।। श्री गौतम गणधर पूजा ।।

श्री गौतम गणईश शीष यह तुम्हे नमा कर
आव्हानन अब करूँ आय तिष्ठो मानस पर।
पाके केवल ज्योति ज्ञाननिधि हुए गुणाकर।
निज लक्ष्मी का दान करो मेरे घट आ कर।
श्री गौतम गण ईश जी तिष्ठो मम उर आय।
ज्ञान-लक्ष्मी पति बने, मेरी मानव काय।

ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्त श्री गौतमगणधराय पुष्पांजलिः।

वसंतिका छन्द

गांगेय वारि शुचि प्रासुक दिव्य ज्योति।
जन्मादि कष्ट निज वारण को लिया ये।
संसार के अखिल त्रास निवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बुज –में चढाता।

ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय जलं निर्वपामीति स्वाहा।

कर्पूर युक्त मलयागिर को घिसाया
संसार ताप शमनार्थ इसे बनाया
संसार के अखिल त्रास निवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बुज –में चढाता।

ॐ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय सुगन्धं निर्वपामीति स्वाहा।

मुक्ताभ अक्षत सुगन्धि चुना चुना के,
व्याधिन अक्षत-पदार्थ सजा सजा के।
संसार के अखिल त्रास निवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बुज –में चढाता।

ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।

कन्दर्प दर्प दलनार्थ नवीन ताजे,
बेला गुलाब मच्कुन्द सु पार्जाती।
संसार के अखिल त्रास निवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बुज –में चढाता।

ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।

क्षीरादि मिश्रित अमीघ बल प्रदाता,
पक्कान्न थाल यह भूख निवारने को।
संसार के अखिल त्रास निवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बुज –में चढाता।

ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय नैवेद्यम निर्वपामीति स्वाहा।

रत्नादि दीप नवज्योति कपूर वर्ती,
उद्दाम-मोह-तम- तोम सभी हटाने।
संसार के अखिल त्रास निवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बुज –में चढाता।

ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय दीपम निर्वपामीति स्वाहा।

अज्ञान मोह मद से भव में भ्रमाता,
ये दुष्ट कर्म, तिस नाशन को दशांगी।
संसार के अखिल त्रास निवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बुज –में चढाता।

ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय धूपम निर्वपामीति स्वाहा।

केला अनार सह्कार सुपक्क जामू,
ये सिद्धमिष्ठ फल मोक्षफलाप्ति को मैं।
संसार के अखिल त्रास निवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बुज –में चढाता।

ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय फलम निर्वपामीति स्वाहा।

पानीय आदि वसु द्रव्य सुगन्धयुक्त,
लाया प्रशांत मन से निज रूप पाने।
संसार के अखिल त्रास निवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बुज –में चढाता।

ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय अय॑म निर्वपामीति स्वाहा।

।। जयमाला ।।

वीर जिनेश्वर के प्रथम गणधर-गौतम-पाय।
नमन करूँ कर जोडकर स्वर्ग मोक्ष फल दाय।।

हरिगीत्तिका

जय देव श्रीगौतम गणेश्वर। प्रार्थना तुमसे करूँ।
सब हटा दो कष्ट मेरे अर्ध्य ले आरती करूँ।
हे गणेश। कृपा करो, अब आत्म ज्योति पसार दो।
हम हैं तुम्हारे सदय हो दुर्वासनायें मार दो।
वीर प्रभुनिर्वाण-क्षण में था सम्हाला आपने।
अब चोड तुमको जाउँ कहँ घेरा चहूँ दिशि पाप ने।
है दिवस वह ही नाथ। स्वामीवीर के निर्वाण का।
जग के हितैषी बिज्ञ गौतम ईष केवल ज्ञान का।
नाथ। अब कर के कृपा हम्को सहारा दीजिये।
दीपमाला-आरती पूजा गृहम मम कीजिये।
दीपमाला-आरती पूजा गृहण मम कीजिये।

ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय अर्ध्यम निर्वपामीति स्वाहा।

ज्योति पुंज गणपति प्रभो। दूर करो अज्ञान
समता रस से सिक्त हो नया उगे उर भानु।।

।। महावीराष्टक-स्तोत्रम ।।

(कविवर भागचन्द्र)

शिखरिणी छन्द

यदीये चैतन्ये मुकर इव भावाश्चिदचितः,
समंभांतिध्रौव्य-व्यय-जनि-लसंतोंत-रहिताः।
जगत-साक्षी-मार्ग-प्राकटन-परो भानुरिव यो,
महावीरस्वामी नयनपथ-गामी भवतु मे।।
अतानं यच्चक्षुः कमल-युगलं-स्पन्द-रहितम,
जनान कोपापायं प्रकटयति वाभ्यंतरमपि।
स्फुटं मूर्ति-र्यस्य प्रशमितमयी वातिविमला,
महावीर स्वामी नयनपथ-गामी भवतु मे।
नमन नाकेन्द्राली-मुकुट-मनि-भा-जाल-जटि-लम
लसत पादाम्भोज-द्वयमिह यदीयं तनुभृताम्।
भवज्जवाला-शांत्यैप्रभवति जलम वा स्मृतमपि,
महावीर स्वामी नयनपथ-गामी भवतु मे।
यदर्चा-भावेन प्रमुदित-मना दर्दुर इह,
क्षणादासीत स्वर्गी गुण-गणसमृद्धः सुखनिधिः।
लभंते सद्भक्ताः शिव-सुख-समाजं किमु तदा,
महावीर स्वामी नयनपथ-गामी भवतु मे।
कनत स्वर्णाभासोप्यपगत-तनु-ज्ञान-निवहो,
विचित्रात्माप्येकोनृपति-वर-सिद्धार्थ-तनयः।
अजन्मापि श्रीमान विगत-भव-रागोद्भुत-गतिः,
महावीर स्वामी नयनपथ-गामी भवतु मे।
यदीया वाग्गंगा विविध-नय-कल्लोल-विमला,
बृहज्ज्ञानाम्भोभि-गति जनतां या स्नपयति।
इदानी-मप्येषा बुध-जन-मरालैः परिचिता,
महावीर स्वामी नयनपथ-गामी भवतु मे।
अनिर्वारोद्रेक-स्त्रिभुवन-जयी काम-सुभटः
कुमारावस्थायामपि निज-बलायेन विजितः।
स्फुरन नित्यानन्द-प्रशम-पद-राज्याय स जिनः,
महावीर स्वामी नयनपथ-गामी भवतु मे।
महा-मोहांतक-प्रशमन-पराकस्मिक-भिषग,
निरापेक्षो बन्धु-विदित-महिमा मंगल-करः।
शरण्यः साधूनां भव-भय-भूआ-मुत्तम-गुणो,
महावीर स्वामी नयनपथ-गामी भवतु मे।
महावीराष्टकं स्त्रोत्रं भक्त या 'भागेन्दु' ना कृतम्।
यः पठेच्छृणुयाच्चापि, स याति परमां गतिम्।

।। जिनवाणी माता की आरती ।।

जय अम्बे वाणी,माता जय अम्बे वाणी।
तुमको निश दिन ध्यावत सुर नर मुनि ज्ञानी।।
श्री जिन गिरते निकसी, गर गौतम वाणी।
जीवन भ्रम तुम नाशन्दीपक दरशाणी॥ जय....
कुमत कुलाचल चूरण, वज्रसु सरधानी।
नय नियोग निक्षेपण देखन, दरशाणी।। जय....
पातक पंक पखालन, पुण्य पाणी।
मोह महार्णव डूबत, तारण नौकाणी।। जय....
लोकालोक निहारण, दिव्य नेत्र स्थानी।
निज पर भेद दिखावन, सूरज किरणानी।। जय....
श्रावक मुनिगण जननी, तुमही गुणखानी।
सेवक लख दुखदायक, पावन परमाणी।। जय....

।। श्री महावीर स्वामी की आरती ।।

जय महावीर प्रभो, स्वामी जय महावीर प्रभो।
कुण्डलपुर अवतारी, त्रिशलानन्द विभो।। ॐ जय महावीर..
सिद्धार्थ घर जन्मे, वैभवथा भारी।
बाल ब्रह्मचारी व्रत पाल्यौ, तपधारी।। ॐ जय महावीर....
आतम ज्ञान विरागी, सम दृष्टिधारी।
माया मोह विनाशक, ज्ञान ज्योतिजारी॥ ॐ जय महावीर....
जग में पाठ अहिंसा, आपहि विस्तार्यो।
हिंसा पाप मिटा कर, सुधर्म परचारयौ।। ॐ जय महावीर....
यहि विधि चाँदनपुर में,अतिशय दर्शायौ।
ग्वाल मनोरथ पूर्यो, दूध गाय पायौ।। ॐ जय महावीर.....
प्राणदान मंत्री को, तुमने प्रभु दीना।
मन्दिर तीन शिखर का निर्मित है कीना।। ॐ जय महावीर....
जयपुर नृप भी तेरे, अतिशय के सेवी।
एक ग्राम तिन दीनों, सेवा हित यह भी।। ॐ जय महावीर....
जो कोइ तेरे दर पर इच्छा कर आवे।
धन, सुत सब कुछ पावे संकट मिट जावे।। ॐ जय महावीर....
निश दिन प्रभु मन्दिर में जगमग ज्योति करे।
हरिप्रसाद चरणों में, आनन्द मोद भरें।। ॐ जय महावीर...

।। दिवाली पर जलाओ दीप ।।

जलाओ तो दीप जलाओ,
मत जलाओ किसी को,
करो तो अन्धकार दूर करो,
मत करो अन्धा किसी को,
हंसाओ तो सभी को हंसाओ,
मत रुलाओ किसी को,
बनाओ तो, शुभमय बनाओ,
अशुभ मत बनाओ, दिवाली को।

श्री सुधासागर जी महाराज का आशीर्वाद
जो बम फोडे, मनुष्यों को मारे वह आतंकवादी है,
जो पटाखे फोडे जीवों को मारे वह- है?
पटाखे के धुएँ से प्रदुषण होता है, स्वास्थ्य खराब होता है,
रोगीजनों को बहुत कष्ट होता है। पटाखों की आवाज से मनुष्य,
पशुपक्षी भयभीत होते हैं। उनकी बद्दुआओं से
क्यों अपना जीवन दुःखी करते हो। हे मानव!
देवता तुम तो दयालु हो, समझदार हो,
फिर दिवाली पवित्र त्योहार पर पटाखे से हिंसा क्यों करते हो?
पटाखे फोड प्रदषण करने वाले की अपेक्षा,
प्रदुषण नहीं करने वाले श्रेष्ठ लोगों की नकल कर महान बनना
श्रेष्ठ है। क्या आप अपने शौक को पूरा
करने के लिये मुँह में या हाथों की मुट्ठियों में
रखकर पटाखे फोड सकते हैं? नहीं ना क्योंकि जल जायेंगे।
फिर छोटे-छोटे जीवों के साथ अन्याय
क्यों?
हम पशु होकर के भी मनोरंजन के लिये किसी प्राणी को मारते
नहीं हैं। पूर्व के पुण्य कर्म से स्वस्थ शरीर मिला है पटाखों से यदि कोई
अंग खराब हो गया तो? क्या पुनः मिल सकेगा?
पटाखे से मेहनत की कमाई बर्बाद होती है,
उन पैसें से किसी गरीब का इलाज, गरीब को शिक्षा,
त्योहार पर मिठाई का वितरण कर,
एक अच्छे इंसान क्यों नहीं बनते?
हर वर्ष पटाखों से कई जगह पर अग्नि लग जाती है,
कई जन मर जाते हैं। क्या आपको पता है इस वर्ष किसका नम्बर है?
आतिशबाजी से पर्यावरण, धन, जन,
स्वच्छता, स्वास्थ्य, शांति, धर्म, श्रद्धा, समर्पण,
विवेक, बुद्धि की हानि कौन समझदार करेगा?
सच्चा श्रद्धालु वही है जो अपने भगवान,
गुरु की आज्ञा को
पूर्णतः पालन करता है।
जब तुम किसी मरे को जिन्दा नहीं कर सकते,
तो मारने का क्या अधिकार है?
प्रभु महावीर का सन्देश जियो और जीने दो,
आतिशबाजी कहती है, मरो और मारने दो।
अपने नगर, प्रदेश, देश, विश्व को स्वच्छ सुन्दर,
अच्छे से अच्छा
बनाने के लिये हमे सबके साथ मिलकर कार्य करना होगा।
भगवान उनसे प्रेम करता है जो उनके उपदेशों का पालन करता है।
क्या भगवान ने पटाखे फोडने का उपदेश दिया है?
जो गलती कर न सुधरे वह हैवान कहलाता है,
जो गलती पर गलती करे वह शैतान और जो गलती कर
सुधर जावे वह इंसान कहलाता है और जो
गलती ही न करे वह महान कहलाता है।
दीपावली एक पवित्र त्योहार है,
पटाखे फोडकर इसे अपवित्र मत करो।
यह पृथ्वी सूक्ष्म और बडे जीवों के कारण बनी हुई है,
अतः प्रत्येक प्राणी को जीने का अधिकार है।
यदि तुम स्वस्थ, सुन्दर आनन्दमय सुखी जीवन
जीना चाहते हो, तो अपने कार्यों
से किसी भी जीव का घात न हो, ध्यान रखो।
प्रत्येक जीवात्मा शक्तिरूप से समान है, इस प्रकृति में सभी का सहयोग,
सभी जीव जीना चाहते हैं और मरने से डरते हैं।
मैं मानता हूँ तुम समझदार हो, पटाखे फ़ोडकर भगवान को नाराज नहीं करोगे।
प्रातःकाल महावीर स्वामी मोक्ष गये
शिष्य गौतम गणधर ने
प्रभुवाणी पर विचार किया
शुभकामनाओं से नहीं
शुभ शुद्ध पुण्य कार्य करने से
जीवन मंगलमय कल्याणमय बनता है
तब प्रभु आज्ञापालन में ऐसे दत्तचित्त
हए कि सायंकाल केवलज्ञान ज्योति
प्रगट हुई प्रकाशित हुआ जग
मग सर्वत्र हर्षित देव मनुष्यों ने
सर्वज्ञ द्वय प्रभु की केवलज्ञान
ज्योति के उपकारों के प्रति
श्रद्धा भक्ति समर्पण में दीप मालिका
प्रकाशित कर बताया जगत को
ऐसा ज्ञान प्रकाश प्रगट करो जो मिटाये
सभी के अज्ञान अन्धकार जो बताये
सत्य अहिंसा से सुखी बने सारा संसार