ेपाँचकोटिमुनिसहितविख्याता।।
रेवानदीकेतीरसेनिर्वाणपधारे।
मैंनित्यनमूंमुझकोभवोदधिसेउबारें।।१०।।

चक्रीशदोदशकामदेवसाधुपदधरा।
मुनिसाढ़ेतीनकोटिमुक्तिराज्यकोवरा।।
रेवानदीकेतीरअपरभागमेंसही।
मैंसिद्धवरसुकूटकोवंदूंजोशिवमही।।११।।

बड़वानिवरनगरमेंदक्षिणीसुभागमें।
हैचूलगिरिशिखरजोसिद्धक्षेत्रनाममें।।
श्रीइन्द्रजीतकुंभकरणमोक्षपधारे।
मैंनित्यनमूंउनकोसकलकर्मविडारें।।१२।।

पावागिरीनगरमेंचेलनानदीतटे।
मुनिवरसुवर्णभद्रआदिचारशिवबसे।।
निर्वाणभूमिकर्मकानिर्वाणकरेगी।
मैंनित्यनमूंमुझकोपरमधामकरेगी।।१३।।

फलहोड़ीश्रेष्ठग्राममेंपश्चिमदिशाकही।
श्रीद्रोणगिरिशिखरहैपरमपूतभूसही।।
गुरुदत्तआदिमुनिवरेन्द्रमृत्युकेजयी।
निर्वाणगयेनित्यनमूंपाऊँशिवमही।।१४।।

श्रीबालिमहाबालिनागकुमरआदिजो।
अष्टापदाद्रिशिखरसेनिर्वाणप्राप्तजो।।
उनकोनमूंवेकर्मअद्रिचूर्णकरचुके।
वेतोअनंतगुणसमूहपूर्णकरचुके।।१५।।

अचलापुरीईशानमेंमेढ़ागिरीकही।
मुनिराजसाढ़ेतीनकोटिउनकीशिवमही।।
मुक्तागिरीनिर्वाणभूमिनित्यनमूंमैं।
निर्वाणप्राप्तिहेतुअखिलदोषव| मैं।।१६।।

वंशस्थलीनगरकेअपरभागमेंकहा।
कुंथलगिरीशिखरजगतमेंपूज्यहोरहा।।
श्रीकुलभूषणऔदेशभूषणमुक्तिगयेहैं।
मैंनित्यन| उनकोवेकृतकृत्यहुएहैं।।१७।।

जसरथनृपतिकेपुत्रऔरपाँचसौमुनी।
निर्वाणगएहैंकलिंगदेशसेसुनी।।
मुनिराजएककोटिकोटिशिलासेकहे।
निर्वाणगएउनकोनमूंदुःखनारहे।।१८।।

श्रीपार्श्वकेसमवसरणमेंजोप्रधानथे।
वरदत्तआदिपाँचऋषीगुणनिधानथे।।
रेसिंदिगिरिशिखरसेवेनिर्वाणपधारे।
मैंउनकोनमूंवेसभीसंकटकोनिवारें।।१९।।

जिसजिसपवित्रथानसेजोजोमहामुनी।
निर्वाणपरमधामगयेहैंअतुलगुणी।।
मैंउनसभीकीनित्यभक्तिवंदनाकरूँ।
त्रिकरणविशुद्धकरनमूंशिवांगनावरूँ।।२०।।

मुनिराजशेषजोअसंख्यविश्वमेंकहे।
जिसजिसपवित्रथानसेनिर्वाणकोलहें।।
उनसाधुओंकी, क्षेत्रकीभीवंदनाकरूँ।
संपूर्णदुःखक्षयनिमित्तप्रार्थनाकरूँ।।२१।।

श्रीपार्श्वनागद्रहमेंकहेउनकोमैंनमूं।
श्रीमंगलापुरीमेंअभिनंदनंनमूं।।
पट्टणसुआशारम्यमेंमुनिसुव्रतेशको।
हैबार-बारवंदनाइनश्रीजिनेशको।।२२।।

पोदनपुरीमेंबाहुबलीदेवकोनमूं।
श्रीहस्तिनापुरीमेंशांति-कुंथु-अरनमूं।।
वाराणसीमेंश्रीसुपार्श्वपार्थजिनहुए।
उनकीकरूँमैंवंदनावेसौख्यकरहुए।।२३।।

मथुरामेंश्रीवीरकोनाऊँसुभालमैं।
अहिछत्रमेंश्रीपार्श्वकोवं, त्रिकालमैं।।
जंबूमुनीन्द्रजंबूविपिनगहनमेंआके।
निर्वाणप्राप्तहुएनमूंशीशझुकाके।।२४।।

जोपंचकल्याणकपवित्रभूमिकहीहै।
इसमध्यलोकमेंमहानतीर्थसहीहै।।
मनवचसुकायशुद्धिसहितशीशनमाके।
मैंनित्यनमस्कारकरूँहर्षबढ़ाके।।२५।।

श्रीवरनगरमेंपूज्यअर्गलदेवकोवंदें।
उनकेनिकटश्रीकुंडलीजिनेशकोवंदूं।।
शिरपुरमेंपार्श्वनाथकोमैंभावसेनमूं।
लोहागिरीकेशंखदेवनेमिकोनमूं।।२६।।

जोपाँचसौपचीसधनुषतुंगतनुधरें।
केशरकुसुमकीवृष्टिजिनपेदेवगणकरें।।
उनगोमटेशदेवकीमैंवंदनाकरूँ।
निजआत्मसौख्यप्राप्तिहेतुअर्चनाकरूँ।।२७।।

निर्वाणथानमध्यलोकमेंभीजोकहे।
अतिशयभरेअतिशयस्थानजगप्रथितरहें।।
इनसिद्धक्षेत्रसर्वकोहीशीशझुकाके।
मैंबारबारनमनकरूँध्यानलगाके।।२८।।

जोभव्यजीवभावशुद्धिसहितनित्यही।
निर्वाणकाण्डकोपढ़ेंत्रिकालमेंसही।।
चक्रीशइन्द्रपदकेवेसुखानुभवकरें।
पश्चात्परमानन्दमयनिर्वाणपदवरें।।२९।।

अंचलिका– कुसुमलताछंद

भगवन् !परिनिर्वाणभक्तिका, कायोत्सर्गकियाउसके।
आलोचनकरनेकीइच्छा, करनाचाहूँमैंरुचिसे।।
इसअवसर्पिणीमेंचतुर्थशुभ, कालउसीकेअंतिममें।
तीनवर्षअरुआठमासइक, पक्षशेषथाजबउसमें।।१।।

पावानगरीमेंकार्तिकशुभ, मासकृष्णचौदशतिथिमें।
रात्रिअंतनक्षत्रस्वातिसह, उषाकालकीबेलामें।।
वर्धमानभगवान्महतिमहावीरसिद्धिकोप्राप्तहुए।
तीनलोककेभावनव्यंतर, ज्योतिषकल्पवासिगणये।।२।।

निजपरिवारसहितचउविधसुर, दिव्यगंधदिवपुष्योंसे।
दिव्यधूपदिवचूर्णवासऔ, दिव्यस्नपनविधीकरते।।
अर्चेपूजेंवंदनकरते, नमस्कारभीनितकरते।
परिनिर्वाणमहाकल्याणक, पूजाविधिरुचिसेकरते।।३।।

मैंभीयहींमोक्षकल्याणक, कीनितहीअर्चनाकरूँ।
पूजनवंदनकरूँभक्तिसे, नमस्कारभीपुनःकरूँ।।
दुःखोंकाक्षयकर्मोंकाक्षय, होममबोधिलाभहोवे।
सुगतिगमनहोसमाधिमरणं, ममजिनगुणसंपत्तिहोवे।।४।।