।। गौतम गणधर पूजा ।।

गीताछंद

गणपति गणीश गणेशगणनायक गणीश्वर नामहैं।
गणनाथगणस्वामीगणाधिप आदिनामप्रधानहैं।।
उनइंद्रभूतिगणीन्द्र गौतमस्वामिगणधरकोजजूं।
स्थापनाकरकेयहाँ सबकार्यमेंमंगलभनँ।।१।।

ॐ ह्रीं श्रीगौतमगणधर परमेष्ठिन्! अत्रअवतर अवतरसंवौषट्आह्वाननं।
ॐ ह्रीं श्रीगौतमगणधरपरमेष्ठिन् !अत्रतिष्ठतिष्ठठःठःस्थापनं।
ॐ ह्रीं श्रीगौतमगणधरपरमेष्ठिन् !अत्रममसन्निहितोभवभववषट्सन्निधीकरणं।

अथाष्टक - नन्दीश्वर पूजन चाल

रेवानदिकाशुचिनीर, बाहरमलधोवे।
तुमचरणनधारादेत, अंतर्मलखोवे।।
श्रीगौतमगणधरदेव, पूर्जेमनलाके।
सबऋद्धिसिद्धिभरपूर, होवेंतुमध्याके।।१।।

ॐ ह्रीं श्रीगौतमगणधरस्वामिनेजन्मजरामृत्युविनाशनायजलंनिर्वपामीतिस्वाहा।

मलयजचंदनघनसार, तनकातापहरे।
तुमपदपूजातत्काल, अंतर्तापहरे।।
श्रीगौतमगणधरदेव, पूनँमनलाके।
सबऋद्धिसिद्धिभरपूर, होवेंतुमध्याके।।२।।

ॐ ह्रीं श्रीगौतमगणधरस्वामिनेसंसारतापविनाशनायचंदनं निर्वपामीतिस्वाहा।

तंदुलसितमुक्तारूप, धोकरभरलीने।
तुमपदआगेधरपुंज, आतमगुणचीन्हे।।
श्रीगौतमगणधरदेव, पूनँमनलाके।
सबऋद्धिसिद्धिभरपूर, होवेंतुमध्याके।।३।।

ऊँ ह्रीं श्रीमहावीर जिनेन्द्राय अक्ष्ज्ञयपदप्राप्तये अक्षंत निर्वपामीति स्वाहा।

चंपकवरहरसिंगार, सुरतरुसुमनलिया।
तुमकामजयीपदपूज, निजमनसुमनकिया।।
श्रीगौतमगणधरदेव, पूनँमनलाके।
सबऋद्धिसिद्धिभरपूर, होवेंतुमध्याके।।४।।

ॐ ह्रीं श्रीगौतमगणधरस्वामिनेकामबाणविध्वंसनायपुष्पं निर्वपामीतिस्वाहा।

लाडूबरफीपकवान, सुवरणथालभरे।
निजक्षुधानिवारणहेतु, तुमपदपूजकरें।।
श्रीगौतमगणधरदेव, पूनँमनलाके।
सबऋद्धिसिद्धिभरपूर, होवेंतुमध्याके।।५।।

ॐह्रींश्रीगौतमगणधरस्वामिनेक्षुधारोगविनाशनायनैवेद्यं निर्वपामीतिस्वाहा।

कर्पूरशिखाप्रज्वाल, दीपकज्योतिजले।
तुमपदपूजततत्काल, अंतरज्योतिजले।।
श्रीगौतमगणधरदेव, पूर्जेमनलाके।
सबऋद्धिसिद्धिभरपूर, होवेंतुमध्याके।।६।।

ॐ ह्रीं श्रीगौतमगणधरस्वामिनेमोहान्धकारविनाशनायदीपं निर्वपामीतिस्वाहा।

दशगंधसुगंधितधूप, खेवतधूम्रउड़े।
निजअशुभकरमहोंभस्म, उसकीधूम्रउड़े।।
श्रीगौतमगणधरदेव, पूनँमनलाके।
सबऋद्धिसिद्धिभरपूर, होवेंतुमध्याके।।७।।

ॐह्रींश्रीगौतमगणधरस्वामिनेअष्टकर्मदहनायधूपंनिर्वपामीतिस्वाहा।

बादामसुपारीसेव, उत्तमफललाऊँ।
गणनाथचरणयुगपूज, वांछितफलपाऊँ।।
श्रीगौतमगणधरदेव, पूर्जेमनलाके।
सबऋद्धिसिद्धिभरपूर, होवेंतुमध्याके।।८।।

ॐ ह्रीं श्रीगौतमगणधरस्वामिनेमोक्षफलप्राप्तयेफलं निर्वपामीतिस्वाहा।

जलगंधादिकवसुद्रव्य, लेकरअर्घ्यकरूं।
अनुपमनिजपदकेहेतु, तुमपदभक्तिकरूँ।।
श्रीगौतमगणधरदेव, पूर्जेमनलाके।
सबऋद्धिसिद्धिभरपूर, होवेंतुमध्याके।।९।।

ॐ ह्रीं श्रीगौतमगणधरस्वामिनेअनर्घ्यपदप्राप्तयेअर्घ्य निर्वपामीतिस्वाहा।

गुरुचरणनजलकीधार, देकरशांतिकरूँ।
सबजगमेंशांतीहेतु, शांतीधारकरूँ।।
श्रीगौतमगणधरदेव, पूर्जेमनलाके।
सबऋद्धिसिद्धिभरपूर, होवेंतुमध्याके।।१०।।

शांतये शांतिधारा।

वकुलादिककुसुममंगाय, पुष्पांजलिकरमैं।
सबविघ्नअमंगलदोष, नायूँइकपलमें।।
श्रीगौतमगणधरदेव, पूनँमनलाके।
सबऋद्धिसिद्धिभरपूर, होवेंतुमध्याके।।११।।

पुष्पांजलिं क्षिपेत्।

जाप्य - ॐ ह्रीं श्रीगौतम स्वामिने नमः (१०८ या ९ बार )।

जयमाला

दोहा

परमब्रह्मपरमात्मा, परमानंदनिलीन।
गाऊँतुमगुणमालिका, होवेभवदुखक्षीण।।१।।

रोला छंद

जयजयगणधरदेव, जयजयगुणगणस्वामी।
महावीरजिनदेव, समवसरणमेंनामी।।
जयजयविघ्नसमूह, नाशकविश्वप्रसिद्धा।
सप्तऋद्धिपरिपूर्ण, चारविज्ञानसमृद्धा।।२।।

इन्द्रभूतितुमनाम, महाविभूतिप्रदाता।
ब्राह्मणकुलअवतंस, गौतमगोत्रविख्याता।।
शास्त्रमहोदधितीर्ण, पांचशतकतुमछात्रा।
तुमसमहीदोभ्रात, गर्वितसहितसुछात्रा।।३।।

छ्यासठदिनपर्यंत, प्रभुकीखिरीनवाणी।
सौधर्मेंद्रउपाय, कीनोअतिसुखठानी।।
गौतमशालामाहि, वृद्धरूपधरआया।
तुमसबविद्याधीश, इससेतुमतकआया।।४।।

मेरेगुरुमहावीर, आतमध्यानलगाये।
भूलगयामैंअर्थ, जोजोश्लोकपढ़ाये।।
यदिदोअर्थबताय, तोतुमशिष्यबनूँमैं।
नहिंतोहोवोशिष्य, मुझगुरुकेयेचहूँमैं।।५।।

त्रैकाल्यंइत्यादि, जबयहश्लोकपढ़ाहै।
अर्थबोधसेहीन, मनआश्चर्यबढ़ाहै।।
चलोगुरूकेपास, मैंशास्त्रार्थकरूँगा।
तुमहोछात्रअजान, गुरुसेअर्थकहूँगा।।६।।

उभयभ्रातकेसाथ, सबशिष्योंकोलेके।
चलेइंद्रकेसाथ, समवसरणअवलोके।।
मानस्तंभनिहार, मानगलितहुआसारा।
वचन "जयतुभगवान्" स्तुतिरूपउचारा।।७।।

निजमिथ्यात्वविनाश, जिनदीक्षाकोलीना।
दिव्यध्वनितत्काल, प्रगटीभविसुखदीना।।
द्वादशांगमयग्रंथ, गौतमगुरुनेकीने।
गणधरपदकोपाय, सबऋद्धीधरलीने।।८।।

वीरप्रभूनिर्वाण, केदिनकेवलपायो।
इन्द्रसभीमिलआय, गंधकुटीरचवायो।।
केवलज्ञानकल्याण, पूजाइन्द्ररचेहैं।
केवलज्ञानमहान, लक्ष्मीकोभीजजेहैं।।९।।

इसीहेतुसबलोग, दीपावलीनिशामें।
गणपतिलक्ष्मीदेवि, पूजेंधनरुचिमनमें।।
बारहवर्षविहार, भविउपदेशदियाहै।
पुनःअघातिविनाश, मोक्षप्रवेशकियाहै।।१०।।

गणधरपूजासत्य, सर्वसंपदादेवें।
धनधान्यादिकपूर, मोक्षसंपदादेवें।।
इसहेतूहमआज, गणधरचरणजजेहैं।
"केवलज्ञान" प्रकाश, हेतूआपभजेहैं।।११।।

दोहाचौबीसोंजिनराजकी, गणधरगणनाजान।
चौदहसौबावनकही, तिनपदजर्जेमहान्।।१२।।

ॐ ह्रीं श्रीगौतमगणधर परमेष्ठिने जयमाला अर्घ्य निर्वपामीतिस्वाहा।

दोहा
जोपूजेंगणधरचरण, करेंविघ्नघनहान।
जगकेसबसुखभोगके, क्रमसेलेंनिर्वाण।।

॥ इत्याशीर्वादः ॥