भगवान महावीर सब ओर से भव्यों को सम्बोध कर पावा नगरी पहुंचे और हां ’’मनोहर उद्यन’’ नाम के वन में विराजामन हो गये। जब चतुर्थकाल में तीन वर्ष साढ़े अठ माह बाकी थे, तब स्वाति नक्षत्र में कार्तिक अमावस्या के दिन प्रातःकाल (उषाकाल) के समय अघातिया कर्मों को नाश कर भगवान कर्म बन्धन से मुक्त होकर मोक्षधाम को प्राप्त हो गये। इन्द्रादि देवों ने आकर उनके शरीर की पूजा की। उ समय देवों ने बहुत भारी देदीप्यामान दीपकों की पंक्ति से पावा नगरी को सब तरफ सेप्रकाशयुक्त कर दिया। उस समय से लेकर आज तक लोग प्रतिवर्ष दीपमालिका द्वारा भगवान महावीर कीपूजा करने लगे।1 उसी दिन सांयकाल में श्री गौतमस्वामी को केवलज्ञान प्रगट हो गया, तब देवां ने आकर गंधकुटी की रचना करके गौतमस्वामी की एवं केवलज्ञान की पूजा की। इसी उपलक्ष्य में लोग सांयकाल में दीपकों को
जलाकर पुनः नयी बही आदि का मुहूर्त करते हुए गणेश और लक्ष्मी की पूजा करने लगे हैं। वास्तव में ’’गणनां ईशः गणेश = गणेशः = गणधरः’’ इस व्युत्पत्ति के अनसार बारह गणों के अधिपति गौतम गणधर ही गणेश हैं ये विघ्नों के नाशक हैं ओर उनके केवलज्ञान विभूति की पूजा ही महालक्ष्मी की पूजा ह।
कार्तिक वदी चैदश की पिछली रात्रि में अर्थात् अमावस्या में प्रभात में पौ फटने के पहले ही आज भी पावापुरी में निर्वाण लाडू चढ़ाया जाता है अतः अमावस्रूा के लिद प्रातः चार बजे से जिन मंदिर में पहुंचकर भगवान महावीर का अभिषेक करके नित्य पूजा में नवदेवत या देवशास्त्र गुरू की पूजा करके भगवान महावीर की पूजा करनी चाहिए। उस पूजा में गर्भ, जन्म, तप और ज्ञान इन चार कल्याणकों के अघ्र्य चढ़ाकर इसी पुस्तक में आगे मुद्रित निर्वाण की भाषा पढ़कर पुनः निर्वाण कल्याण का अघ्र्य पढ़कर निर्वाणलाडू चढ़ाकर जयमाला पढ़ी चाहिए। अवकाश हो तो निर्वाण क्षेत्र पूजा करं। अनन्तर शांति पाठ विसर्जन करके पूजा पूर्ण करनी चाहिए। उषा बेला में निर्वाणलाडू चढ़ते समय घी के चैबीस दीपक जलाने की परम्परा है।
सांयकाल में दीपकों को प्रज्वलित करते समय निम्नलिखित मंत्र बोलना चाहिए-
ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं मोहान्धकारविनाशनाय ज्ञानज्योति प्रद्योतनाय दीपपंक्ति प्रज्वालयामीति स्वाहा।
पुनः प्रज्वलित दीपकों को लेकर सबसे पहले मंदिर जी में रखना चाहिए अनन्तर घर में, दुकान आदि में सर्वत्र दीपकां को सजाकर दीपकमालिका उत्सव मनाना चाहिए।
पुनः स्थिर लग्न में, शुभमुहूर्त में दूकान पर पूजन, बही पूजन करनी चाहिए। दुकान पर पवित्र स्थान पर मेज पर सिंहासन में वनिायक यंत्र रखकर जिनवाणी विराजमान करनी चाहिए पुनः सामने एक चैकी, पूजन सामग्री, हल्दी, सुपाड़ी, सरसो, दूर्वा, शुद्ध केसर, घिसा चंदन आदि रखकर पूजा शुरू करनी चाहिए। इस समय नूतन बही, रजिस्टर आदि रख लेना चाहिए, उसमें स्वास्तिक आदि बना लेना चाहिए जैने-
’’श्री’’ का पर्वताकार1 लेखन, श्रीऋषभााय नमः श्रीवर्धमानाय नमः, श्रीगौतमगणधराय नमः, श्रीकेवलज्ञान महालक्ष्म्यै नमः मंत्र लिखना चाहिए।
पुनः मंगलाष्ट पढ़कर नवदेवता की पूजा करके गौतम गणधर की पूजा करके ’’केवलानलक्ष्मी’’ की पूजा करनी चाहिए। बाद में शांति पाठ और विसर्जन करके परिार के सभी लोगों को तिलक लगाना चाहिए, यह संक्षिप्त विधि है।
इसमें शांति पाठ के पहले नूतन बही, रूपयों की थैली आदि में पुष्पांजलि क्षेपण करते समय अग्रलिखित संकल्प विधि पढ़नी चाहिए।
ऊँ आद्यानामाद्ये जम्बूद्वीपे मेरोर्दक्षिणभागे भरतक्षेत्रे आर्यखण्डे भारतदेशे..............प्रदेशे.............ग्रामे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे अमावस्यायां तिथौ वीरनिर्वाणसंवत्..........तमे, विक्रमसंवत्..................तमे, ईसवी सन्...........तम, वासरे......................... नामधेयस्य (मम) आपणिकायां नूतन बहीशुभमुहूर्त करिष्ये (कारयिष्ये) सर्वमगलं भवतु, शांतिः पुष्टिस्तुष्टिर्भवतु सर्वऋद्धिसिद्धिभवतु स्वाहा।
नोट - यदि विस्तार से विधि करनी है तो ’श्रीनेमिचन्द्र’ ज्योतिषाचार्य के लिखे अनुसार करना चाहिए यह आगे छपी है।
1. यह अगली विधि में दिया गया है।