अथ अष्टमोऽध्यायः
Bondage of Karma
मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगाः बन्धहेतवः।।1।।

{मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगाः} मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और येग - ये पांच {बंधहेतवः} बन्ध के कारण हैं।

Wrong belief, non abstinence, negligence, passions, and activities are the causes of bondage.

सकषायत्वाज्जीवः कर्मणो योग्यान्पुद्गलानादत्ते सबन्धः।।2।।

{जीवः सकषायत्वात्} जीव कषायसहित होने से {कर्मणः योग्यान्पुद्गलान्} कर्म के योग पुद्गल परमाणुओं को {आदत्ते} ग्रहण करता है {स बन्धः} वह बन्ध है।

The individual self attracts particles of matter which are fit to turn into karma, as the self is actuated by passions. This is bondage.

प्रकृतिस्थित्यनुभवप्रदेशास्तद्विधयः।।3।।

{तत्} उस बन्ध के {प्रकृतिस्थित्यनुभवप्रदेशा} प्रकृतिन्ध, स्थिति, अनुभागबन्ध और प्रदेशबन्ध {विधयः} ये चार भेद है।

Bondage is of four kinds according to the nature or species of karma, during of karma, fruition of karma, and the quantity of space-points of karma.

आद्यो ज्ञानदर्शनावरणवेदनीयमोहनीयायुर्नाम- गोत्रान्तरायाः।।4।।

{आद्यो} पहला अर्थात् प्रकृतिबन्ध {ज्ञानदर्शनावरणवेदनीयमोहनीयायुर्नाम- गोत्रान्तरायाः} ज्ञानावरण, दर्शनावरण वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय - इन आठ प्रकार का है।

The type-bondage is of eight kinds, knowledge-obscuring, perception-obscuring, feeling-producing, deluding, life-determining, name-determining(physique-making), status-determining, and obstructive karmas.

पंचनवदयष्टाविंशतिचतुद्र्विचत्वारिंशद्द्विपअंचभेदा यथाक्रमम्।।5।।

{यथाक्रमम्} उपरोक्त ज्ञानावणादि आठ कर्मों के अनुक्रम से {पंचनवदयष्टाविंशतिचतुद्र्विचत्वारिंशद्द्विपअंचभेदा } पांच, नव, दो, अट्ठाई, चार, ब्यालस, दो और पांच भेद हैं।

The subdivisions are five, nine, two, twenty-eight four, forty-two, and five kinds respectively.

मतिश्रुतावधिमनःपयर्यकेवलानाम्।।6।।

{ मतिश्रुतावधिमनःपयर्यकेवलानाम्} मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनःपर्ययज्ञानावरण और केवलज्ञानावरण, ये ज्ञानावरण कर्म के पांच भेद हैं।

Karma which obscure sensory knowledge, scriptural knowledge, clairvoyance, telepathy, and omniscience, are the five kinds of knowledge-obscuring karmas.

चक्षुरचक्षुरवधिकेवलानां निद्रानिद्रानिद्राप्रचला- प्रचलाप्रचलास्त्यानगृद्धयक्ष्च।।7।।

{ चक्षुरचक्षुरवधिकेवलानां } {चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण, केवलदर्शानावरण} { निद्रानिद्रानिद्राप्रचलाप्रचलाप्रचलास्त्यानगृद्धयक्ष्च} निद्रा, निद्रानिदा, प्रचला, प्रचलाप्रचला और स्त्यानगृद्धि - ये नव भेद दर्शनावरण कर्म के हैं।

The four karmas that cover ocular perception, non-ocular intuition, clairvoyant perception, ad perfect perception, sleep, deep sleep, drowsiness (sleep in sitting posture), heavy drowsiness (intense sleep in sitting posture), and somnambulism (commtting curel deeds in sleep), are the nine subtypes of perception-covering karmas.

सदसद्वेद्ये।।8।।

{सदसद्वेद्ये} सातावेदनय और आसातावेदनीय ये दो वेदनीय कर्म के भेद हैं।

The two karmas which cause pleasant feeling and unpleasant feeling respectively are the two subtypes of feeling-producing karmas.

दर्शनचारित्रमोहनीयाकषायकषायकषायवेदनीयाख्यास्त्रिद्विनव-
षोड़शभेदाःसम्यक्त्वमिथ्यात्वतदुभयान्यकषयकषायौ
हास्यरत्यरतिशोकभयजुगप्सास्त्रीपुत्रपुंसकवेदा
अनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानसंज्वल-
विकल्पाक्ष्चैकशः क्रोधमानमायालोभाः।।9।।

{ दर्शनचारित्रमोहनीयाकषायकषायकषायवेदनीयाख्या} दर्शनमोहनीय, चारित्रमोहनीय, अकषायवेदनीय और कषायवेदनीय - ये चार भेदरूप मोहनीय कर्म के हैं और इसके अनुक्रम से { त्रिद्विनव- षोड़शभेदाः} तीन, दो, नव औरसोहल भेद हैं। वे इस प्रकार से हैं।

{सम्यक्त्वमिथ्यात्वतदुभयानि} सम्यक्त्व मोहनीय, मिथ्यात्व मोहनीय और सम्यग्मिथ्याात्वमोहनीय - ये देर्शन मोहनीय के तीन भेद हैं; {अकषायकषायौ} अकषायवेदनीय और कषायवेददनीय ये दो भेद चारित्र मोहनीय के हैं; { हास्यरत्यरतिशोकभयजुगप्सास्त्रीपुत्रपुंसकवेदा } हास्य, रति, अिित, शोक, भ्य, जुगुप्सा स्त्रीवेद, पुरूषवेद और नपुंसकवेद - ये अककषायवेदनीय के नव हें; और {अनन्ताबध्यप्रत्याख्यानप्र्रत्यााख्यानसंज्वलनिविकल्पाः च} अनन्तानुबन्धी, अअपप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान तथा संज्वलन के भेद से तथा {एकश क्राोधमानमायालोभाः} इन प्रत्येक के क्रोध, मान, माया, और लोभ ये चार प्रकार - ये सोलह भेद कषायवेदनीय के हैं। इस तरह मोहनीय कर्म के कुल अट्ठई्रस भेद हैं।

The deluding karmas are of twenty-eight kinds. These are the three subtypes of faith-deluding karmas1, the two types of conduct-deluding karmas.

1The three sub types of faith-deluding karmas are wrong belief, mixed right and wrong belief, and right belief slightly clouded by wrong belief.

which cause (and which are caused by) the passions and quasi-passions, the subtypes the passions2 and the quasi-pssionns3 being sixteen and nine restively.

नारकतैर्यग्योनमानुषदैववानि।10।।

{नरकतैर्यग्योनमानुषदैवानि} नरकायु, तिर्यंचायु, मनष्यायु और देवयु - ये चार भेद आययुकर्म के हैं।

(The life-karmas determine the quantum of life in the states of existence as) infernal beings, plants and animal, human beings, and celestial beings.

नारकतैर्यग्योनमानुषदैववानि।10।।

{नरकतैर्यग्योनमानुषदैवानि} नरकायु, तिर्यंचायु, मनष्यायु और देवयु - ये चार भेद आययुकर्म के हैं।

(The life-karmas determine the quantum of life in he states of existence as) infernal beings, plants and animals, human beings, an celestial beings.

गतिजातिशरीरांगोपांगनिर्माणबबन्ध्धनसंतसंस्थान-
संहननस्पर्शसगंधवर्णनुपूव्र्यगुरूलघापघात-
परघाातपोद्योताोच्छ्वासविहयोगतयः
प्रत्येकशरीरत्रससुभगसुस्वरशुभससूक्ष्मपयार्यप्ति-
स्थिरोययशः कीर्तिसेतराणि तीर्थकरत्वं च।11।

2 The passions are four – anger, pride, dccetffulness, and greed. Each of these four is further divided into four classes, namely that which leads to infinite births, that which indrs partial abstinence, hat which disturbs complete elf-restraint, and that which interferes with perfect conduct.. Thus the passions make up sixteen.

3The quasi-passions are nine namely laughter, liking, disliking, sorrow, fear, disgust, the male sex-passion, the female sex-passion, and the neuter sex-passion.

{गतिजातिशरीरांगोपांगनिर्माणबबन्ध्धनसंतसंस्थान- संहननस्पर्शसगंधवर्णनुपूव्र्यगुरूलघाूपघात- परघाातपोद्योताोच्छ्वासविहयोगतयः} गति, जाति, शरीर, अंगोपांग, निर्माण, बंधन, संघात, संस्थान, संहनन, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, अनुपूर्वी, अगुरूलघु, उपघात, परघात, आतप, उद्योेत, उच्छ्वास औ वहायोगति - ये इक्कीस, तथा

{प्रत्येकशरीरत्रससुभगसुस्वरशुभससूक्ष्मपयार्यप्ति-स्थिरोययशः कीर्तिसेतराणि} प्रत्येक शरीर, त्रस, सुभग, सुस्वर, शुभ, सूक्ष्म, पर्याप्ति, स्थिर, आदेय और यशःकीर्ति - ये दस तथा इनसे उलटे दस अर्थात साधारण शरीर, स्थावर, दुर्भग, दुस्वर, अशुभ, बादर (- स्थूल), अपर्याप्ति, अस्थिर, अनादेय और अपयशःकीर्ति - ये दस, {तीर्थंकरत्वं च} और तीर्थकरत्व, इस तरह नामकर्म के कुल ब्यालीस भेद हैं।

The name (physique-making) karmas comprise the state of existence, the class, the body, the chief and secondary parts, formation, bidning (union), molecular interfusion, structure, joint, touch, taste, odour, colour, movement after death, neither heavy nor light, self-annihilation, annihilation by others, emitting warm splendor, emitting cool luster, respiration, gait, individual body, mobile being, amiability, a melodious voice, beauty f firm, minute body, complete development (of the organs), firmness, lustrous body, glory and renown, and the opposites of these (commencing from individual body), and Tirthakaratva.

उच्चैर्नीचैक्ष्च।12।।

{उच्चैर्नीचैक्ष्च} उच्चगोत्र और नीचगोत्र - ये दो भेद गोत्र कर्म के हैं।

The high and the low.

दानलाभभोगोपभोगवीर्याणाम्।13।।

{दानलाभभोगोपभोगवीर्याणाम्} दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय और वीर्यान्तराय - ये पांच भेद अन्तराय कर्म के हैं। प्रकृतिक के उपभेदों का वर्णन यहा पूर्ण हुआ।

The obstructive karmas are of five kinds, obstructing the making of gifts, gain, enjoyment of consumable things, enjoyment of non-consumable things, and effort (energy)

आदितस्तिसृणामन्तरायस्य च त्रिंशत्सागरोपमकोटीकोटयः परा स्थितिः।14।।

{आदितस्तिसृणाम्} आदि से तीन अर्थात् ज्ञानावरण, दर्शनावरण, तथा वेदनीय {अन्तरायस्य च} और अन्तराय - इन चार कर्मों की {परा स्थितिः} उत्कृष्ट स्थिति { त्रिंशत्सागरोपमकोटीकोटयः} तीस कोड़ाकोड़ी सागर की है।

The maximum duration of the three main types (primary species) firm the first and obstructive karmas is thirty sagaropama kotikoti.

सप्ततिर्मोहनीयस्य।।15।।

{मोनीयस्य} मोहननीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति {सप्ततिः} सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर की है।

Seventy sagarpama kotikoti is the maximum duration of the deluding karmas.

त्रयस्त्रिशत्सागरोपमाण्यायुषः।।17।।

{आयुषः} आयु कर्म का उत्कृष्ट स्थिति {त्रयस्त्रिशत्सागरोपमाणि} तेंतीस सागर की है।

Thirty-three sagaropamas is the maximum duration of life.

अपरा द्वादशमुहूर्ता वेदनीयस्य।।18।।

{वेदनीयस्य अपरा} वेदनीय कर्म की जघन्य स्थिति {द्वादशमुहूर्ता} बारह मुहूर्त की है।

The minimum duration of the feeling-producing karma is twelve muhurtas.

नामागोत्रयोरष्टौ।।।19।।

{नामगोत्रयोः}नाम और गोत्र कर्म की जघन्य स्थिति {अष्टो} आठा मुहूर्त की है।

The minimum duration of the name-karma and the status-determining karma is eight muhurtas.

शेषाणामन्तर्मुहूर्ता।।।20।।

{शोषाणां} बाकी के अर्थात् ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय, अन्तराय और आयु - इन पांच कर्मों की जघन्य स्थिति {अन्तर्मुहूर्ता} अन्तर्मुहूर्त की है।

The minimum duration of the rest is up to ne muhurta.

विपाकोऽनुभव।।21।।

{विपाकः} विविध प्रकार का जो पाक है {अनुभवः} सो अनुभव है।

Fruition is the ripening or maturing of karmas.

स यथानाम।।22।।

{सः} यह अनुभाग बन्ध {यथानाम} कर्मों के नाम के अनुसार ही होता है।

(The nature of) fruition is according to the names of the karmas.

ततक्ष्च निर्जरा।।23।।

{ततः च} तीव्र, मध्यम या मंद फल देने के बाद {निर्जरा} उन कर्मों की निर्जरा हो जाती है अर्थात् उदय में आने के बाद र्क आत्मा से पृथक हो जाते हैं।

After fruition (enjoyment), the karmas fall off or disappear.

नामप्रत्यायाः सर्वतो योगविशेषात्सूक्ष्मैकक्षेत्रावगाह-
स्थिताः सर्वात्मप्रदेशेष्वनन्तानन्तप्रदेशाः।।24।।

{नामप्रत्ययाः} ज्ञानावरणादि कर्म प्रकृतियों का कारण, {सर्वतः} सर्व तरफ से अर्थात् समस्त भावों में {योगविशेषात्} योग विशेष से {सूक्ष्मैकक्षेत्रवगाहस्थिताः} सूक्ष्म, एकक्षेत्रवगाहरूप स्थित {सर्वात्मप्रदेशेषु} और सर्व अआत्मप्रदेशों में {अनन्तानन्तप्रदेशाः} जो कर्म पुद्गल के अनन्ताननत प्रदेश हैं सो प्रदेशबन्ध है।

The karmic molecules of infinite times infinite space-points always pervade in a subtle form the entire space-points of every soul in every birth. And these are absorbed by the soul because of its activity.

सद्वेद्यशुभययुर्नामगोत्राणि पुण्यम्।।25।।

{सद्वेद्यशुभययुर्नामगोत्राणि} साता वेदेनीय, शुभ आयु, शुभ नाम और शुभ गोत्र {पुण्यम्} ये पुण्य-प्रकृतियां हैं।

The good variety of feeling-producing karmas, and the auspicious life, name,, and status-determining karmas constitute merit (punya).

अतोऽन्यत्पापम्।।26।।

{अतःअन्यत्} इन पुण्य-प्रकृतियों से अन्य अर्थात् असाता वेदनीय, अशुभ नाम और अशुभ गोत्र {पापम्} ये पाप-प्रकृतियां है।

The remaining varieties o karma constitute demerit.

।।इति ततार्थाधिगमे मोक्षाशास्त्रे अष्अमोऽध्यायः।।