।। भक्ष्य एवं अभक्ष्य पदार्थ ।।

शंका- दूध भक्ष्य है या नहीं?

समाधान- दूध भक्ष्य है। षट् रस में दूध भी एक रस है। यदि गाय या मैस का सब दूध उनके बच्चों को पिला दिया जाये तो बच्चों को बड़ा कष्ट होता है और कभी-कभी मृत्यु तक हो जाती है। दूध निकालने से गाय या भैंस को कण्ट नहीं होता यदि दूध न निकाला जावे तो कष्ट होता है। तस्वार्थसार निर्जरा अधिकार श्लोक ११ में कहा है-तैल, दूध, मठा, दधि, घी इन पांच रसों में से एक, दो, तीन, चार या पाँचों का त्याग करता रस परित्याग नाम तप होता है। यदि दूध प्रभक्ष्य होता तो उसके सर्वथा त्याग का उपदेश होता। इससे सिद्ध है कि गाय, भैंस का दूध भक्ष्य है।

शंका- एक अविरतसम्पादृष्टि अमेरिकनमिल्कपाउडर से बना हुआ दूध चाय पीते हुए अपने सम्यक्त्व को कायम रखता है या नहीं?

समाधान- मनुष्य, तियंच, देव, नारकी चारों ही गतियों में अविरत सम्यग्दष्टि होते हैं। इसी प्रकार नाना-क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न कालों में अविरतसम्यग्दष्टि होते हैं। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव की अपेक्षा नाना प्रविरतसम्यग्दृष्टियों के आहार में भी भेद हो जाता है, एकप्रकार का नहीं होता। अतः अविरतसम्यग्दष्टि के आहार के विषय में कोई विशेष नियम नहीं कहा गया है । अविरतसम्यग्दष्टि मनुष्य अभक्ष्य का सेवन नहीं करता। यदि मद्य, मांस आदि अभक्ष्यपदार्थों का सेवन करता है तो वह सम्यग्दृष्टि नहीं रह सकता। सम्यग्दष्टि पारीर और भोगों से विरत रहता है वह शरीर या भोग उपभोग के लिये अभक्ष्य का सेवन नहीं करता। यदि अमेरिकन मिल्कपाउडर में अशुद्धपदार्थ का मेल है तो अविरतसम्यग्दृष्टि उसको ग्रहण नहीं कर सकता।

शंका- दूध की मलाई षट् रस में से किस रस में माती है ?

समाधान- दूध की मलाई दूध रस में प्राती है।

शंका- आजकल कुछ लोग २४ प्रहर ( तीन दिन ) के वही की छाछ बनाकर घी निकालते हैं, तो क्या वह घी शुद्ध है?

समाधान- तीन दिन (२४ प्रहर ) का दही मर्यादा रहित हो जाने के कारण अशुद्ध है, अतः अशुद्ध दही से निकाला हुआ घी कैसे शुद्ध हो सकता है।'

शंका- दही व छाछ को क्या मर्यादा है ?

समाधान- दही व छाछ की मर्यादा आर्षग्रन्थों में दो दिन की कही गई है।

नीली सूरणकंदो दिवसद्वितयोषिते च दधिमथिते ।
विद्ध'पुष्पितमन्नं कालिगं द्रोणपुष्पिका त्याज्या ॥६.८४॥ अमितमति श्रावकाचार
"षोडश प्रबरावुपरि तक दधि च त्यजेत्।" (षट्प्राभूत संग्रह, चारित्रपाहुड़, श्लोक २१ की टीका पृ. ४३)
वधितकादिकं सर्व त्यजेवध्वं दिनद्वयात् ।
सुधीः पापाविमीतस्तु मृतं दयेकेन्द्रियादिभिः ॥१७१.९॥प्रश्नोत्तर थावकाचार

इन सब पार्षग्रन्थों में दही व छाछ की मर्यादा सोलहपहर अर्थात् दो दिन बतलाई गई है। यदि उससे पूर्व भी रस चलित हो जाये तो वह अभक्ष्य हो जाता है।

शंका- नौनी घी ( मक्खन ) की कुछ मर्यादा है क्या? उस बीच तो वह खाया जा सकता है ?

समाधान- नबनीत ( लूणो, मक्खन ) की यद्यपि दो मुहूर्त की मर्यादा है सो तपावने की अपेक्षा है. खाने की अपेक्षा नहीं कही गई है। खाने का तो निषेध है।

यन्मुहूर्तयुगतः परः सदा, मूच्छंति प्रचुरजीवराशिभिः ।
तगिलंति नवनीतमत्र ये, ते व्रजति खलु को गतिगृताः॥५॥३६॥

अर्थ- लूणी दोय मुहर्त पीछे प्रचुर जीवनि के समूहनि करि मूच्छित होय है। जो लूणी को खाय है मरकर कौन गति को जाय है ? अर्थात् कुगति को जाय हैं।

अल्प फलवहुविधातान्मूलक माद्राणि शृङ्गवेराणि ।
नवनीतनिम्बकुसुमम्, केतकमित्येवमबहेयम् ॥५॥ रस्नकरण धावकाचार

अर्थ- फल थोड़ा और हिंसा अधिक होने से गीले अदरक, मूली, मक्खन, नीम के फुल, केतकी के फूल तथा इनके समान और दूसरे पदार्थ भी छोड़ने चाहिये।


१. गर्म दूध के दही की मर्यादा तीनों ऋतुओं में १६ पहर की है। अतः सोलह पहर से ऊपर के दही का त्याग कर देना चाहिये ।

चर्मपात्रगतं तोयं, घृतं तैलं च दर्जयेत् ।
नवनीतं प्रसूनादिशाकं माद्यास्कदाचन ॥६६॥

रत्नमाला पाक्षिकश्रावक भी चर्म के बर्तन में रखे हए जल, घी, तेल इनका खाना त्याग देवे। मक्खन तथा फूल वाले शाकों को कदाचित् न खावे । जिस रोटी, दाल, पूरी, लडडू आदि में फूई आ जावे उसे न खावे ।

शृगबेरं तथानंगक्रीडां बिल्वकलं सदा ।
पुष्प शाकं च संधानं नवनीतं च वर्जयेत् ॥३७॥ श्री देवनम्बी श्रावकाचार

अदरक, अनंगक्रीड़ा, बेल का फल, फूल, शाक (पत्तों का शाक), आचार-मुरम्बा, मक्खन का सदा त्याग कर देना चाहिये।

प्रश्नोत्तरश्रावकाचार सर्ग १७ श्लोक १०६ में भी मक्खन अनेक दोषों का उत्पन्न करने वाला होने से त्याज्य बतलाया है।

शंका- क्या पिसा हुआ सेंधा नमक एक मुहूर्त बाद सचित्त हो जाता है ?

समाधान- धदला पु०१० २७२ पर मूलाचार के आधार से नमक, पत्थर, सोना, चांदी, मूगा, भोडल प्रादि को पृथिवीकायिक लिखा है। जिस प्रकार संगमरमर पत्थर का पूरा अचित्त हो जाने के पश्चात् पुनः सचित्त नहीं होता उसी प्रकार नमक पिस जाने पर प्रचित्त हो जाता है, वह अन्तर्मुहूर्त बाद क्यों सचित्त हो जाएगा? (मगा, भोडल आदि भी अचित्त होने के बाद सचित्त हो जावेंगे?) यदि नमक में पानी का संयोग हो जावे तो सचित्त होना सम्भव है । यह मनमानी कल्पना है कि पिसे हुए नमक की मर्यादा एक मुहूर्त की है।

शंका- प्याज-लहसुन का खाना ठीक है या नहीं, अगर ठीक नहीं है तो किस युक्ति से, शास्त्र के प्रमाण सहित समाधान करें?

समाधान- प्याज-लहसुन कन्द हैं जो अनन्तकाय हैं। प्याज कामोत्पादक है अतः इसका खाना ठीक नहीं कहा की है -

अल्पफलबहुविधातान्मूलकमानििण शृंगवेराणि ।
नवनीतनिम्बकुसुमं कंतकमित्येवमवहेयम् ॥५॥
यनिष्ट राबव्रतयेद्यच्चानुपसेव्यमेतदपि जह्यात् ।
अभिसन्धिकृता विरतिविषयाद्योग्यावसं भवति ॥८६॥र.क.पा.

श्री. सदासुखदासजी ने इन श्लोकों की टीका में लिखा है-"जिनके सेवनतै फल जो अपना प्रयोजन सोतो अल्पसिद्ध होय अर जिनके भक्षणतं घात अनन्त जीवनि का होय ऐसे मूलकन्द प्राईक शृगवेर इत्यादिक कन्दमुल अर नवनीत जो माखन निबका फूल, केवड़ा, केतकी का फूल इत्यादिक जे अनन्त काय ते त्यागने योग्य है। एक देह में अनन्त जीव ते अनन्तकाय हैं।"

प्याज के खाने में अनन्त जीवों का घात होता है अतः इसका खाना ठीक नहीं है।

शंका- सप्रतिष्ठित लौकी, ककड़ी आदि के खाने में तथा माल, अदरक, मूली आदि कंदमूल खाने में क्या समान दोष हैं या हीनाधिक वोष हैं ?

समाधान- पालू, अदरक, मूली आदि कंदमूल भी तो सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति हैं। श्री वीरसेन आचार्य ने षट्खंडागम सत् प्ररूपणा सूत्र ४१ की टीका में कहा भी है

"बावरनिगोवप्रतिष्ठितश्चान्तरेषु भू यन्ते, क्व तेषामन्तर्भावश्चेत् ? प्रत्येकशरीरवनस्पतिष्विति बूमः के ते? स्नुगावकमूलकादयः ।" धवल पु०१पृ. २७१ ।

प्रश्न- बादर निगोद से प्रतिष्ठित वनस्पति दूसरे आगमों में सुनी जाती है, उसका अन्तर्भाव वनस्पति के किस भेद में होगा?

उत्तर- प्रत्येक शरीर वनस्पति में उस सप्रतिष्ठित वनस्पति का अन्तर्भाव होगा।

प्रश्न- बादर निगोद प्रतिष्ठित अर्थात् सप्रतिष्ठित बनस्पतियां कौन हैं ?

उत्तर- थूहर, अदरक और मूली भादि बादरनिगोद सप्रतिष्ठित वनस्पतियाँ हैं। उस सप्रतिष्ठितप्रत्येकवनस्पतियों की पहचान निम्न चिह्नों के द्वारा होती है:

गूढसिरसंधिपव्वं, समभगमहीरहं च छिष्णवहं ।
साहारणं सरीर, तग्विवरीयं च पत्तेयं ॥ १७ ॥
मूले कंधे छाली, पवाल सालदलकुसुम फलबीजे।
समभंगे सदिणंता, असमे सदि होति पत्तेया ॥ १८ ॥
कन्दस्स व मूलस्स व साला खंवस्स वावि बहुलतरा।
छल्ली साणंतजीवा, पोयजिया तु तणुकवरी ॥१८९॥

(१) जिनके शिरा (बहिस्नायु ) सन्धि ( रेखा-बंध ) और पर्व ( गांठ ) अप्रकट हो ।

(२) जिसका भंग करनेपर समानभंग हो और दोनों भंगों में परस्पर हीरूक ( अन्तर्गत सूत्र) तन्तु न लगा रहे।

(३) छेदन करनेपर भी जिनकी पुनः वृद्धि हो जाय ।

(४) जिनकी त्वचा, मूलकन्द, प्रवाल, नवीन कोंपल (नवीन कोंपल, अंकुर) क्षुद्रशाला ( टहनी) पत्र, फूल, फल, बीज तोड़ने से समान भंग हो।

(५) जिस कन्द, मूल, क्षुद्र शाखा, स्कंध की छाल मोटी हो।

जिस वनस्पति में उपयुक्त लक्षणों में से कोई एक लक्षण भी हो वह वनस्पति सप्रतिष्ठित प्रत्येक है। सप्रतिष्ठितप्रत्येक-वनस्पति के आश्रय अनन्त बादरनिगोदजीव रहते हैं । अतः सप्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पति के खाने में अनन्तजीवों का घात होता है और मल्पफल होता है इसलिये यह अभक्ष्य हैं। इतनी विशेषता है कि मालू, अदरक, मूली मादि कंदमूल को वृद्धि होनेपर भी अप्रतिष्ठित नहीं होते, किन्तु अन्य वनस्पतियों की वृद्धि होने पर प्रप्रतिष्ठित हो जाती है। श्री समन्तभद्राचार्य ने कहा भी है

अल्पफल-बहुविधातानमूलकमाणिशङ्गवेराणि ।
नवनीत-निम्ब-कुसुमं कंतकमित्येवमवहेयम् ।।८५॥ रत्नकरण भावकाचार

अल्पफल और बहुविधात के कारण मूली आदि मूल, आद्रं अदरक मादि कंद, नवनीत-मक्खन, नीम के फूल, केतकी के फूल, ये सब और इसी प्रकार की दूसरी सब वस्तुएँ भी त्याज्य है।

यदि यहाँ पर यह कहा जाय कि जिसप्रकार सूखी अदरक अर्थात सोंठ व सूखी हल्दी अचित्त हो जाने के कारण भक्ष्य हो जाते हैं उसी प्रकार सूखे आलू भी भक्ष्य हो जाने चाहिये ? ऐसा तर्क ठीक नहीं है, क्योंकि सूखी हल्दी व सोंठ का ग्रहण बहुत अल्प मात्रा में औषधिरूप में होता है, ये दोनों बात व कफ की नाशक है, अस्थि पादि को बल देती है, किन्तु इन्द्रिय लोलुपता के कारण विशेष रागभाव से प्रालू अधिक मात्रा में ग्रहण होता है

यानितु पुनर्भवेयुकालोच्छिन्नत्रसाणि शुष्काणि ।
भजतस्ताग्यपि हिंसा विशिष्टरागादिरूपा स्यात् ॥७३॥ पुरुषार्थसिद्धिउपाय

इस श्लोक में श्री अमृतवन आचार्य ने यह बतलाया है कि काल पाकर ये सूब भी जावें, किन्तु उनके भक्षण करनेवाले के विशेष रागरूप हिंसा अवश्य होती है।

शंका- मटर में जितने दाने होते हैं उतने ही जीव होते हैं। ऐसा ही अन्य साग-सब्जी में है। इसप्रकार प्रत्येक मनुष्य काफी मांस खाने का दोषी क्यों नहीं ?

समाधान- मटर आदि साग सब्जी में वनस्पतिकाय के जीव होते हैं, जो एकेन्द्रिय होते हैं। एकेन्द्रिय जीवों के संहनन नामकर्म का उदय नहीं होता (गोम्मटसार कर्मकाण्ड)। अतः एकेन्द्रिय जीवों का मौदारिकशरीर होते हुए भी उसमें धातु व उपधातु नहीं होते। जब धातु उपधातु नहीं होते तो मांस, रुधिर, अस्थि भी नहीं होते । अतः साग सब्जी व जलादि के भक्षण में मांस का दोष नहीं लगता। दो इन्द्रिय बादि जीवों के संहनन नामकर्म का उदय होता है, अतः उनके औदारिकशरीर में मांस आदि होते हैं। रात को भोजन करने में ये द्वीन्द्रियादि जीव भोजन में गिर जाते हैं, जिनको अवगाहना छोटी होती है अतः वे रात के समय दिखाई नहीं देते, अतः रात को भोजन करने में मांस-भक्षण का दोष लगता है। इसी प्रकार बाजार का आटा प्रादि खाने में भी मांस भक्षण का दोष लगता है, क्योंकि उसमें प्रायः सजीव उत्पन्न हो जाते हैं अथवा वह धुने हुए अन्न आदि का होता है। मत: इनका त्याग अवश्य होना चाहिये ।

शंका- साबुत अनाज अभक्ष्य है क्या ? अर्थात् भुने हुए चने, भुनी हुई मक्का ये अमक्ष्य हैं या भक्ष्य ? यवि ये अभक्ष्य हैं तो मटर का शाक अभक्ष्य क्यों नहीं? चावल अभक्ष्य क्यों नहीं ?

समाधान- सघात, मादक, बहुधात, अनिष्ट और अनुपसेव्य ये पांच प्रभक्ष्य हैं । श्री समन्तभद्राचार्य ने रत्नकरण भावकाचार में इनका स्वरूप निम्न प्रकार कहा है-

अस हतिपरिहरणार्थ कौर पिशितं प्रमावपरिहतये ।
मद्य च वर्जनीयं जिनचरणो शरणमुपयातः ॥४॥
अल्प फलबहुविधातामूलक मार्माणिभङ्गवेराणि ।
भवनीतनिम्बकुसुमम्, कंतकमित्येवमबहेयम् ॥५॥
यदनिष्टं तब्वतयेद्यच्चानुष सेव्यमेतदपि जह्यात् ।
अभिसन्धिकृताविरति विषयायोग्याश्वतं भवति ॥६॥

जिनेन्द्र भगवान के चरणों की पारण में पाये हुए श्रावक को त्रसधात का त्याग करना चाहिये । मधु भोर मांस में प्रसघात का दोष लगता है अतः इनका सेवन नहीं करना चाहिए । मदिरा मादक है। अतः प्रमाद को दूर करने के लिये मदिरा छोड़ देनी चाहिये। जिनमें बहुधात होता हो ऐसे गीले अदरक, मूली, मक्खन, नीम के फूल, केतकी के फूल, इसी प्रकार के अन्य पदार्थ भी छोड़ने चाहिये। जो वस्तु अनिष्ट है उसे छोड़ना चाहिये और जो भनुपसेग्य है उसे भी छोड़ देना चाहिये।

यदि चना, मका या मटर आदि पुन गई हैं या धुने हुए की सम्भावना है तो उनको सेवन नहीं करना चाहिये, क्योंकि उनके सेवन में प्रसघात का दोष लगता है अतः प्रभक्ष्य है। वर्षाऋतु में प्रायः अन्न घुन जाते हैं उनके अन्दर जीवोत्पत्ति हो जाती है अतः वर्षाकाल में साबुत अन्न का भक्षण नहीं करना चाहिये। जिस अनाज पर वर्षाकाल बीत गया है वह अनाज भी साबुत नहीं खाना चाहिये। वैसे साबुत अनाज प्रभक्ष्य नहीं है।


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