।। जम्बूद्वीप ।।

णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं।
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।।

अनादिसिद्ध अनंतानंत आकाश के मध्य में चौदह राजू ऊँचा, सर्वत्र सात राजू मोटा, तलभाग में पूर्व पश्चिम सात राजू चौड़ा, घटते हुए मध्य में एक राजू चौड़ा, पुन: बढ़ते हुए ब्रह्म स्वर्ग तक पांच राजू चौड़ा और आगे घटते-घटते सिद्धलोक के पास एक राजू चौड़ा ऐसा पुरुषाकार लोकाकाश है।

इसमें मध्यलोक एक राजू चौड़ा और एक लाख चालीस योजन ऊँचा है।

जम्बूद्वीप का विस्तार - मध्यलोक में असंख्यात द्वीप-समूहों से वेष्टित गोल तथा जंबूवृक्ष से युक्त जंबूद्वीप स्थित है। यह एक लाख योजन विस्तार वाला है|

जंबूद्वीप की परिधि - तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताइस योजन, तीन कोश, एक सौ अट्ठाइस धनुष और कुछ अधिक साढ़े तेरह अंगुल है अर्थात् योजन ३,१६,२२७ योजन ३ कोश १२८ धनुष १३-(१/२) अंगुल है। लगभग १२६४९०८००६ मील।

जम्बूद्वीप का क्षेत्रफल - सात सौ नब्बे करोड़, छप्पन लाख, चौरानवे हजार, एक सौ पचास ७९०,५६,९४,१५० योजन है अर्थात् तीन नील, सोलह खबर, बाईस अरब, सतहत्तर करोड़, छ्यासठ लाख (३,१६,२२,७७,६६,००,०००) मील है।

जम्बूद्वीप की जगती - आठ योजन (३२०००मील) ऊँची, मूल में बारह (४८००० मील), मध्य में आठ (३२००० मील) और ऊपर में चार महायोजन (१६०००) मील विस्तार वाली है। जंबूद्वीप के परकोटे को जगती कहते हैं। यह जगती मूल में वङ्कामय, मध्य में सर्वरत्नमय और शिखर पर वैडूर्यमणि से निर्मित है, इस जगती के मूल प्रदेश में पूर्व-पश्चिम की ओर सात-सात गुफायें हैं, तोरणों से रमणीय, अनादिनिधन ये गुफायें महानदियों के लिए प्रवेश द्वार हैं।

वेदिका - जगती के उपरिम भाग पर ठीक बीच में दिव्य सुवर्णमय वेदिका है। यह दो कोश ऊँची और पांच सौ धनुष चौड़ी है अर्थात् ऊँचाई २ कोश और चौड़ाई ५०० धनुष है।

जगती के उपरिम विस्तार चार योजन में वेदी के विस्तार को घटाकर शेष को आधा करने पर वेदी के एक पाश्र्व भाग में जगती का विस्तार है यथा धनुष।

विशेष - दो हजार धनुष का एक कोश और चार कोश का एक योजन होने से चार योजन में ३२००० धनुष होते हैं अत: ३२००० धनुष में ५०० धनुष घटाया है।

वेदी के दोनों पाश्र्व भागों में उत्तम वापियों से संयुक्त वन खंड हैं। वेदी के अभ्यंतर भाग में महोरग जाति के व्यंतर देवों के नगर हैं। इन व्यंतर नगरों के भवनों में अकृत्रिम जिनमंदिर शोभित हैं।

जंबूद्वीप के प्रमुख द्वार - चारों दिशाओं में क्रम से विजय, वैजयंत, जयंत और अपराजित ये चार गोपुरद्वार हैं। ये आठ महायोजन (३२००० मील) ऊँचे और चार योजन (१६००० मील) विस्तृत हैं। सब गोपुर द्वारों में सिंहासन, तीन छत्र, भामंडल और चामर आदि से युक्त जिनप्रतिमायें स्थित हैं। ये द्वार अपने-अपने नाम के व्यंतर देवों से रक्षित हैं।। प्रत्येक द्वार के उपरिम भाग में सत्रह खन (तलों) से युक्त, उत्तम द्वार हैं।

विजय आदि देवों के नगर - द्वार के ऊपर आकाश में बारह हजार योजन लम्बा, छह हजार योजन विस्तृत विजयदेव का नगर है। ऐसे ही वैजयंत आदि के नगर हैं। इनमें अनेकों देवभवनों में जिनमंदिर शोभित हैं। विजय आदि देव अपने-अपने नगरों में देवियों और परिवार देवों से युक्त निवास करते हैं।

वनखंड वेदिका - जगती के अभ्यंतर भाग में पृथ्वीतल पर दो कोस विस्तृत आम्रवृक्षों से युक्त वनखंड हैं। सुवर्ण रत्नों से निर्मित उस उद्यान की वेदिका दो कोस ऊंची, पांच सौ धनुष चौड़ी है।

जंबूद्वीप का सामान्य वर्णन

जंबूद्वीप के भीतर दक्षिण की ओर भरत क्षेत्र है। उसके आगे हैमवत,हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत ये सात क्षेत्र हैं। हिमवान, महाहिमवान्, निषध, नील, रुक्मि और शिखरी ये छह पर्वत हैं।

दक्षिण में भरतक्षेत्र का विस्तार योजन है। भरतक्षेत्र से दूना हिमवान पर्वत है, उससे दूना हैमवत क्षेत्र हैंं। ऐसे विदेहक्षेत्र तक दूना-दूना विस्तार आगे आधा-आधा है।

भरतक्षेत्र के मध्य में पूर्व-पश्चिम लंबा समुद्र को स्पर्श करता हुआ विजयार्ध पर्वत है।

हिमवान आदि छह कुलाचलों पर क्रम से पद्म, महापद्म, तिगिंछ, केशरी, पुंडरीक और महापुंडरीक ऐसे छह सरोवर हैं।

इन छह सरोवरों से गंगा-सिंधु, रोहित-रोहितास्या, हरित-हरिकांता, सीता-सीतोदा, नारी-नरकांता, सुवर्णकूला-रूप्यकूला और रक्ता-रक्तोदा ये चौदह नदियां निकलती हैं जो कि एक-एक क्षेत्र में दो-दो नदी बहती हुई सात क्षेत्रों में बहती हैं।

विदेहक्षेत्र के बीचोंबीच में सुमेरु पर्वत

भरतक्षेत्र के छह खंड - हिमवान पर्वत के पद्मसरोवर से गंगा-सिंधु नदियां निकलकर नीचे कुंड में गिरकर विजयार्ध पर्वत की गुफाओं में प्रवेश करके दक्षिण भरत में आ जाती हैं और पूर्व-पश्चिम समुद्र में प्रवेश कर जाती हैं इसलिये भरतक्षेत्र के छह खंड हो जाते हैं।

इस प्रकार से जंबूद्वीप की यह सामान्य व्यवस्था है। इस जंबूद्वीप में तीन सौ ग्यारह पर्वत हैं जिनमें एक मेरु, छह कुलाचल, चार गजदंत, सोलह वक्षार, चौंतीस विजयार्ध, चौंतीस वृषभाचल, चार नाभिगिरि, चार यमकगिरि, आठ दिग्गजेंद्र और दो सौ कांचनगिरि हैं। यथा-

१±६±४±१६±३४±३४±४±४±८±२००·३११

सत्रह लाख बानवे हजार नब्बे नदियां हैं। चौंतीस कर्मभूमि, छह भोगभूमि, जम्बू- शाल्मलि ऐसे दो वृक्ष, चौंतीस आर्यखण्ड, एक सौ सत्तर म्लेच्छ खंड और पांच सौ अड़सठ कूट हैं। ये सब कहाँ-कहाँ हैं ? इन सभी को इस पुस्तक में बताया गया है।

जंबूद्वीप का विशेष वर्णन

छह कुलाचल

हिमवान - हिमवानपर्वत भरतक्षेत्र की तरफ १४४७१-५/१९ योजन (५७८८५०५२-१२/१९ मील) लम्बा है और हैमवत क्षेत्र की तरफ २४९३२-१/१९ योजन (९९७२८२१०-१०/१९ मील) लम्बा है। इसकी चौड़ाई १०५२-१२/१९ योजन (४२०८४२१(१/१९मील) प्रमाण है। ऊंचाई १०० योजन (४००००० मील) प्रमाण है।

महाहिमवान - यह पर्वत ४२१०-१०/१९ योजन (१६८४२१०५-५/१९ मील) विस्तार वाला है। हैमवत की तरफ इसकी लंबाई ३७६७४-१६/१९ योजन (१५०६९९३६८-८/१९ मील) है और हरिक्षेत्र की तरफ इसकी लंबाई ५३९३१-६/१९ योजन (२१५७२५२६३-३/१९ मील) है। यह पर्वत २०० योजन (८००००० मील) ऊँचा है।

निषध - यह पर्वत १६८४२-२/१९ योजन (६७३६८०००-१/१९ मील) विस्तृत है। इसकी हरिक्षेत्र की तरफ लंबाई ७३९०१-१७/१९ योजन (२९५६०४३५७-१७/१९ मील) एवं विदेह की तरफ की लंबाई ९४१५६-२/१९ योजन (३७६६२४४२१-१/१९ मील) है। इसकी ऊंचाई ४०० योजन (१६०००००मील) है।

आगे का नील पर्वत निषध के प्रमाण वाला है, रूक्मी पर्वत महाहिमवान सदृश है और शिखरी पर्वत हिमवान के प्रमाण वाला है।

पर्वतों के वर्ण-हिमवान् पर्वत का वर्ण सुवर्णमय है आगे क्रम से चांदी, तपाये हुये सुवर्ण, वैडूर्यमणि, चांदी और सुवर्ण सदृश है।

ये पर्वत ऊपर और मूल में समान विस्तार वाले हैं एवं इनके पाश्र्वभाग चित्र- विचित्र मणियों से निर्मित हैं।