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चौबीस तीर्थंकर विधान
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भगवान श्री शांतिनाथ जिनपूजा
चौबीस तीर्थंकर विधान
भगवान श्री शांतिनाथ जिनपूजा
-अथ स्थापना - गीता छंद -
हे शांतिजिन! तुम शांति के, दाता जगत विख्यात हो।
इस हेतु मुनिगण आपके, पद में नमाते, माथ को।।
निज आत्मसुखपीयूष को, आस्वादते वे आप में।
इस हेतु प्रभु आह्वान विधि से, पूजहूं नत माथ म।।।1।।
ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् अह्वान्नां।
ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थपनं।
ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
- अष्टक गीता छंद -
विरकाल से बहुप्यास लागी, नाथ! अब तक ना बुझी।
इस हेतु जल से तुम चरण युग, जजन की मनसा जगी।।
श्री शांतिनाथ जिनेश शाश्वत, शांति के दाता तुम्हीं।
प्रभु शांति ऐसी दीजिए, हो फिर कभी यांचा नहीं।।1।।
ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशानय जलं निर्वपमीति स्वाहा।
भवताप शीतल हेतु भगवान! बहुत का शरणा लिया।
फिर भी न शीतलता मिली, अब गंध से पद पूजिया।।
श्री शांतिनाथ जिनेश शाश्वत, शांति के दाता तुम्हीं।
प्रभु शांति ऐसी दीजिए, हो फिर कभी यांचा नहीं।।।2।।
ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनायं चंदन निर्वपमीति स्वाहा।
बहुबार मैं जन्मा मरा, अब तक न पाया पार है।
अक्षय सुपद के हेतु अक्षत, से जजू्रं तुम सार हैं।।
श्री शांतिनाथ जिनेश शाश्वत, शांति के दाता तुम्हीं।
प्रभु शांति ऐसी दीजिए, हो फिर कभी यांचा नहीं।।।3।।
ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपमीति स्वाहा।
चंपा चमेली बकुल आदिक, पुष्प ले पूजा करूं।
मनसिजविेता तुम जजत, निज आत्मगुणपरिचय करूं।।
श्री शांतिनाथ जिनेश शाश्वत, शांति के दाता तुम्हीं।
प्रभु शांति ऐसी दीजिए, हो फिर कभी यांचा नहीं।।।4।।
ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपमीति स्वाहा।
यह भूख व्याधी पिंड लागी, किस विधी मैं छूटहूं।
पकवान नानाविध लिये, इस हेतु ही तुम पूजहूं।।
श्री शांतिनाथ जिनेश शाश्वत, शांति के दाता तुम्हीं।
प्रभु शांति ऐसी दीजिए, हो फिर कभी यांचा नहीं।।।5।।
ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय निर्वपमीति स्वाहा।
अज्ञानतम दृष्टी हरे, निज ज्ञान होने दे नहीं।
इस हेतु दीपक से जजूं, मन में अजेला हो सही।।
श्री शांतिनाथ जिनेश शाश्वत, शांति के दाता तुम्हीं।
प्रभु शांति ऐसी दीजिए, हो फिर कभी यांचा नहीं।।।6।।
ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय निर्वपमीति स्वाहा।
ये कर्मबैरी संग लागे, एक क्षण ना छोड़ते
वर धूप अग्नी संग खेते, दूर से मुख मोड़ते।।
श्री शांतिनाथ जिनेश शाश्वत, शांति के दाता तुम्हीं।
प्रभु शांति ऐसी दीजिए, हो फिर कभी यांचा नहीं।।।7।।
ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूंप निर्वपमीति स्वाहा।
फल मोक्ष की अभिलाष लागी, किस तरह अब पूर्ण हो।
इस हेतु फल से तुम जजूं, सब विघ्न बैरी चूर्ण हों।।
श्री शांतिनाथ जिनेश शाश्वत, शांति के दाता तुम्हीं।
प्रभु शांति ऐसी दीजिए, हो फिर कभी यांचा नहीं।।।8।।
ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपमीति स्वाहा।
अनमोल रत्नत्रय निधी की, मैं करूं अब याचना।
जजूं अघ्र्य ले मु ’ज्ञानमति’, कैवलल्य हो यह कामना।।
श्री शांतिनाथ जिनेश शाश्वत, शांति के दाता तुम्हीं।
प्रभु शांति ऐसी दीजिए, हो फिर कभी यांचा नहीं।।।9।।
ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय अनघ्र्यपदप्राप्तये अघ्र्यं निर्वपमीति स्वाहा।
-दोहा-
शांतिनाथ पदकंज में, चउसंघ शांती हेत।
शांतीधारा मैं करूं, मिटे सकल भव खेद।।10।।
शांतये शांतिधारा।
लाल कमल नीले कमल, पुष्प सुगंधितसार।
जिनपद पुष्पांजलि करूं, मिले सौख्यांडार।।11।
दिव्य पुष्पांजलि‘।
-अथ स्थापना - गीता छंद -
पंचकल्याणक अघ्र्य
(मण्डल पर पांच अघ्र्य)
अथ मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
-रोला छंद-
भादों कृष्णा पाख, सप्तमि तिथी शुभ आई।
गर्भ बसे प्रभु आप, सब जन मन हरषाई।।
इन्द्र सुरासुर संघ, उत्सव करते भारी।
हम पूजें धर प्रीति, जिनवर पद सुखकारी।।1।।
ऊँ ह्रीं भाद्रपदकृष्णासप्तम्यां श्रीशांतिनाथजिनेगर्भकल्याणकाय अघ्र्यं निर्वपमीति स्वाहा।
जन्म लिया प्रभु आप, ज्येष्ठवदी चैदस में।
सुरगिरि पर अभिषेक, किया सभी सुरपति ने।।
शांतिनाथ यह नाम, रखा शांतिकर जग में।
हम नावें निज माथ, जिनवर चरणकमल में।।2।।
ऊँ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णाचतुर्दश्यां श्रीशांतिनाथजिनकल्याणकाय अघ्र्यं निर्वपमीति स्वाहा।
दीक्षा ली प्रभु आप, ज्येष्ठ वदी चैदस के।
लौकांतिक सुर आया, बहु स्तवन उचरते।।
इंद्र सपरिकर आय, तपक ल्याणक करते।
हम पूजें नत माथ, सब दुख संकट हरते।।3।।
ऊँ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णाचतुर्दश्यां श्रीशांतिनाथजिनदीक्षाकल्याणकाय अघ्र्यं निर्वपमीति स्वाहा।
केवलज्ञान विकास, पौष सुदी दशमी के।
समवसरण में नाथ, राजें अधर कमल पे।।
इंद्र करें बहु भक्ति, बारह सभा बनी हैं।
सभी भव्य जन आय, सुनते दिव्य धुनी हैं।।4।।
ऊँ ह्रीं पौषशुक्लादशम्यां श्रीशांतिनाथजिनकेवलज्ञानकल्याणकाय अघ्र्यं निर्वपमीति स्वाहा।
प्राप्त किया निर्वाण, ज्येष्ठ वदी चैदश में।
आत्यंतिक सुखशांति, प्राप्त किया उस क्षण में।।
महामहोत्सव सुखशांति, प्राप्त किया उस क्षण में।।
महामहोत्सव इन्द्र, करते बहुवैभव से।
हम पूजें तुम पाद, छुटें सभी भवदुःख से।।5।।
ऊँ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णाचतुर्दश्यां श्रीशांतिनाथजिनमोक्षकल्याणकाय अघ्र्यं निर्वपमीति स्वाहा।
- पूर्णाघ्र्य (दोहा) -
विश्वशांतिकर्ता प्रभो! शांतिनाथ भगवान।
पूर्ण अघ्र्य अर्पण करत, पाऊं सौख्य निधान।।6।।
ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथ पंचकल्याणकाय पूर्णाघ्र्यं निर्वपमीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।
जाप्य - ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय नमः।
जयमाला
-दोहा-
हस्तिनागपुर में हुये, गर्भ जन्म तप ज्ञान।
सम्मेदचल मोक्ष थल, गाऊं प्रभु गुणगान।।1।।
-स्रग्विणी छंद-
मैं नमूं मैं नमूं शांति तीर्थेश को। नाथ मेरे हरो सर्व भवक्लेश को।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना। फेर होवे न संसार में आवना।।2।।
विश्वसेन प्रिया मात ऐरावती। वर्ष इक लाख आयू कनक वर्ण ही।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना। फेरे होवे न संसार में आवना।।3।।
देह चालीस धनु चिन्ह मृग ख्यात है। जन्मभू हस्तिनापूरि विख्यात है।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना। फेर होवे न संसार में आवना।।4।।
नाथ के समवसृति में सभी मध्य ये। साधु बासठ सहस मूलगुणधारि थे।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना। फेर होवे न संसार में आवना।।5।।
चक्र आयुध प्रमुख गणपती श्रेष्ठ थे। ऋद्धि संयुक्त छत्तीस मुनिज्येष्ठ थे।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना। फेर होवे न संसार में आवना।।6।।
आर्यिका हरीषेणा प्रधाना तथा। साठ हज्जार त्रय सौ सभी आर्यिका।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना। फेर होवे न संसार में आवना।।7।।
दोय लक्षा सुश्रावक प्रभू भाक्तिका। चार लक्षा कहीं श्राविका सद्व्रता।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना। फेर होवे न संसार में आवना।।8।।
सौख्य हेतु भटकता फिरा विश्व में। किंतु पाई न साता कहीं रंच मैं।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना। फेर होवे न संसार में आवना।।9।।
नाथ ऐसी कृपा कीजिए भक्त पे। शुद्ध सम्यक्त्व की प्राप्ति होवे अबे।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना। फेर होवे न संसार में आवना।।10।।
स्वात्म र का मुझे भेद विज्ञान हो। पूर्ण चारित्र धारूं जो निष्काम हो।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना। फेर होवे न संसार में आवना।।11।।
पूर्ण शांती जहां पे वहीं वास हो। भक्त ये आपका आपके पास हो।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना। फेर होवे न संसार में आवना।।12।।
-दोहा-
तीर्थंकर चक्र मदन, तीनों पद के ईश।
पूण ’’ज्ञानमति’’ हेतु मैं, नमूं नमूं नतशीश।।13।।
ऊँ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णाघ्र्यं निर्वपमीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
-दोहा-
शांतिनाथ की अर्चना, हरे सकल दुःख दोष।
सर्व अमंगल दूर कर, भरे स्वात्मसुखतोष।।1।।
।।इत्याशीर्वादः।।