अथ नवमोऽध्यायः
Stoppage and Shedding of Karma
आस्त्रवनिरोधः संवरः।।1।।

{आस्त्रवनिरोधः} आस्त्रव का रोकना सो {संवरः} संवर है अर्थात् आत्मा में जिन कारणों से कर्मों का आस्त्रव होता है उन कारणों को दूर करने से कर्मों का आना रूक जाता है उसे संवर कहते हैं।

The obstruction of influx is stoppage (samvara)

स गुप्तिसमितिधर्मानुप्रेक्षापरीषहजयचारित्रैः।।2।।

{गुप्तिसमितिधर्मानुप्रेक्षापरीषहजयचारित्रैः} तीन गुप्ति, पांच समिति, दस धर्म, बारह अनुप्रेक्षा, बावीस परीषहजय और पांच चारित्र - इन छः कारणों से {सः} संवर होता है।

Stoppage (is effected) by control, carefulness, virtue, contemplation, conquest by endurance, and conduct.

तपसा निर्जरा च।।3।।

{तपसा} तप से {निर्जरा च} निर्जरा होती है और संवर भी होता है।

By penance (austerity) dissociation also.

सम्यग्योगनिग्रहो गुप्तिः।।4।।

{सम्यक्योगनिग्रहो} भले प्रकार योग का निग्रह करना सो {गुप्तिः} गुप्ति है।

Curbing activity well is control (gupti).

ईयाभाषैषणादाननिक्षेपोत्सर्गाः समितय।।5।।

{ईयाभाषैषणादाननिक्षेपोत्सर्गाः} सम्यक् ईर्या, सम्यक् भाषा, सम्यक् एषणा, सम्यक आदाननिक्षेप और सम्यक् उत्सर्ग - ये पांच {समितयः} समिति हैं। (चैथे सूत्र का ’सम्यक् शब्द इस सूत्र में भी लागू होता है।)

Walking, speech, eating, lifting and laying down, and depositing waste products constitute the five-fold regulation of activities.

उत्तमक्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिंचन्य- ब्रह्मचर्याणि धर्मः।।6।।

{ उत्तमक्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिंचन्य-ब्रह्मचर्याणि } उत्तम क्षमा, उत्तम मर्दव, उत्तम आर्जव उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन्य और उत्तम ब्रह्मचर्य - ये दस {धर्मः} धर्म हैं।

Supreme forbearance, modesty, straightforwardness, purity, truthfulness, self-restraint, austerity, renunciation, non-attachment, and celibacy constitute virtue or duty.

अनित्याशरणसंसारैकत्वान्यत्वाशुच्यास्त्रवसंवरनिर्जरा-
लोकबोधिदुर्लभधर्मस्वाख्यातत्वानुचिनतनमनुप्रेक्षाः।।7।।

{ अनित्याशरणसंसारैकत्वान्यत्वाशुच्यास्त्रवसंवरनिर्जरा-लोकबोधिदुर्लभधर्मस्वाख्यातत्वानुचिनतनम्} अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्त्रव, संवर निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ और धर्म - इन बारह के स्वरूपक बारम्बार चिन्तवन करना सो {अनुप्रेक्षाः} अनुप्रेक्षा है।

Reflection is meditating on transitoriness, helpness-ness, transmigration, loneliness, distinctness, impurity, influx, stoppage, dissociation, the universe, rarity of enlightenment, and the truth proclaimed by religion.

मार्गाच्यवननिर्जरार्थं परिषोढव्याः परीषहाः।।8।।

{मार्गाच्यवननिर्जरार्थं} संवार के मार्ग से च्युत न होने और कर्मों की निर्जरा के लिए {परीषहाः परिषोढव्याः} बाईस परीषह सहन करने योग्य हैं। (यह संवर का प्रकरण चल रहा है, अतः इस सूत्र में कहे गये ’मार्ग’ शब् का अर्थ ’संवर का मार्ग’ समझना।)

The afflictions are to be endured so ss not to swerve from the path of stoppage of karmas and for the sake of dissociation of karmas.

क्षुत्पिपासाशीतोष्णदंशमशकनाग्न्यारतिस्त्रीचर्यानिषद्या- शय्याक्रोधशवधयाचनाऽलाभरोगतृणस्पर्शमल- सत्कारपुरस्कारप्रज्ञाऽज्ञानादर्शनानि।।9।।

{क्षुत्पिपासाशीतोष्णदंशमशकनाग्न्यारतिस्त्रीचर्यानिषद्या-शय्याक्रोधशवधयाचनाऽलाभरोगतृणस्पर्शमल- सत्कारपुरस्कारप्रज्ञाऽज्ञानादर्शनानि } क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण, दंशमशक, नाग्न्य, अरति, स्त्री, चर्या, निषद्या, शय्या, आक्रोश, वध, याचना, अलाभ, रोग, तृणस्पर्श, मल, सत्कारपुरस्कार, प्रज्ञा, अज्ञान और अदर्शन, ये बाईस परीषह हैं।

Hunger, thirst, cold, heat, insect-bites, nakedness, absence of pleasures, women, pain arising from roaming, discomfort of posture, uncomfortable couch, scolding, injury, begging, lack of gain, illness, pain inflicted by blades of grass, dirt, reverence and honour (good as well as bad reception), (conceit of) learning, despair or uneasiness arising from ignorance, and lack of faith (are the twenty-two hardships).

सूक्ष्मसाम्परायच्छद्मस्थवीतरागयोक्ष्चतुर्दश।।10।।

{सूक्ष्मसाम्परायच्छद्मस्थवीतरागयो} सूक्ष्मसाम्पराय वाले जीवों के और छद्मस्थ वीतरागों के {चतुदर्श} 14 परीषह होती हैं।

Fourteen afflictions occur in the case of the saints in the tenth and twelfth stages.

एकादश जिने।।11।।

{जिने} तेरहवें गुणस्थान में जिनेन्द्रदेव के {एकादश} ऊपर बतलाई गई चैदह में से अलाभ, प्रज्ञा और अज्ञान इन तीन को छोड़कर बाकी की ग्यारह परीषह होती हैं।

Eleven afflictions occur to the Omniscient Jina.

बादरसाम्पराये सर्वे।।12।।

{बादरसाम्पराये}बादरसाम्पारय अर्थात् स्थूलकषाय वाले जीवों के {सर्वे} सर्व परीषह होती हैं।

All the afflictions arise in the case of the ascetic with gross passions.

ज्ञानावरणे प्रज्ञाऽज्ञाने।।13।।

{ज्ञानावरणे} ज्ञानावरणीय के उदय से {प्रज्ञाऽज्ञाने} प्रज्ञा और अज्ञा ये दो परीषह होती हैं।

Extraordinary learning and ignorance are caused by knowledge-covering karmas.

दर्शनमोहान्तराययोरदर्शनालाभौ।।14।।

{दर्शनमोहान्तराययोंः} दर्शनमोह और अन्तराय कर्म के उदय से {अदर्शनालाभौ} क्रम से अदर्शन और अलाभ परीषह होती हैं।

Midbelief and lack of gain are caused by faith-deluding and obstructive karmas.

चारित्रमोहे नाग्न्यारतिस्त्रीनिषद्याक्रोशयाचना- सत्कारपुरस्काराः।।15।।

{चारित्रमो} चारित्रमोहनीय के उदय से { नाग्न्यारतिस्त्रीनिषद्याक्रोशयाचनासत्कारपुरस्काराः} नग्नता, अरति, स्त्री, निषद्या, आक्रोश, याचना और सत्कारपुरस्कार - ये सात परीषह होती हैं।

(The afflictions of) nakedness, absence of pleasures, woman, sitting posture, reproach, begging, and reverence and honour, are caused by conduct-deluding karmas.

वेदनीये शेषाः।।16।।

{वेदनीय} वेदनीय कर्म के उदय से {शेषाः} बाकी की ग्यारह परीषह अर्थात् क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण, दंशमशक, चर्या, शय्या, वध, राग, तृणस्पर्श, और मल - ये परीषह होती है।

The other afflictions are caused by feeling are caused by feeling karmas.

एकादयो भाज्या युगपदेकस्मिन्नैकोनविंशतिः।।17।।

{एकस्मिन् युगपत्} एक जीव के एक साथ {एकादयो} एक से लेकर {आ एकोनविंशतिः} उन्नीस परीषह तक {भाज्याः} जानना चाहिए।

The afflictions can occur simultaneously from one to nineteen.

सामायिकच्छेदोपस्थापनापरिहारविशुद्धसूक्ष्मसाम्पराय-
यथाख्यातमिति चारित्रम्।।18।।

{ सामायिकच्छेदोपस्थापनापरिहारविशुद्धसूक्ष्मसाम्पराययथाख्यातम्} सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात {इति चारित्रम्} इस प्रकार चारित्र के 5 भेद हैं।

Equanimity, reinitiating, purity of non-injury, slight passion, and perfect conduct are the five kinds of conduct.

अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्याग-
विविक्तशय्यासनकायक्लेशा बाह्यं तपः।।19।।

{अनशनावमौदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्यागविविक्तशय्यासनकायक्लेशा} सम्यक् प्रकार से अनशन, सम्यक् अवमौदर्य, सम्यक् वृत्तिपरिसंख्यान, सम्यक् रसपरित्याग, सम्यक् विविक्तशय्यासन औरसम्यक् कायक्लेश - ये {बाह्यं तपः} छ प्राकर के बाह्य तप हैं।

(The external austerities are) fasting, reduced diet, special restrictions for begging food, giving up stimulating and delicious dishes, lonely habitation, and mortification of the body.

प्रायक्ष्चित्तविनयवैयावृत्यस्वाध्यायव्युत्सर्गध्यानानयुत्तरम्।।20।।

{प्रायक्ष्चित्तविनयवैयावृत्यस्वाध्यायव्युत्सर्गध्यानानि} सम्यक् रूप से प्रायश्चित्त, सम्यक् विनय, वैयावृत्य, सम्यक् स्वाध्याय, सम्यक् व्युत्सर्ग और सम्यक् ध्यान {उत्तरम्} ये छः प्रकार के अभ्यन्तर तप हैं।

Expiation, reverence, service, study, renunciation, and meditiation are the internal austerities.

नवचतुर्दशपंचद्विभेदा यथाक्रमं प्राग्ध्यानात्।।21।।

{प्राक् ध्यानात्} ध्यान से पहले के पांच तप के {यथाक्रमं} अनुक्रम से {नवचतुर्दशपंचद्विभेदाः} नव, चार, दस, पांच, और दो भेद हैं अर्थात् सम्यक् प्रायश्चित के नव,सम्यक् विनय के चार, सम्यक् वैयावृत्य के दस, सम्यक् स्वाध्याय के पांच और सम्यक् व्युत्सर्ग के दो भेद हैं।

Prior to meditation, these are of nine, four, ten, five, and two kinds respectively.

आलोचनप्रतिक्रमणतदभयविवेकव्युत्सर्गपश्छेद- परिहारोपस्थापनाः।।22।।

{आलोचनप्रतिक्रमणतदभयविवेकव्युत्सर्गपश्छेदपरिहारोपस्थापनाः} आलोचना, प्रतिक्रमण, तदुभय, विवके, व्युत्सर्ग, तप, छेद, परिहार उपस्थापना, ये प्रायश्चित्त तप के नव भेद हैं।

Confession, repentance, both, discrimination, giving up attachment to the body, penance, suspension, expulsion, and reinitiation.

ज्ञानदर्शनचारित्रोपचाराः।।23।।

{ज्ञानदर्शनचारित्रोपचाराः} ज्ञानविनय, दर्शनविनय, चारित्रविनय और उपचारविनय - ये विनय तप के चार भेद हैं।

Reverence to knowledge, faith, conduct, and the custom of homage.

आचार्योपाध्यायतपस्विशैक्ष्यग्लानगणकुलसंघसाधु- मनोज्ञानाम्।।24।।

{ आचार्योपाध्यायतपस्विशैक्ष्यग्लानगणकुलसंघसाधुमनोज्ञानाम्} आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शैक्ष्य, ग्लान, गण, कुल, संघ, साधु, और मनोज्ञ - इस दस प्रकार के मुनियों की सेवा करना सो वैयावृत्य तप के दस भेद हैं।

Respectful service to the Head (acarya), the preceptor, the ascetic, the disciple, the ailing ascetic, the congregation of aged saints, the congregation of disciples of a common teacher, the congregation of the four orders (of monks, nuns, laymen, and laywomen,) the long-standing ascetic, and the saint of high reputation.

वाचनापृच्छनानुप्रेक्षाम्नायधर्मोपदेशाः।।25।।

{वाचनापृच्छनानुप्रेक्षाम्नायधर्मोपदेशाः} वचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा, आम्नाय और धर्मोपदेश ‘- ये स्वाध्याय के पांच भेद हैं।

Teaching, questioning, reflection, recitation, and preaching.

बाह्याभ्यन्तरोपध्योः।।26।।

{बाह्याभ्यन्तरोपध्योः}बाह्य उपधिव्युत्सर्ग और अभ्यंतर उपधिव्युत्सर्ग - ये दो व्युत्सर्ग तप के भेद हैं।

Giving up external and internal attachments.

उत्तमसंहननस्यैकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानमान्तर्मुहूर्तात्।।27।।

{उत्तमसंहननस्य} उत्तम संहनन वाले के {आ अन्तर्मुहूर्तात्} अन्र्तुहूर्त तक {एकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानम्} एकाग्रतापूर्वक चिन्ता का निरोध सो ध्यान है।

Concentration of thought on one particular object is meditation. In the case of a person with the best physical structure or constitution it extends up to one muhurta.

आर्तरौद्रधम्र्यशुक्लानि।।28।।

{आर्तरौद्रधम्र्यशुक्लानि} आर्त, रौद्र, धर्म और शुक्ल - ये ध्यान के चार भेद हें।

The painful (sorrowful), the cruel, the virtuous (righteous), and the pure.

परे मोक्षहेतू।।29।।

{परे} जो चार प्रकार के ध्यान कहे उनमें से अंत के दो अर्थात् धर्मध्यान और शुक्लध्यान {मोक्षहेतू} मोक्ष के कारण हैं।

The last two are the causes of liberation.

आर्तममनोज्ञस्य सम्प्रयोग तद्विप्रयोगाय स्मृतिसमन्वाहारः।।30।।

{अमनोज्ञस्य सम्प्रयोग} अनिष्ट पदार्थ का संयोग होने पर {तद्विप्रयोगाय} उसके दूर करने के लिए {स्मृतिसमन्वाहारः} बारम्बार विचार करना सो {आर्तम्} ’अनिष्ट संयोगज’ नाम का आर्तध्यान है।

On the contact of disagreeale objects, thinking again and again for their removal is the first kind of sorrowful concentration.

विपरीतं मनोज्ञस्य।।31।।

{मनोज्ञस्य} मनोज्ञ पदार्थ सम्बन्धी {विपरीतं} उपरोक्त सूत्र में कहे हुए से विपरीत अर्थात् इष्ट-पदार्थ का वियोग होने पर उसके संयोग के लिए बारम्बार विचार करना सो ’इष्ट-वियोगज’ नाम का आर्तध्यान है।

The contrary in the case of agreeable objects.

वेदनायाक्ष्च।।32।।

{वेदनायाः च} रोगजनित पीडा होने पर उसे दूर करने के लिए बारम्बार चिन्तवन करना सो वेदनाजन्य आर्तध्यान है।

In the case of suffering from pain also.

निदानं च।।33।।

{निदानं च} भविष्यकाल सम्बन्धी विषयों की प्राप्ति में चित्त को तल्लीन कर देना सो निदानज आर्तध्यान है।

The wish for enjoyment also.

तदविरतदेशविरतप्रमत्तसंयतानाम्।।34।।

{तत्} वह आर्तध्यान {अविरतदेशविरतप्रमत्तसंयतानाम} अविरत - पहले चर गुणस्थान, देशविरत - पांचवां गुणस्थान और प्रमत संयत - छट्ठे गुणस्थान में होता है।

These occur in the case of laymen with and without small vows and non-vigilant ascetics.

हिंसाऽनृतस्तेयविषयसंरक्षणेभ्यो रौद्रमविरतदेशविरतयोः।।35।।

{हिंसाऽनृतस्तेयविषयसंरक्षणेभ्यो} हिंसा, असत्य चोरी और विषय-संरक्षण के भाव से उत्पन्न हुआ ध्यान {रौद्रम} रौद्रध्यान है; वह ध्यान {अविरतदेशविरतयोः} अविरत और देशविरत {पहले से पांच} गुणस्थानों में होता है।

Cruel concentration relating to injury, untruth, stealing, and safeguarding of possessions occurs n the case of laymen with and without partial vows.

आज्ञापायविपाकसंस्थानविचयाय धम्र्यम्।।36।।

{आज्ञापायविपाकसंस्थानविचयाय} आज्ञाविचय, अपायविचय, विपाकविचय और संस्थानविचय के लिये चिन्तवन करना सो {धम्र्यम्} धर्मध्यान है।

The contemplation of objects of revelation, misfortune or calamity, fruition of karmas, and the structure of the universe, is virtuous concentration.

शुक्ले चाद्ये पूर्वविदः।।37।।

{शुक्ले चाद्ये} पहले दो प्रकार के शुक्लध्यान अर्थात् पृथक्त्ववितर्क और एकत्ववितर्क - ये दो ध्यान भी {पूर्वविदः} पूर्वज्ञानधरी श्रुतकेवली के होते हैं।

The first two types of pure concentration are attained by the saints well-versed in the purvas.

परे केवलिनः।।38।।

{परे} शुक्लध्यान के अंतिम दो भेद अर्थात् सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति और व्युपरतक्रियानिवर्ति ये दो ध्यान {केवलिनः} केवलि भगवान के होते हैं।

The last two arise in the omniscients.

पृथक्त्वैकत्ववितर्कसूक्ष्मक्रियाप्रतिपातिव्युपरत- क्रियानिवर्तीनि।।39।।

{पृथक्त्वैकत्ववितर्कसूक्ष्मक्रियाप्रतिपातिव्युपरतक्रियानिवर्तीनि} पृथक्त्ववितर्क, एकत्ववितर्क, सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति और व्युयपरतक्रियानिवर्ति - ये शुक्लकध्यान के चार भेद हैं।

(The four types of pure concentration are) that of different, scriptural, shifting, that of the single scriptural, that of subtle activity, and that of complete destruction of activity1.

त्र्येकयोगकाययोगायोगानाम्।।40।।

{त्र्येकयोगकाययोगायोगानाम्} ऊपर कहे गये चार प्रकार के शुक्लध्यान अनुक्रम से तीन येग वाले, एक योग वाले, मात्र काययोग वाले और अयोगी जीवों के होते हैं।

Of three activities, one activity, bodily activity, and no activity.

एकाश्रये सवितर्कवीचारे पूर्वे।।41।।

{एकाश्रये} एक (-परिपूर्ण) श्रुतज्ञानी के आश्रय से रहने वाले {पूर्वे} शुक्लध्यान के पहले दो भेद {सवितर्कवीचारे} वितर्क और वीचार सहित हैं।

1 Prathaktvavitarka, ekatvavitarka, suksmakriyapratipati and uyuparatakriyanivarti are the Sanskrit names of the four types of pure concentration.

The first two types are based on one substratum and are associated with scriptural knowledge and shifting.

अवीचारं द्वितीयम्।।42।।

{द्वितीयम्} ऊपर कहे गये शुक्लयानों में से दूसरा शुक्लध्यान {अवीचारं} वीचार से रहित है, किंतु सवितर्क होता है।

The second type is free from shifting.

वितर्कः श्रुतम्।।43।।

{श्रुतम्} श्रुतज्ञान को {वितर्कः} वितर्क कहते हैं।

Vitarka is scriptural knowledge.

वीचारोऽर्थव्यंजनयोगसंक्रांतिः।।44।।

{अर्थव्यंजनयोगसंगक्रान्तिः} अर्थ, व्यंजन और योग का बदलना सो {वीचारः} वीचार है।

Vicara is shifting with regard to objects, words and activities.

सम्यग्दृष्टिश्रावकविरतानन्तवियोजकदर्शनमोह-
क्षपकोपशमकोपाशान्तमोहक्षपकक्षीणमोहजिनाः
क्रमशेऽसंख्येयगुणनिर्जराः।।45।।

{सम्यग्दृष्टिश्रावकविरतानन्तवियोजकदर्शनमोहक्षपकोपशमकोपाशान्तमोहक्षपकक्षीणमोेहजिनाः} सम्यग्दृष्टि, पंचम गुणस्थानवर्ती श्रावक, विरत-मुनि, अनन्तानुबन्धी का विसंयोकजन करने वाला दर्शनमोह का क्षय करने वाला, उपशमश्रेणी मांडनेवाला, उपशान्तमोह, क्षपकश्रेणी मांडनेवाला, क्षीणमोह और जिन - इन सब के (अन्र्तुहूर्त पर्यन्त परिणामों की विशुद्धता की अधिकता से आयुकर्म को छोडकर) प्रति समय {क्रमशः असंख्येयगुणनिर्जराः} क्रम से असंख्यातगुणी निर्जरा होती है।

The dissociation of karmas increases innumerable-fold from stage to stage n the ten stages of the right believer, the householder with partial vows, the ascetic with great vows, the separator of the passions leading to infinite births, the destroyer of faith-deluding karmas, the suppressor of conduct-deluding karmas, the saint with quiescent passions, the destroyer of delusion, the saint with destroyed delusion, and the spiritual victor (Jina).

पुलाकबकुशकुशीलनिग्र्रन्थस्नातका निग्र्रन्थाः।।46।।

{पुलाकबकुशकुशीलनिग्र्रन्थस्नातका} पुलाक, बकुश, कुशील, निग्र्रन्थ और स्नातक - ये पांच प्रकार के {निग्र्रन्था} निग्रन्थ हैं।

Palaka, Bakusa, Kusila, Nirgrantha, and Sanataka are the passionless saints.

संयमश्रुतप्रतिसेवनातीर्थलिंगलेश्योपपादस्थानविकल्पतः साध्याः।।47।।

उपरोक्त मुनि {संयमश्रुतप्रतिसेवनातीर्थलिंगलेश्योपपादस्थानविकल्पतः} संयम श्रुत, प्रतिसेवना, तीर्थ, लिंग, लेश्या, उपपाद और स्थान - इन आठ अनुयोगों द्वारा {साध्याः} भेदरूप से साध्य हैं, अर्थात् इन आठ प्रकार से इन पुलाकादि मुनियों में विशेष भेद होते हैं।

They are fit to be described (differentiated) on the basis of differences in self-restraint, scriptural knowledge, transgression, the period of Tirthamkara, the sign, the colouration, birth, and the state of condition.

।। इति तत्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रे नवमोध्यायः।।