{कायवाड्.मनः कर्म} शरीर, वचन और मन के अवलम्बर से आत्मा के प्रदेशों का संकल्प होना सो {योगः} है।
The action of body, the organ of speech and the mind is called yoga (activity).
{सः} वह योग {आस्त्रवः} आस्त्रव है।
It (this threefold activity) is nflux (asrava).
{शुभः} शुभ योग {पुण्यस्य} पुण्य कर्म के आस्त्रव में कारण है और {अशुभः} अशुभ योग {पापस्य} पाप कर्म के आस्त्रव में कारण है।
Virtuous activity is the cause of merit (punya) and wicked activity is the cause of demerit (papa).
{सकषायस्य साम्परायिकस्य} कषायसहित जीव के संसार के कारणरूप कर्म का आस्त्रव होता है और {अकषायस्य ईयापथस्य} कषायरहित जीव के स्थितिरहित कर्म का आस्त्रव होता है।
(There are two kinds of influx, namely) that of persons with passions, which extends transmigration, and that of persons free from passions, which prevents or shortents it.
{इन्द्रियाणि पंच} स्पर्शन आदि पांच इन्द्रियां, {कषायाः चतुः} क्रोधिदि चार कषाय, {अव्रतानि पंच} हिंसा इत्यादि पांच अव्रत और {क्रियाः पंचविंशति} सम्यक्त्व आदि पच्चीस प्रकार की क्रियाएं {संख्याः भेदः} इस प्रकार कुल 39 भेद {पूर्वस्य} पहले (साम्परायिक) आस्त्रव के हैं, अर्थात् इन सर्व भेदों के द्वारा साम्परायिक आस्त्रव होता है।
The subdivisions of the former are the five senses, the four passions, non-observance of the five vows and twenty-five activities.
{तीव्रमन्दज्ञाताज्ञातभावाधिकरण-वीर्य-विशेषेभ्यः} तीव्रभाव, मन्दभाव, ज्ञातभाव, अज्ञातभाव, अधिकरणविशेष और वीर्यविशेष से {तद्विशेषः} आस्त्रव में विशेषता- हीनाधिकता होती है।
Influx is differentiated on the basis of intensity or feebleness of thought-activity, intentional or unintentional nature of action, the substratum and its peculiar potency.
{अधिकरणं} अधिकरण {जीवाजीवाः} जीवद्रव्य और अजीवद्रव्य ऐसे दो भेदरूप है; इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि आत्मा में जो कार्मस्त्रव होता है अैर उसमें दो प्रकार का निमित्त होता है; एक जीव निमित्त और दूसरा अजीव निमित्त।
1 A literal meanings of the text would read as follows : ‘The subdivisions of the former are senses, the passions, the non-observance f the vows and the activities, which are of five, four five and twenty-five kinds respectively.’
The living and the non-living constitute the substrata.
{आद्यं} पहला अर्थात जीव अधिकरण-आस्त्रव {संरम्भसमारम्भारम्भयोग, कृतकारितानुमतकषायविशेषैः च} संरम्भ-समारम्भ-आरम्भ, मन-वचन-कायरूप तीन योग, कृत-कारित-अनुमोदना तथा क्रोधादि चार कषायों की विशेषता से {त्रिः त्रिः त्रिः चतुः} 3 गुणा 3 गुणा 3 गुणा 4 गुणा {एकशः} 108 भेदरूप है
The substratum of the living of 108 kinds.2
{परम्} दूसरा अजीवाधिकरण आस्त्रव {निर्वर्तना द्वि} दो प्रकार की निर्वर्तना, {निक्षेप चतुः} चार प्रकार के निक्षेप {संयोग द्वि} दो प्रकार के संयोग और {निसर्गा त्रिभेदाः} तीन प्रकार के निसर्ग ऐसे कुल 11 भेदरूप है।
2Literal version. The substratum of the living is planning to commit violence, preparation for it, and commencement of it, by activity, doing, causing it done, and approval of it, and issuing from the passions, which are three, three, three, and four respectively.
Production, placing, combining and urging are the substratum of the non-living.
{तत्प्रदोष निह्नव मात्सर्यान्तरायासादनोपघाताः} ज्ञान और दर्शन के सम्बन्ध में करने में आये हुए प्रदोष, निह्नव, मात्सर्य, अन्तराय, आसादन और उपघात ये {ज्ञानदर्शनावरणयोः} ज्ञानावरण तथा दर्शनावरण कर्मास्त्रव के कारण हैं।
Spite against knowledge, concealment of knowledge, non-imparting of knowledge out of envy, causing impediment to acquisition of knowledge, disregard of knowledge, and disparagement of true knowledge, lead to the influx of karmas which obscure knowledge and perception.
{आत्मपरोभयस्थानानि} अपने में, पर में और दोनों के विषय में स्थित {दुःखशोकतापाक्रन्दनवधपरिदेवनानि} दुःख, शोक, ताप, आक्रन्दन, वध और परिदेवन ये {असद्वेद्यस्य} असातावेदनीय कर्म के आस्त्रव के कारण हैं।
Suffering, sorrow, agony, moaning, injury, and lamentation, in oneself, in others, or in both, lead to the influx of karmas which causes unpleasant feeling.
{भूतव्रत्यनुकम्पा} प्राणियों के प्रति और व्रतधारियों के प्रति अनुकम्पा-दया, {दानसरागसंयमादियोगः} दान, सराग संयमादि के योग {क्षान्तिः शौचमिति} क्षमा और शौच, अर्हन्त भक्ति इत्यादि {सद्वेद्यस्य} सातावेदनीय कर्म के आस्त्रव के कारण हैं।
Compassion towards living beings in general and the devout in particular, charity, asceticsm with attachment etc. (i.e. restraint-cum-non-restraint, involuntary dissociation of karms without effort, austerities not based on right knowledge), contemplation, equanimity, freedom from greed-these lead to the influx of karmas that cause pleasant feeling.
{केवलिश्रुतसंघधर्मदेवावणवादः} केवली, श्रुत, संघ, धर्म और देव का अवर्णवाद करना सो {दर्शनमोहस्य} दर्शनमोहनीय कर्म के आस्त्रव का कारण है।
Attributing faults to the omniscient, the scriptures, the congregation of ascetics, the true religion, and the celestial beings, leads to the influx of faith-deluding karmas.
{कषायोदयात्} कषाय के उदय से {तीव्रपरिणामः} तीव्र परिणाम होना सो {चारित्रमोहस्य} चारित्र मोहनीय के आस्त्रव का कारण है।
Intense feelings induced by the rise of the passions cause the influx of the conduct-deluding karmas.
{बह्वारम्भपरिग्रहत्वं} बहुत आरम्भ और बहुत परिग्रह होना सो {नारकस्यायुषः} नरकायु के आस्त्रव का कारण है।
Excessive infliction of pain, and attachment cause the influx of karma which leads to life in the infernal regions.
{माया} माया-छलकपट {तैर्यग्योनस्य} तिर्यंचायु के आस्त्रव का कारण है।
Deceitfulness causes the influx of life-karma leading to the animal and vegetable world.
{अल्पारम्भपरिग्रहत्वं} थोड़ आरम्भ और थोड़ा परिग्रहपन {मानुषस्य} मनुष्य-आयु के आस्त्रव का कारण हैं।
Slight injury and slight attachment causes the influx of life-karma that leads to human life.
{स्वभावमार्दवं} स्वभाव से ही सरल परिणाम होना {च} भी मनुष्यायु के आस्त्रव का कारण है।
Natural mildness also (leads to the same influx).
{निःशीलव्रतत्वं च} शील और व्रत का जो अभाव है वह भी {सर्वेषाम्} सभी प्रकार की आयु के आस्त्रव का कारण है।
Non-observance of the supplementary vows, vows, etc. causes the influx of life-karmas leading to birth among all the four kinds of beings (conditions of existence).
{सरागसंयमसंयमासंयमाकामनिर्जराबालतपांसि} सरागसंयम, संयमासंयम, अकामनिर्जरा और बालतप {दैवस्य} ये दुवायु के आस्त्रव के कारण हैं।
Restraint with attachment, restraint-cum-non-restraint, involuntary dissociation of karmas, and austerities accompanied by perverted faith, cause the influx of life-karma leading to celestial birth.
{सम्यक्त्वं च} सम्यग्दर्शन भी देवायु के आस्त्रव का कारा है अर्थात् सम्यग्दर्शन के साथ रहा हुआ जो राग हे वह भी देवयु के आस्त्रव का कारण है।
Right belief also (is the cause of influx of life-karma leading to celestial birth).
{योगवक्रता} योग में कुटिलता {विसंवादनं च} और विसंवादन अर्थात् अन्यथा प्रवर्तन {अशुभस्य नाम्नः} अशुभ नामकर्म के आस्त्रव का कारण हैं।
Crooked activities and deception causes the influx of inauspicious physicque-making karmas.
{तद्विपरीतं} उससे अर्थात् अशुभ नामकर्म के आस्त्रव के जो कारण कहे उनसे विपरीत भाव {शुभस्य} शुभ नामकर्म के आस्त्रव का कारण हैं।
The opposites of these (namely straightforward activity, and honesty or candour) cause the influx of auspicious physicque-making karmas.
{दर्शनविशुद्धिः} 1- दर्शनविशुद्धि, {विनयसम्पन्नता} 2- विनयसम्पन्नता, {शीलव्रतेष्वनतीचारः} 3- शील और व्रतों में अनतिचार अर्थात अतिचार का न होना, {अभीक्ष्णज्ञानोपयोग:} 4- निरन्तर ज्ञानोपयोग {संवेगः} 5- संवेग अर्थात् संसार से भयभीत होना, {शक्तितस्त्यागतपसी} 6-7- शक्ति के अनुसार त्याग तथा तप करना, {साधुसमाधिः} 8- साधुसमाधि, {वैयावृत्यकरणम्} 9- वैयावृत्य करना, {अर्हदाचार्यबहुश्रुतप्रवचनभक्तिः} 10-13- अर्हत्- आचार्य-बहुश्रुत (उपाध्याय) और प्रवचन (शास्त्र) के प्रति भक्ति करना, {आवश्यकापरिहाणिः} 14- आवश्यक में हानि न करना, {मार्गप्रभावना} 15- मार्ग प्रभावना और {प्रवचनवत्सलत्वम्} 16 - प्रवचन-वात्सल्य {इति तीर्थकरत्वस्य} ये सोलह तीर्थंकर-नामकर्म के आस्त्रव का कारण हैं।
The influx of Tirthamkara name-karma is caused by these sixteen observance, namely, purity of right faith, reverence, observance of vows and supplementary vows without transgress sons, ceaseless pursuit of knowledge, perpetual fear of the cycle of existence, giving gifts (charity), practicing austerities according to one’ capacity, removal of obstacles that threaten the equanimity of ascetics, servicing the meritorious by warding off evil or suffering, devotion to omniscient lords, chief preceptors, preceptors, and the scriptures, practice of the six essential daily duties, propagation of the teaching of the omniscient, and fervent affection of one’s brethren following the same path.
{परात्मनिंदाप्रशंसे} दूसरे की निंदा और अपनी प्रशंसा करना {सदसद्गुणोच्छादनोभ्दावने च} तथा प्रगट गुणों को छिपाना और अप्रगट गुणों को प्रसिद्ध करना सो {नीचैर्गोत्रस्य} नीचे गोत्रकर्म के आस्त्रव का कारण हैं।
Censuring others and praising oneself, concealing good qualities preset in others and proclaiming noble qualities absent in oneself, cause the influx of karmas which lead to low status.
{तद्विपर्ययः} उस नीच गोत्रकर्म के आस्त्रव के कारणों से विपरीत अर्थात्, आत्मनिंदा इत्यादि {च} तथा {नोचैर्वृत्यनुत्सेकौ} नम्र वृत्ति होना तथा मद का अभाव-सो {उत्तरस्य} दूसरे गोत्रकर्म अर्थात उच्च गोत्रकर्म के आस्त्रव का कारण हैं।
The opposites of those mentioned in the previous sutra, and humility and modesty, cause the influx of karmas which determine high status.
{विघ्नकरणम्} दान, लाभ, भोग, उपयोग, तथा वीर्य में विघ्न करना सो {अन्तरायस्य} अन्तराय कर्म के आस्त्रव का कारण हैं।
Laying an obstacle is the cause of the influx of obstructive karmas.
।।इति तत्वार्थाधिगमे मोक्षशास्त्रे षठोऽध्यायः।।