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चौबीस तीर्थंकर विधान
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भगवान श्री नेमिनाथ जिनपूजा
चौबीस तीर्थंकर विधान
भगवान श्री नेमिनाथ जिनपूजा
-अथ स्थापना-
(तर्ज -करो कलयाण आतम का.............)
नमन श्री नेमि जिनवर को, जिन्होंने स्वात्मनिधि पायी।
तजी राजीमती कांता, तपो लक्ष्मी हृदय भायी।।
करूं आह्वान हे भगवन्! पधारों मुझ मनोम्बुज में।
करूं मैं अर्चना रूचि से, अहो उत्तम घड़ी आई।।11।। नमन श्री..........।।
ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् अह्वान्नां।
ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थपनं।
ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
-अथ अष्टक-
(तर्ज -ऐ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान् की सूरत क्या होगी..............)
हे नेमिनाथ! तुम भक्ती से, निज शक्ति बढ़ाने आये हैं।
भगवान्-भगवान तुम्हारे चरणों की, हम पूजा करने आये हैं।।
भव भव में नीर पिया, नहिं प्यास बुझा पाये।
तुम पद धारा देने, पद्माकर जल लाये।
निज का अधमल धोने के लिए, जलधारा करने आये हैं।।
भगवान्।।1।।
ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र जन्मजराजमृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा
हे नेमिनाथ! तुम भक्ती से, निज शक्ति बढ़ाने आये हैं।
भगवान्-भगवान तुम्हारे चरणों की, हम पूजा करने आये हैं।।
चंदन चंदा किरणें, नहिं शीतल कर सकते।
तुम पद अर्चा करने, केशर चंदन घिसके।।
तनु ताप शांत हेतु चंदन, चरणों में चढ़ाने आये हैं।।
भगवान्।।2।।
ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा
हे नेमिनाथ! तुम भक्ती से, निज शक्ति बढ़ाने आये हैं।
भगवान्-भगवान तुम्हारे चरणों की, हम पूजा करने आये हैं।।
निज सुख के खंड हुए, नहिं अक्षय पद पाये।
सित अक्षत ले करके, तुम पास प्रभो! आये।।
अविनश्वर सुख पाने के लिए, सित पुंज चढ़ाने आये हैं।।
भगवान्।।3।।
ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा
हे नेमिनाथ! तुम भक्ती से, निज शक्ति बढ़ाने आये हैं।
भगवान्-भगवान तुम्हारे चरणों की, हम पूजा करने आये हैं।।
हे नाथ! कामरिपु ने त्रिभुवन को वश्य किया।
इससे बचने हेतू, बहु सुरभित पुष्प लिया।।
निज आत्म गुणों की सुरभि हेतु, ये पुष्प चढ़ाने आये हैं।।
भगवान्।।4।।
ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र कामबाणविनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा
हे नेमिनाथ! तुम भक्ती से, निज शक्ति बढ़ाने आये हैं।
भगवान्-भगवान तुम्हारे चरणों की, हम पूजा करने आये हैं।।
बहुविध पकवान चखे, नहिं भूख मिटा पाये।
इस हेतु चरू लेकर, तुम निकट प्रभो! आये।।
निज आत्मा की तृप्ती के लिए, नैवेद्य चढ़ाने आये हैं।।
भगवान्।।5।।
ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा
हे नेमिनाथ! तुम भक्ती से, निज शक्ति बढ़ाने आये हैं।
भगवान्-भगवान तुम्हारे चरणों की, हम पूजा करने आये हैं।।
निज मन में अंधेरा, है, अज्ञान तिमिर छाया।
इस हेतू दीपक ले, प्रभु पास अभी आया।।
निज ज्ञान ज्योति पाने के लिए, हम आरति करने आये हैं।।
भगवान्।।6।।
ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा
हे नेमिनाथ! तुम भक्ती से, निज शक्ति बढ़ाने आये हैं।
भगवान्-भगवान तुम्हारे चरणों की, हम पूजा करने आये हैं।।
कर्मों ने दुःख दिया, तुम कर्मरहित स्वामी।
अतएव धूप लेके, हम आये जगनामी।।
सब अशुभकर्म के भस्महेतु, हम धूप जलाने आये हैं।।
भगवान्।।7।।
ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा
हे नेमिनाथ! तुम भक्ती से, निज शक्ति बढ़ाने आये हैं।
भगवान्-भगवान तुम्हारे चरणों की, हम पूजा करने आये हैं।।
बहुविध के फल खये, नहिं रसना तृप्त हुई।
ताजे फल ले करके, प्रभु पूजूं बुद्धि हुई।।
इच्छाओं की पूर्ती के लिए, फल अर्पण करने आये हैं।।
भगवान्।।8।।
ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा
हे नेमिनाथ! तुम भक्ती से, निज शक्ति बढ़ाने आये हैं।
भगवान्-भगवान तुम्हारे चरणों की, हम पूजा करने आये हैं।।
प्रभु तुम गुण की अर्चा, भवतारन हारी है।
भवदधि में डूबे को, अवलंबनकारी है।।
निज ’’ज्ञानमती’’ पूर्ती के लिए, हम अघ्र्य चढ़ाने आये हैं।।
भगवान्।।9।।
ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र अनघ्र्यपदप्राप्तये अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा
-शेर छंद-
यमुना नदी का नीर स्वर्णभृंग में भरूं।
श्रीनेमिनाथ के चरण में धार मैं करूं।।
चउसंघ में सब लोक में भि शांति कीजिए।
बस ये ही एक याचना प्रभु पूर्ण कीजिए।।10।।
शांतये शांतिधारा।
हे नेमि! नीलकमल आप चिन्ह शोभता।
ये सुरभि पुष्प भी घ्राण नयन मोहता।।
प्रभु पाद कमल में अभी पुष्पांजलि करूं।
सब रोग शोक दूर हों निज संपदा भरूं।।11।।
दिव्य पुष्पांजलिः।।
पंचकल्याणक अघ्र्य
(मण्डल पर पांच अघ्र्य)
अथ मण्डलस्योरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्!
आवो हमस ब करें अर्चना, प्रभु के पंचकल्याण की।
इन्द्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।।
वन्दे जिनवरम्-4।।
श्रीसमुद्रविजय शौरीपुरि, नृप पितु मात शिवादेवी।
गर्भ बसे शुभ स्वपन दिखाकर, तिथि कार्तिक शुक्ला षष्ठी।।
गर्भकल्याणक पूजा करते, मिले राह कल्याण की।।
इन्द्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।।1।।
ऊँ ह्रीं कार्तिकशुक्लाषष्ठयां श्रीनेमिनाथजिनगर्भकल्याणकाय अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा
आवो हमस ब करें अर्चना, प्रभु के पंचकल्याण की।
इन्द्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।।
वन्द्र जिनवरम्-4।।
श्रावण शुक्ला छठ में मति श्रुत, अवधिज्ञनि प्रभु जन्मे थे।
मेरू पर जन्माभिषेक में, देव देवियां हर्षें थे।।
जन्मकल्याणक पूजा करते, मिले राह उत्थान की।।
इन्द्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।।2।।
ऊँ ह्रीं श्रावणशुक्लाषष्ठयां श्रीनेमिनाथजिनजन्र्मकल्याणकाय अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा
आवो हमस ब करें अर्चना, प्रभु के पंचकल्याण की।
इन्द्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।।
वन्द्र जिनवरम्-4।।
चले ब्याहने राजुल को, पशु बंधे देख वैराग्य हुआ।
श्रावण सुदि छठ सहस्राम्र वन, में प्रभु दीक्षा स्वयं लिया।
दीक्षा तिथि जजते मिल जावे, बुद्धि आत्मकल्याण की।।
इन्द्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।।3।।
ऊँ ह्रीं श्रावणशुक्लाषष्ठयां श्रीनेमिनाथजिनदीक्षाकल्याणकाय अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा
v आवो हमस ब करें अर्चना, प्रभु के पंचकल्याण की।
इन्द्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।।
वन्द्र जिनवरम्-4।।
आश्विन सुदि एकम पूर्वाण्हे, ऊर्जयंत गिरि पर तिष्ठे।
केवलज्ञान सूर्य प्रगटा तब, प्रभु का वांसवृक्ष नीचे।।
समवसरण में किया सभी ने, पूजा केवलज्ञान की।।
इन्द्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।।4।।
ऊँ ह्रीं अश्विनशुक्लप्रतिपदायां श्रीनेमिनाथजिनकेलवज्ञानकल्याणकाय अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा
आवो हमस ब करें अर्चना, प्रभु के पंचकल्याण की।
इन्द्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।।
वन्द्र जिनवरम्-4।।
प्रभु गिरनार शैल से मुक्ति, रमा वरी शिवधाम गये।
सुदि आषाढ़ सप्तमी सुरगण, वंद्य नेमि जगपूज्य हुए।।
जो निर्वाण कल्याणक पूजें, मिले राह निर्वाण की।।
इन्द्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।।5।।
ऊँ ह्रीं आषाढ़शुक्लासप्तम्यां श्रीनेमिनाथजिनमोक्षकल्याणकाय अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा
-पूर्णाघ्र्य (दोहा)-
नेमिनाथ की वंदना, करे नियम को पूर्ण।
पूर्ण अघ्र्य अर्पण करत, होवें सब दुख चूर्ण।।6।।
ऊँ ह्रीं आषाढ़शुक्लासप्तम्यां श्रीनेमिनाथपंचकल्याणक पूर्णांघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।
जाप्य - ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय नमः
जयमाला
(तर्ज - चंदन सा बदन...........................)
नेमी भगवान्! शत शत वंदन, शत शत वंदन तव चरणों में।
कर जोड़ खड़े, तव चरण पड़े, हम शीश झुयकाते चरणों में।।टेक.।।
यौवन में राजमती को वरने, चले बरात सजा करके।
पशुओं को बांधे देख प्रभो! रथ मोड़ लिया उल्टे चल के।।
लौकांतिक सुर संस्तव करके, पुष्पांजलि की तव चरणों में।।1।।
प्रभु नग्न दिगंबर मुनि बने, ध्यानामृत पी आनंद लिया।
कैवल्य सूर्य उगते धनपति ने, समवसरण भी अधर किया।।
तब राजमती आर्यिका बनी, चतुसंघ नमें वत चरणों में।।नेमी. ।।2।।
वरदत्त आदि ग्यारह गणधर, अठरह हजार मुनिराज वहां।
राजीमति गणिनी आदिक, चालिस हजार संयतिकाएं वहां।।
इक लाख सुश्रावक तीन लाख, श्राविका झुकीं तब चरणों में।।नेमी.।।13।।
सर्वाण्ह यक्ष अरू कूष्मांडिनि, यक्षी प्रभु शंख चिन्ह माना।
आयू इस सहस वर्ष चालिस, कर सहस देह उत्तम जाना।।
द्वादशगण से सब भव्य वहां, शत-शत वंदें तव चरणों में।।नेमी.।।4।।
प्रभु समवसरण में कमलासन पर, चतुरंगुल से अधर रहें।
चउ दिश में प्रभु का मुख दीखे, अतएव चतुर्मख ब्रह्म कहें।।
सौ इन्द्र मिले पूजा करते, नित नमन करें तव चरणों में।।नेमी.।।5।।
v प्रभु के विहार में चरण कमल, तल स्वर्ण कमल खिलते जाते।
बहुकोशों तक दुर्भिक्ष टले, षट् ऋतुज फूल फल खि जाते।।
तनु नीलवर्ण सुंदर प्रभु को, सब वंदन करते चरणों में।।नेमी.।।6।।
तरूवर अशोक था शोकरहित सिंहासन रत्न खचित सुंदर।
छत्रत्रय मुक्ताफल लंबित, भामंडल भवदर्शी मनहर।।
निज सात भावों को देख भव्य, प्रणमन करते तव चरणों में।।नेमी.।।7।।
सुरदुंदुभि बाजे बाज रहे, ढुरते हैं चैंसठ श्वेत चंवर।
सुरपुष्पवृष्टि नभ से बरसे, दिव्यध्वनि फैले योजन भर।।
श्रीकृष्ण तथा बलदेव आदि, अतिभक्ति लीन तव चरणों में।।नेमी.।।8।।
हे नेमिनाथ! तुम बाह्य और अभ्यंतर लक्ष्मी के पति हो।
दो मुझे अनंत चतुष्टयश्री, जो ज्ञानमती सिद्धिप्रिय हो।।
इसलिए अनंतों बार नमें, हम शीश झुकाते चरणों में।।नेमी.।।9।।
ऊँ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णांघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा
शांतेय शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
-शेर छंद-
नेमिनाथ पदपद्म, जो पूजें नितभक्ति से।
मिले निजातम सद्म, फेर न हो जग में भ्रमण।।1।।
।।इत्याशीर्वादः। पुष्पांजलिः।।