।। महामन्त्र णमोकार ।।
jain temple255

णमो अरिहंताणं,
णमो सिद्धाणं,
णमो आाइरियाणं,
णमो उवज्झायाणं,
णमो लोएसव्वसाहूणं ।

1. मन्त्र किसे कहते हैं ?

  1. जिसमें अनन्त शक्ति और अनन्त अर्थ विद्यमान रहता है, उसे मन्त्र कहते हैं।
  2. जिसका पाठ करने मात्र से कार्य की सिद्धि होती है, उसे मन्त्र कहते हैं।

2. णमोकार मन्त्र किसे कहते हैं, यह किस भाषा एवं किस छंद में लिखा गया है?

जिस मन्त्र में पाँचों परमेष्ठियों को नमस्कार किया गया हो, वह णमोकार मन्त्र है। यह प्राकृत भाषा एवं आर्या छंद में लिखा गया है।

3. इस मन्त्र में किसी व्यक्ति विशेष को नमस्कार क्यों नहीं किया?

इस मन्त्र में व्यक्ति विशेष को नहीं अपितु गुणों से युक्त जीवों को नमस्कार किया है, क्योंकि जैन दर्शन की यह विशेषता है कि इसमें व्यक्ति विशेष को नहीं बल्कि व्यक्तित्व को नमस्कार किया जाता है।

4. इस णमोकार मन्त्र की रचना किसने की?

इस मन्त्र की रचना किसी ने भी नहीं की, यह अनादिनिधन मन्त्र है, अर्थात् यह अनादिकाल से है और अनन्तकाल तक रहेगा।

5. णमोकार मन्त्र को सर्वप्रथम किस आचार्य ने किस ग्रन्थ में लिपिबद्ध किया था?

णमोकार मन्त्र को आचार्यश्री पुष्पदन्तजी महाराज ने षट्खण्डागम ग्रन्थ के प्रथम खण्ड में मङ्गलाचरण के रूप में द्वितीय शताब्दी में लिपिबद्ध किया था।

6. णमोकार मन्त्र के पर्यायवाची नाम बताइए?

1. अनादिनिधन मन्त्र  

 यह मन्त्र शाश्वत है, इसका आदि है और ही अन्त है।
2. अपराजित मन्त्र  यह मन्त्र किसी से पराजित नहीं हो सकता है।
3. महा मन्त्र  सभी मन्त्रों में महान् अर्थात् श्रेष्ठ है।
4. मूल मन्त्र

 सभी मन्त्रों का मूल अर्थात् जड़ है, जड़ के बिना वृक्ष नहीं रहता हैइसी प्रकार इस मन्त्र के अभाव में कोई भी मन्त्र टिक नहीं सकता है|

5. मृत्युञ्जयी मन्त्र

 इस मन्त्र से मृत्यु को जीत सकते हैं अर्थात् इस मन्त्र के ध्यान से मोक्ष को भी  प्राप्त कर सकते हैं।

6. सर्वसिद्धिदायक मन्त्र  इस मन्त्र के जपने से सभी ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त हो जाती हैं।
7. तरणतारण मन्त्र  इस मन्त्र से स्वयं भी तर जाते हैं और दूसरे भी तर जाते हैं।
8. आदि मन्त्र  सर्व मन्त्रों का आदि अर्थात् प्रारम्भ का मन्त्र है।
9. पञ्च नमस्कार मन्त्र  इसमें पाँचों परमेष्ठियों को नमस्कार किया गया है।
10. मङ्गल मन्त्र

 यह मन्त्र सभी मङ्गलों में प्रथम मङ्गल है।

11. केवल ज्ञान मन्त्र  इस मन्त्र के माध्यम से केवलज्ञान भी प्राप्त कर सकते हैं।

7. णमोकार मन्त्र से कितने मन्त्रों की उत्पत्ति हुई है?

इस मन्त्र से चौरासी लाख मन्त्रों की उत्पति हुई है।

8. णमोकार मन्त्र कब और कहाँ-कहाँ पढ़ना चाहिए?

दु:खे-सुखे भयस्थाने, पथि दुर्गेरणेऽपि वा।
श्री पञ्चगुरु मन्त्रस्य, पाठः कार्यः पदे—पदे ।
(णमोकार मन्त्र माहात्मय, 12)

अर्थ- दु:ख में, सुख में, डर के स्थान में, मार्ग में, भयानक स्थान में, युद्ध के मैदान में एवं कदम-कदम पर णमोकार मन्त्र का जाप करना चाहिए।

9. क्या अपवित्र दशा में णमोकार मन्त्र का जाप कर सकते हैं?

अपवित्रः पवित्रोऽवा सुस्थितो दुःस्थितोऽपि वा।
ध्यायेत्पञ्चनमस्कारं, सर्वपापैः प्रमुच्यते। (पूजा पीठिका)

अर्थ- यह मन्त्र हमेशा सभी जगह स्मरण कर सकते हैं, पवित्र व अपवित्र दशा में भी, किन्तु जोर से उच्चारण पवित्र दशा में ही करना चाहिए। अपवित्र दशा में मात्र मन में ही पढ़ना चाहिए।

10. क्या सभी जगह णमोकार मन्त्र जपने से एकसा फल मिलता है?

नहीं।

गृहे जपफलं प्रोक्तं वने शतगुणं भवेत्।
पुण्यारामे तथारण्ये सहस्रगुणितं मतम्।
पर्वते दशसहस्रं च नद्यां लक्षमुदाहृतं ।
कोटि देवालये प्राहुरनन्तं जिनसन्निधो।
(णमोकार मन्त्र कल्प, पृ.1o5)

अर्थ- घर में मन्त्राराधना करने से एक गुना, वन में सौ गुना, बगीचे तथा सघन वन में हजारगुना, पर्वत पर दस हजार गुना, नदी तट पर लाख गुना, देवालय में करोड़ गुना और जिनेन्द्रदेव के समक्ष अनन्त गुणा फल मिलता है। अत: मन्त्राराधना देवालय या जिनेन्द्र देव के समक्ष करना ही श्रेष्ठ है।

11. प्रयोग के द्वारा णमोकार मन्त्र कैसे श्रेष्ठ हुआ?

ग्वालियर में णमोकार मन्त्र का अनुष्ठान हुआ, कोटि मन्त्र का जाप हुआ, वहाँ पर णमोकार मन्त्र की श्रेष्ठता देखने के लिए दो गमलों में दो पौधे रोपे गए एक पौधे के लिए साधारण जल प्रतिदिन डाला जाता था और दूसरे पौधे पर मन्त्र से मंत्रित जल डाला जाता था। कुछ दिनों बाद देखा गया कि मंत्रों से मंत्रित जल जिस पौधे पर डाला जाता था, वह पौधा बड़ी तेजी से विकसित हो रहा था तथा जिसमें सामान्य जल डाला जा रहा था, उसके बढ़ने की स्थिति बहुत कम थी।

12. णमोकार मन्त्र में कितने पद, अक्षर, मात्राएँ, व्यञ्जन एवं स्वर होते हैं?

namokar-mantra-aarth

नोट- (1) स्वर सहित व्यञ्जन को ही यहाँ गिनना है।
जैसे-णमो अरिहंताण में, ण, मो, रि, ह, ता, ण = 6 इसी प्रकार आगे भी।

(2) 35 अक्षर किन्तु स्वर 34 हैं। मन्त्र शास्त्र के अनुसार णमो अरिहंताण पद में अ का लोप हो जाता है।
मात्रा गिनना – । = एक (लघु) ऽ = दो (गुरु)

namokar-mantra-matra

नोट- प्राकृत भाषा में ए, ऐ, ओ, औ, हृस्व, दीर्घ एवं प्लुत तीनों भेद होते हैं। (ध.पु. 13/247) अत: लोए में ए को हृस्व मानने से 58 मात्राएँ होंगी।

13. परमेष्ठियों के वाचक मन्त्र कितने-कितने अक्षर वाले हैं?

पणतीस सोल छप्पण चदुदुगमेगं च जवहज्झाएह।
परमेट्टिवाचयाण अण्ण च गुरूवएसेण। (द्र.सं., 49)

अर्थ- परमेष्ठियों के वाचक 35, 16, 6, 5, 4, 2 और 1 अक्षर के मन्त्रों को जपो और ध्यान करो तथा गुरु के उपदेश के अनुसार अन्य भी मन्त्रों को जपो और ध्यान करो। 35 अक्षर वाला मन्त्र तो आप ऊपर पढ़ चुके हैं। आगे 16 अक्षर वाला—अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो नमः या अरिहन्त सिद्ध आइरियाउवज्झाया साधु।

6 अक्षर वाला मन्त्र  अरिहंत सिद्ध और अरिहंत साधु ।
5 अक्षर वाला          असिआउसा और नमः सिद्धेभ्यः ।
4 अक्षर वाला          अरिहन्त और असिसाहू।
2 अक्षर वाला           सिद्ध और अह। 
1 अक्षर वाला          अ, ओम, र्ह्रं, श्रीं और ह्रीं  । 

14. ‘ओम शब्द में पञ्च परमेष्ठी किस प्रकार गर्भित हो जाते हैं?

अरहंता असरीरा आइरिया तह उवज्झया मुणिणो।
पढमक्खरणिप्पणो ओोंकारो पञ्च परमेट्टी। (द्र.सं.टी.49)

अर्थ- अरिहंत का 'अ', सिद्ध का अपर नाम अशरीरीका'अ', आचार्यका'आ', ध्यायका'उ' और साधु का अपर नाम मुनि का 'म' , इस प्रकार अ+अ+आ+उ+म इन सब अक्षरों की सन्धि कर देने से ‘ओम्’ बना। ‘ओम्’ की आकृति च 1भी लिखी जाती है।

15. णमोकार मन्त्र 9 बार या 108 बार क्यों जपते हैं?

9 का अङ्क शाश्वत है, उसमें कितनी भी संख्या का गुणा करें और गुणनफल को आपस में जोड़ने से 9 ही रहता है। जैसे 9x3=27 (2+7=9) अतः शाश्वत पद पाने के लिए 9 बार पढ़ा जाता है। कर्मो का आस्रव 108 द्वारों से होता है, उसको रोकने हेतु 108 बार णमोकार मन्त्र जपते हैं। प्रायश्चित में 27 या 108 श्वासोच्छवास के विकल्प में 9 बार या 36 बार णमोकार मन्त्र पढ़ सकते हैं।

16. णमोकार मन्त्र को श्वासोच्छवास में किस प्रकार पढ़ते हैं?

णमोकार मन्त्र को तीन श्वासोच्छवास में पढ़ते हैं। श्वास ग्रहण करते समय णमो अरिहंताण, श्वास छोड़ते समय णमो सिद्धाणं, पुनः श्वासग्रहण करते समय णमो आइरियाणं, श्वास छोड़ते समय णमो उवज्झायाणं और अन्त में पुनः श्वास लेते समय णमो लोए एवं श्वास छोड़ते समयसव्वसाहूर्ण बोलना चाहिए।

17. जाप करने की कौन-कौन सी विधियाँ हैं?

जाप करने की तीन विधियाँ हैं- कमल जाप, हस्ताङ्गली जाप और माला जाप।

1. कमल जाप विधि :- अपने हृदय में आठ पाँखुड़ियों के एक श्वेत कमल का विचार करें। उसकी प्रत्येक पाँखुड़ी पर पीतवर्ण के बारह-बारह बिन्दुओं की कल्पना करें तथा - मध्य की गोलवृत-कर्णिका में बारह बिन्दुओं का चिन्तन करें। इन 108 बिन्दुओं के प्रत्येक बिन्दु पर एक-एक मन्त्र का जाप करते हुए 108 बार इस मन्त्र जाप करें।

2. हस्ताङ्गली जाप विधि :- तर्जनी, मध्यमा एवं अनामिका तीनों अंगुली का उपयोग करके जाप करना। चित्र में दिए गए एक-एक भाग के ऊपर अंगूठे को रखते हुए 9 बार मन्त्र जपते हुए बारह बार में 108 बार होते हैं। तब पूरी जाप होती है।

3. माला जाप :- 108 दाने की मालाद्वारा जापकरें। (मङ्गल मन्त्र णमोकार एकअनुचिन्तन, पृ.72-74)

18. मन्त्रोच्चारण जाप एवं ध्यान किस दिशा में करना चाहिए?

मन्त्रोच्चारण जाप एवं ध्यान के लिए पूर्व एवं उत्तरमुख होने को शुभ बताया है क्योंकि प्रत्येक दिशा का अलग-अलग फल है।

पूर्व - मोहान्तक (मोह का नाश करने वाली है)

दक्षिण - प्रज्ञान्तक (प्रज्ञा अर्थात् बुद्धि का नाश करने वाली है।)

पश्चिम - पदमान्तक (हृदय की भावनाओं को नष्ट करने वाली है।)

उत्तर - विध्नान्तक (विध्नों का नाश करने वाली है।)

19. आचार्यों ने उच्चारण के आधार पर मन्त्र जाप कितने प्रकार से कहा है?

चतुर्विधा हि वाग्वैखरी मध्यमा पश्यन्ती सूक्ष्माश्चेति । (त.अ.पृ.66)

  1. वैखरी - जोर-जोर से बोलकर णमोकार मन्त्र का जाप करना जिसे दूसरे लोग भी सुन लें।
  2. मध्यमा - इसमें होठ नहीं हिलते किन्तु अन्दर जीभ हिलती रहती है।
  3. पश्यन्ति - इसमें न होठ हिलते हैं और न जीभ हिलती है, इसमें मात्र मन में ही चिन्तन करते हैं।
  4. सूक्ष्म - मन में जो णमोकार मन्त्र का चिन्तन था वह भी छोड़ देना सूक्ष्म जाप है। जहाँ पास्यउपासक भेद समाप्त हो जाता है। अर्थात् जहाँ मन्त्र का अवलम्बन छूट जाए वो ही सूक्ष्म जाप है।

20. णमोकार मन्त्र व्रत के कितने उपवास किए जाते हैं?

णमोकार मन्त्र व्रत के 35 उपवास किए जाते हैं।

21. इस व्रत में कौन-कौन सी तिथि में कितने-कितने उपवास किए जाते हैं?

इस व्रत में पञ्चमी के 5 , सप्तमी के 7, नवमी के 9 तथा चौदस के 14 उपवास किए जाते हैं।

22. यह व्रत कब प्रारम्भ किया जाता है?

आषाढ़ शुक्ल सप्तमी से या किसी भी माह की पञ्चमी, सप्तमी, नवमी या चौदस से प्रारम्भ किया जाता है।

23. इस मन्त्र का क्या प्रभाव है?

यह पञ्च नमस्कार मन्त्र सभी पापों का नाश करने वाला है तथा सभी मङ्गलों में प्रथम मङ्गल है। यथा

एसो पञ्च णमोयारो सव्वपावप्पणासणो ।
मङ्गलाणं च सव्वेसिं पढमं होई मङ्गलं ।

मङ्गल शब्द का अर्थ दो प्रकार से किया जाता है।

  1. मङ्ग = सुख। ल = लाति, ददाति, जो सुख को देता है, उसे मङ्गल कहते हैं।
  2. मङ्गल-मम् = पापं । गल = गालयतीति = अर्थात् जो पापों का गलाता है नाश करता हैं, उसे मङ्गल कहते हैं।

लौकिक मङ्गल में - कन्या, पीले सरसों, हाथी, जल से भरे कलश, दूध पीता बछड़ा आदि शुभ हैं।

पारलौकिक मङ्गल में - अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधु परमेष्ठी शुभ हैं।

24. णमोकार मन्त्र की क्या महिमा है?

यह मन्त्र सभी मन्त्रों का राजा माना जाता है, इसके स्मरण से पूर्वोपार्जित कर्म नष्ट हो जाते हैं, जिससे अनेक प्रकार के शारीरिक, मानसिक कष्ट दूर हो जाते हैं। सिंह, सर्प आदि भयंकर जीवों का भय नहीं रहता है। भूत, व्यंतर आदि भाग जाते हैं। हलाहल विष भी अपना असर त्याग देता है। इस मन्त्र के सुनने मात्र से अनेक जीवों ने उच्च गति एवं विद्याओं को प्राप्त किया था। जिसके अनेक उदाहरण शास्त्रों में आते हैं। जैसे-

  1. पद्मरुचि सेठ ने बैल को णमोकार मन्त्र सुनाया तो वह सुग्रीव हुआ था। विशेष-बैल पहले राजा वृषभध्वज बना बाद में सुग्रीव तथा पद्यरुचि रामचन्द्र जी हुए।
  2. रामचन्द्र जी ने जटायु पक्षी को णमोकार मन्त्र सुनाया तो वह स्वर्ग में देव हुआ था।
  3. जीवन्धर कुमार ने कुत्ते को णमोकार मन्त्र सुनाया तो वह यक्षेन्द्र हुआ।
  4. अञ्जनचोर ने णमोकार मन्त्र पर श्रद्धा रखकर आकाशगामी विद्या को प्राप्त किया।

25. णमोकार मंत्र की महिमा का कोई दूसरा दृष्टान्त बताइए?

आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज एक शहर से गुजर रहे थे। एक मुस्लिम भाई का मात्र एक बेटा था। उस बेटे को सर्प ने काट लिया था। जिसे उस शहर के जो भी तन्त्रवादी, मन्त्रवादी थे, सब उसके बेटे का इलाज कर चुके थे, लेकिन उसका जहर नहीं उतार पाए। अकस्मात् आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज उस रास्ते से गुजर रहे थे। उनको देख मुस्लिम भाई ने उनके पैर पकड़ लिए और कहने लगा, आप पहुँचे हुए फकीर हैं, आपके पास जरूर कोई मन्त्र सिद्धि है, कृपया मेरे बेटे का जहर उतार दीजिए। मेरा यह इकलौता बेटा है, मैं आपका जन्म भर उपकार मानूँगा। आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज श्रेष्ठ साधक थे, उनके पास सिद्धियाँ थी। उन्होंने तुरन्त अपने कमण्डलु से जल लेकर मंत्रित किया और उसके ऊपर छींटा तो वह बेटा ठीक हो गया।

26. मन्त्रों में और भी कोई चमत्कारिक शक्तियाँ हैं?

मन्त्रों में अनेक चमत्कारिक शक्तियाँ हैं। जिनसे महाशक्तिशाली देवों को भी वश में किया जाता है। वर्षा, तूफान आदि को भी रोका जाता है और यह मन्त्र सर्प-विष दूर करने में जगत् प्रसिद्ध है।

27. चतारि दण्डक में आचार्य, उपाध्याय क्यों नहीं लिए?

आचार्य और उपाध्याय विशेष पद हैं, जो कि संघ के संचालन हेतु दीक्षा, प्रायश्चित और शिक्षा आदि की अपेक्षा निश्चित किए हैं। अत: इन्हें साधुपरमेष्ठी में ही गर्भित किया है। जैसे - लोकव्यवहार की संस्थाओं में अध्यक्ष, मन्त्री, कोषाध्यक्ष आदि हुआ करते हैं व्यवस्था के लिए।

28. णमोकार मन्त्र के उच्चारण करने से कितने सागर के पाप कट जाते हैं?

णमोकार मन्त्र के एक अक्षर का भी भक्ति पूर्वक नाम लेने से सात सागर के पाप कट जाते हैं, पाँच अक्षरों का पाठ करने से पचास सागर के पाप कट जाते हैं तथा पूर्ण मन्त्र का उच्चारण करने से पाँच सौ सागर के पाप कट जाते हैं। (त.अ.उद्धृत 63)