Home
Bhajans
Videos
Aarti
Jain Darshan
Tirthankar Kshetra
KundKundacharya
Sammed Shikharji
Vidhi Vidhan
जैन पंचांग
January
February
March
April
May
June
July
August
September
October
November
December
श्री महावीर स्वामी विधान
श्री महावीर स्वामी विधान - पूजा नं. २
पूजा नं. २
श्री महावीर जिनपूजा
(तर्ज-तुमसे लागी लगन......)
आपके श्रीचरण, हम करें नित नमन, शरण दीजे।
नाथ! मुझपे कृपा दृष्टि कीजे।।टेक.।।
वीर सन्मति महावीर भगवन् !
बालयति हे अतिवीर! श्रीमन्!
आप पूजा करें, शुद्ध समकित धरें, शक्ति दीजे।
नाथ! मुझपे कृपा दृष्टि कीजे।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीमहावीरतीर्थंकर! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं श्रीमहावीरतीर्थंकर! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।
ॐ ह्रीं श्रीमहावीरतीर्थंकर! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
-अष्टक-
(तर्ज-चंदन सा बदन.......)
-शंभु छंद-
त्रिशलानंदन, शत शत वंदन, शत शत वंदन तव चरणों में।
हम भक्तिभाव से अंजलि कर, प्रभु शीश झुकाते चरणों में।।
गंगानदि का शुचि जल लेकर, तुम चरण चढ़ाने आये हैं।
भव भव का कलिमल धोने को,श्रद्धा से अति हरषाये हैं।।
हे वीरप्रभो! महावीर प्रभो! त्रयधारा दें तव चरणों में।।
त्रिशलानंदन..........।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीमहावीरतीर्थंकराय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
त्रिशलानंदन, शत शत वंदन, शत शत वंदन तव चरणों में।
हम भक्तिभाव से अंजलि कर, प्रभु शीश झुकाते चरणों में।।
हरिचंदन वुंâकुम गंध लिये, जिनचरण चढ़ाने आये हैं।
मोहारिताप संतप्त हृदय, प्रभु शीतल करने आये हैं।।
हे वीरप्रभो! चंदन लेकर, चर्चन करते तव चरणों में।।
त्रिशलानंदन.........।।२।।
ॐ ह्रीं श्रीमहावीरतीर्थंकराय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
त्रिशलानंदन, शत शत वंदन, शत शत वंदन तव चरणों में।
हम भक्तिभाव से अंजलि कर, प्रभु शीश झुकाते चरणों में।।
क्षीराम्बुधि पेâन सदृश उज्ज्वल, अक्षत धोकर ले आये हैं।
क्षय विरहित अक्षय सुख हेतू, प्रभु पुंज चढ़ाने आये हैं।
हे वीरप्रभो! हम पुंज चढ़ा, अर्चन करते तव चरणों में।।
त्रिशलानंदन..........।।३।।
ॐ ह्रीं श्रीमहावीरतीर्थंकराय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
त्रिशलानंदन, शत शत वंदन, शत शत वंदन तव चरणों में।
हम भक्तिभाव से अंजलि कर, प्रभु शीश झुकाते चरणों में।।
बेला चंपक अरविंद कुमुद, सुरभित पुष्पों को लाये हैं।
मदनारिजयी तव चरणों में, हम अर्पण करने आये हैं।।
हे वीरप्रभो! पुष्पों को ले, पूजा करते तव चरणों में।।
त्रिशलानंदन..........।।४।।
ॐ ह्रीं श्रीमहावीरतीर्थंकराय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
त्रिशलानंदन, शत शत वंदन, शत शत वंदन तव चरणों में।
हम भक्तिभाव से अंजलि कर, प्रभु शीश झुकाते चरणों में।।
पूरणपोली खाजा गूझा, मोदक आदिक बहु लाये हैं।
निज आतम अनुभव अमृत हित, नैवेद्य चढ़ाने आये हैं।
हे वीरप्रभो! चरु अर्पण कर, हम नमन करें तव चरणों में।।
त्रिशलानंदन..........।।५।।
ॐ ह्रीं श्रीमहावीरतीर्थंकराय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
त्रिशलानंदन, शत शत वंदन, शत शत वंदन तव चरणों में।
हम भक्तिभाव से अंजलि कर, प्रभु शीश झुकाते चरणों मेंं।।
मणिमय दीपक में ज्योति जले, सब अंधकार क्षण में नाशे।
दीपक से पूजा करते ही, सज्ज्ञानज्योति निज में भासे।।
हे वीरप्रभो! तुम आरति कर, हम नमन करें तव चरणों में।।
त्रिशलानंदन..........।।६।।
ॐ ह्रीं श्रीमहावीरतीर्थंकराय मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
त्रिशलानंदन, शत शत वंदन, शत शत वंदन तव चरणों में।
हम भक्तिभाव से अंजलि कर, प्रभु शीश झुकाते चरणों में।।
दशगंध विमिश्रित धूप सुरभि, धूपायन में खेते क्षण ही।
कटु कर्म दहन हो जाते हैं, मिलता समरस सुख तत्क्षण ही।।
हे वीर प्रभो! हम धूप जला, अर्चन करते तव चरणों में।।
त्रिशलानंदन..........।।७।।
ॐ ह्रीं श्रीमहावीरतीर्थंकराय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
त्रिशलानंदन, शत शत वंदन, शत शत वंदन तव चरणों में।
हम भक्तिभाव से अंजलि कर, प्रभु शीश झुकाते चरणों में।।
एला केला अंगूरों के, गुच्छे अति सरस मधुर लाये।
परमानंदामृत चखने हित, फल से पूजन कर हर्षाये।।
हे वीर प्रभो! महावीर प्रभो! हम नमन करें तव चरणों में।।
त्रिशलानंदन..........।।८।।
ॐ ह्रीं श्रीमहावीरतीर्थंकराय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
त्रिशलानंदन, शत शत वंदन, शत शत वंदन तव चरणों में।
हम भक्तिभाव से अंजलि कर, प्रभु शीश झुकाते चरणों में।।
जल चंदन अक्षत पुष्प चरू, वर दीप धूप फल लाये हैं।
निजगुण अनंत की प्राप्ति हेतु, प्रभु अघ्र्य चढ़ाने आये हैं।।
‘‘सज्ज्ञानमती’’ सिद्धी देकर, हम नमन करें तव चरणों में।।
त्रिशलानंदन..........।।९।।
ॐ ह्रीं श्रीमहावीरतीर्थंकराय अनघ्र्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-उपेंद्रवङ्काा छंद-
त्रैलोक्य शांती कर शांतिधारा, श्री सन्मती के पदवंâज धारा।
निज स्वांत शांतीहित शांतिधारा, करते मिले है भवदधि किनारा।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
सुरकल्पतरु के वर पुष्प लाऊँ, पुष्पांजलि कर निज सौख्य पाऊँ।
संपूर्ण व्याधी भय को भगाऊँ, शोकादि हर के सब सिद्धि पाऊँ।।११।।
।। दिव्य पुष्पांजलि: ।।