नवग्रहस्तोत्र को पढ़ने की एवं नवग्रह विधान को करने की परंपरा जैन समाज में हमेशा से चली आ रही है। ज्योतिषी पंडितों के कहे अनुसार किसी की जन्मकुंडली में कौन से ग्रहों का अशुभ योग चल रहा है, यह जानकर जैन बंधु भी गुरूओं के पास आकर शांति का उपाय पूछते हैं तब उन्हें उन-उन ग्रहों के स्वामी तीर्थंकर भगवंतों की पूजा करने का एवं मंत्र जपने का उपाय बताया जाता है। यह व्यवस्था प्राचीन है आज की नहीं है। यद्यपि ये ग्रह-सूर्य, चंद्रमा, शनि आदि किसी का कुछ भी बिगाड़ या सुधार नहीं करते हैं। ये सब अपनी-अपनी गति से गमन कर रहे हैं। फिर भी ये संसारी लोगों के सुख-दुख में निमित्त अवश्य बन जाते हैं। जैसे र्कोइ श्रेष्ठी व्यापारिक कार्य के लिए प्रस्थान कर रहे है, सामने यदि मोर नाचते हुए दिख जाए या मंगल कलश आदि शकुन दिख जावे तो व्यापार में लाभ हो जाता है, जिस कार्य के लिए प्रस्थान है उस कार्य की सिद्धि हो जाती है। यदि इसे विपरीत किसी के प्रस्थान के समय सामने बिल्ली आ जावे, रोने लगे आदि, तो प्रस्थान करने वालों के कार्यों की सिद्धि न होकर हानि देखी जाती है। इसमें न तो मोर ने कुछ सोचा, न कुछ किया। न बिल्ली ने कुछ सोचा, न किया। ये निमित्त मात्र हैं। वैसे ही इन ग्रहों की गति का योग समझना चाहिए। फिर भी अशुभ योग की शांति के लिए तीर्थंकर भगवंतों की पूजा ही सक्षम है।
लगभग दश वर्ष पूर्व मेरे मन में नवग्रहशांति जिनमंदिर को बनवाने की भावना जाग्रत हुई थी। तब मैंने इस विषय में ग्रंथों का अवलोकन शुरू किया। एक ग्रंथ में नवग्रह यंत्र उपलब्ध हुआ जो कि नव भगवंतों का था, देखकर प्रसन्नता हुई। तभी मैंने उस आधार से ताम्रपट्ट पर ’नवग्रहशांतियंत्र’ में नव भगवंतों के चरण बनवोय जो कि अनेक मंदिरों में विराजमान किये गये। पुनः हस्तिनापुर त्रिमूर्ति मंदिर में एक अष्ट दल का कमल बनवाकर उस पर कर्णिका समेत धातु के 5-5 इंची के नव भगवान विराजमान कराये। मांगीतुंगी में सुधबुध गुफा के पास भी मेरी प्रेणा से नवग्रह के भगवंतों के नव चरण विराजमान हुए हैं।
पुनः भगवान महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर में नंद्यावर्त महल परिसर में एक ’नवग्रशांति जिन मंदिर’ बनाया गया। इसमें नव भगवान विराजमान किये गये है। जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर में भी नवग्रह शांति जिनमंदिर की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा दिनांक 7 से 11 फरवीर 2008 तक सम्पन्न हुई है। यहां अष्टधातु में निर्मित नवग्रह के अरिष्ट को दूर करने वाले नव तीर्थंकर भगवनतें की बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं सुन्दर कमलासनों पर विराजमान की गई है। साथ ही प्रयत्न करने पर दक्षिण से नवग्रह के स्वामी नव प्रतिमाओं का एक चित्र भी प्राप्त हुआ। यह चित्र ’भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ’ भाग-5, कर्नाटक पुस्तक में भी उपलब्ध हुआ है। इन्हीं नव भगवन्तों के नव-नव मंत्र भी उपलब्ध हुए हैं। उन्हें यहां दे रहे हैं।
’नवग्रहशांति विधान’ . आर्यिका चंदनामती
नवग्रह शांतिकर नवतीर्थंकर भगवान-
श्री जिनसागरसूरि रचित नवग्रहशांति विधान है। उसमें भी एक-एक ग्रहों की शांति हेतु एक-एक तीर्थंकर के नाम हैं। यथा-
सूर्य ग्रह के लिए पद्प्रभ, सोमग्रह के लिए चंद्रप्रभ, मंगलग्रह हेतु वासुपूज्य, बुधग्रह के लिए मल्लिनाथ, गुरूग्रह हेतु वर्धमान, शुक्रग्रह हेतु पुष्पदंतनाथ, शनिग्रह हेतु मुनिसुव्रतनाथ, राहुग्रह हेतु नेमिनाथ एवं केतुग्रह के लिए पाश्र्वनाथ भगवान हैं। ये इन नवग्रहों के स्वामी माने हैं।
1. ऊँ नमोऽर्हते भवते श्रीमते पद्मप्रभतीर्थंकराय कुसुमयक्षमनोवेगायक्षीसहिताय ऊँ आं क्रौं ह्रीं ह्यः आदित्यमहाग्रह! मम (...................1) सर्वदुष्टग्रहरोगकष्टनिवारणं कुरू कुरू सर्वशांतिं कुरू कुरू सर्वसमृद्धिं कुरू कुरू इष्टसंपदां कुरू कुरू अनिष्टनिवारणं कुरू कुरू धनधान्यसमृद्धिं कुरू कुरू काममांगल्योत्सवं कुरू कुरू हूँ फट् स्वाहा। (7000 जाप्य) अथवा- ऊँ नमोऽर्हते भवते श्रीमते पद्मप्रभतीर्थंकराय कुसुमयक्षमनोवेगायक्षीसहिताय ऊँ आं क्रौं ह्रीं ह्यः आदित्यमहाग्रह! मम (...................) दुष्टग्रहरोगकष्टनिवारणं सर्वशांतिं कुरू कुरू हूँ फट् स्वाहा। (7000 जाप्य)
2. ऊँ नमोऽर्हते भवते श्रीमते चन्द्रप्रभतीर्थंकराय विजययक्षज्वाला-मालिनीयक्षीसहिताय ऊँ आं क्रौं ह्रीं ह्यः सोममहाग्रह! मम (...................) दुष्टग्रहरोगकष्टनिवारणं सर्वशांतिं कुरू कुरू हूँ फट् स्वाहा। (11000 जाप्य)
3. ऊँ नमोऽर्हते भवते श्रीमते वासुपूज्यर्तीािंकराय षण्मुख्यक्षगांधारीय-क्षीसहिताय ऊँ आं क्रौं ह्रीं ह्यः कुजमहाग्रह! मम (...................) दुष्टग्रहरोगकष्टनिवारणं सर्वशांतिं कुरू कुरू हूँ फट् स्वाहा। (10000 जाप्य)
4. ऊँ नमोऽर्हते भवते श्रीमते मल्लिनाथतीर्थंकराय कुबेरयक्षअपरा-जितायक्षीसहिताय ऊँ आं क्रौं ह्रीं ह्यः बुधमहाग्रह! मम (...................) दुष्टग्रहरोगकष्टनिवारणं सर्वशांतिं कुरू कुरू हूँ फट् स्वाहा। (14000 जाप्य)
5. ऊँ नमोऽर्हते भवते श्रीमते वर्धमानतीर्थंकराय मातंगयक्षसिद्धायिनी-यक्षीसहिताय ऊँ आं क्रौं ह्रीं ह्यः गुरूमहाग्रह! मम (...................) दुष्टग्रहरोगकष्टनिवारणं सर्वशांतिं कुरू कुरू हूँ फट् स्वाहा। (19000 जाप्य)
6. ऊँ नमोऽर्हते भवते श्रीमते पुष्पदंतनाथतीर्थंकराय अजितयक्षमहा-कालीयक्षीसहिताय ऊँ आं क्रौं ह्रीं ह्यः शुक्रमहाग्रह! मम (...................) दुष्टग्रहरोगकष्टनिवारणं सर्वशांतिं कुरू कुरू हूँ फट् स्वाहा। (16000 जाप्य)
7. ऊँ नमोऽर्हते भवते श्रीमते मुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय वरूणयक्ष-बहुरूपिणीयक्षीसहिताय ऊँ आं क्रौं ह्रीं ह्यः शनिमहाग्रह! मम (...................) दुष्टग्रहरोगकष्टनिवारणं सर्वशांतिं कुरू कुरू हूँ फट् स्वाहा। (23000 जाप्य)
8. ऊँ नमोऽर्हते भवते श्रीमते नेमिनाथतीर्थंकराय सर्वाण्हयक्ष-कूष्माण्डीयक्षीसहिताय ऊँ आं क्रौं ह्रीं ह्यः राहुमहाग्रह! मम (...................) दुष्टग्रहरोगकष्टनिवारणं सर्वशांतिं कुरू कुरू हूँ फट् स्वाहा। (18000 जाप्य)
9. ऊँ नमोऽर्हते भवते श्रीमते पाश्र्वनाथतीर्थंकराय धरणेन्द्रयक्षपद्मावती-यक्षीसहिताय ऊँ आं क्रौं ह्रीं ह्यः केतुमहाग्रह! मम (...................) दुष्टग्रहरोगकष्टनिवारणं सर्वशांतिं कुरू कुरू हूँ फट् स्वाहा। (7000 जाप्य)
इनके लघु मंत्र भी इस प्रकार हैं-
1. ऊँ ह्रीं अर्हं सूर्यग्रहारिष्टनिवारक-श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय नमः सर्वशांतिं कुरू कुरू स्वाहा।
2. ऊँ ह्रीं अर्हं सोमग्रहारिष्टनिवारक-श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय नमः सर्वशांतिं कुरू कुरू स्वाहा।
3. ऊँ ह्रीं अर्हं मंगलग्रहारिष्टनिवारक-श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय नमः सर्वशांतिं कुरू कुरू स्वाहा।
4. ऊँ ह्रीं अर्हं बुधग्रहारिष्टनिवारक-श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय नमः सर्वशांतिं कुरू कुरू स्वाहा।
5. ऊँ ह्रीं अर्हं गुरूग्रहारिष्टनिवारक-श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय नमः सर्वशांतिं कुरू कुरू स्वाहा।
6. ऊँ ह्रीं अर्हं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक-श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय नमः सर्वशांतिं कुरू कुरू स्वाहा।
7. ऊँ ह्रीं अर्हं शनिग्रहारिष्टनिवारक-श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय नमः सर्वशांतिं कुरू कुरू स्वाहा।
8. ऊँ ह्रीं अर्हं राहुग्रहारिष्टनिवारक-श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय नमः सर्वशांतिं कुरू कुरू स्वाहा।
9. ऊँ ह्रीं अर्हं केतुग्रहारिष्टनिवारक-श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय नमः सर्वशांतिं कुरू कुरू स्वाहा।
णमोकार महामंत्र के एक-एक पद भी एक-एक ग्रह की शांति के लिए माने गये हैं, जो कि सूर्य, चन्द्र, आदि के नबर से दिये गये हैं -
1. ऊँ ह्रीं णमो सिद्धाणं। (7000)
2. ऊँ ह्रीं णमो अरिहंताणं। (11000)
3. ऊँ ह्रीं णमो सिद्धाणं। (10000)
4. ऊँ ह्रीं णमो उवज्झायाणं। (14000)
5. ऊँ ह्रीं णमो उवज्झायाणं। (19000)
6. ऊँ ह्रीं णमो उवज्झायाणं। (10000)
7. ऊँ ह्रीं णमो सव्वसाहूणं (23000)
8. ऊँ ह्रीं णमो सव्वसाहूणं (18000)
9. ऊँ ह्रीं णमो सव्वसाहूणं (10000)
सर्वत्र ’जिनवाणी’ एवं ’पूजा पाठ प्रदीप’ आदि में नवग्रहों के स्वामी चैबीसों तीर्थंकर माने हैं। इन्हें भिन्न-भिन्न ग्रहों में विभक्त किया है-