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श्री पार्श्वनाथ विधान
श्री पार्श्वनाथ विधान पूजा
(तर्ज-गोमटेश जय गोमटेश मम हृदय विराजो........)
पार्श्वनाथ जय पार्श्वनाथ , मम हृदय विराजो-२
हम यही भावना भाते हैं, प्रतिक्षण ऐसी रुचि बनी रहे।
हो रसना में प्रभु नाममंत्र, पूजा में प्रीती घनी रहे।।हम०।।
हे पार्श्वनाथ आवो आवो, आह्वान आपका करते हैं।
हम भक्ति आपकी कर करके, सब दुख संकट को हरते हैं।।
प्रभु ऐसी शक्ती दे दीजे, गुण कीर्तन में मति बनी रहे।।हम०।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
अथ अष्टक
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योति आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
सुरगंगा का उज्ज्वल जल ले, प्रभु चरणों त्रयधार करूँ।
पुनर्जन्म का त्रास दूर हो, इसीलिए प्रभु ध्यान धरूँ।।
भव भव तृषा मिटाने वाली, पूजा जिन भगवान की।।
।।जिनकी०।।वंदे जिनवरम्-४।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं..........।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योति आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
मलयागिरि का शीतल चंदन, केशर संग घिसाया है।
प्रभु के चरण कमल में चर्चत, भव संताप मिटाया है।।
तन मन को शीतल कर देती, अर्चा जिन भगवान् की।।
।।जिनकी०।।वंदे जिनवरं०।।२।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं.....।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान् की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
चिन्मय परमानंद आतमा, नहीं मिला इन्द्रिय सुख में।
प्रभु को अक्षत पुंज चढ़ाते, सौख्य अखंडित हो क्षण में।।
इन्द्र सभी मिल करें वंदना, प्रभु के अक्षयज्ञान की।।
।।जिनकी०।।वंदे जिनवरं०।।३।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं.......।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान् की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
रतिपति विजयी पार्श्वनाथ को, पुष्प चढ़ाऊँ भक्ती से।
निज आत्मा की सुरभि प्राप्त हो, निजगुण प्रगटे युक्ती से।।
ब्रह्मर्षीसुर स्तुति करते, चिच्चैतन्य महान् की।।
।।जिनकी०।।वंदे जिनवरम्-४।।४।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं.....।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान् की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योति आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
मालपुआ रसगुल्ला बरफी, जिनवर निकट चढ़ाते ही।
नाना उदर व्याधि विघटित हो, समरस तृप्ती प्रगटे ही।।
गणधर मुनिवर भी गुण गाते, महिमा जिन भगवान् की।।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योति आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।५।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं.....।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान् की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योति आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
केवलज्ञान सूर्य हो भगवन् ! मुझ अज्ञान हटा दीजे।
दीपक से मैं करूँ आरती, ज्ञान ज्योति प्रगटित कीजे।।
चक्रवर्ति भी करें वंदना, अतिशय ज्योतिर्मान की।।
।।जिनकी.।।वंदे जिनवरम्-४।।६।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं....।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान् की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योति आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
सुरभित धूप धूपघट में मैं, खेऊँ सुरभि गगन पैâले।
कर्म भस्म हो जाएं शीघ्र ही, जो हैं अशुभ अशुचि मैले।।
सम्यग्दर्शन क्षायिक होवे, मिले राह उत्थान की।।
।।जिनकी.।।वंंदे जिनवरम्-४।।७।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं......।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान् की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
अनंनास मोसम्मी नींबू, सेव संतरा फल ताजे।
प्रभु के सन्मुख अर्पण करते, मिले मोक्षफल भव भाजें।।
जिनवंदन से निजगुण प्रगटे, मिले युक्ति शिवधाम की।।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योति आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।८।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं.....।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान् की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
जल गंधादिक अघ्र्य सजाकर, जिनवर चरण चढ़ा करके।
रत्नत्रय अनमोल प्राप्त कर, बसूं मोक्ष में जा करके।।
इसी हेतु त्रिभुवन जनता भी, भक्ति करे भगवान् की।।
।।जिनकी०।।वंदे जिनवरम्-४।।९।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेंद्राय अनघ्र्यपदप्राप्तये अर्घ्यं ......।
दोहा
कनक भृंग में मिष्ट जल, सुरगंगा सम श्वेत।
जिनपद धारा करत ही, भव जल को जल देत।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
वकुल कमल चंपा सुरभि, पुष्पांजलि विकिरंत।
मिले निजातम संपदा, होवे भव दुःख अंत।।११।।
दिव्य पुष्पांजलिः।