समस्त संसार के ज्ञाता सर्वज्ञ, सुरेन्द्र-नरेन्द्र से पूजित, जन्म-मरण से रहित, कर्मरूपी रज के विनाशक, परमेष्ठी पद के धारी अर्हन्त भगवान् को नमस्कार हो।।1।।
जिन्होंने आठ कर्मरूपी ईंधन को जलाकर भस्म कर दिया है, जो क्षायिक सम्यक्त्व और क्षायिक ज्ञान से युक्त हैं, समस्त कर्मों से रहित परमेष्ठी स्वरूप हैं, ऐसे सिद्ध भगवान् को नमस्कार हो।।2।।
जो ज्ञानाचार, वीर्याचार आदि पाँच प्रकार की आचार में अच्छी तरह स्थित हैं, ज्ञानी हैं और सदा आचार का उपदेश करनेवाले हैं, ऐसे आचार्य परमेष्ठी को नमस्कार हो।।3।।
बारह प्रकार के श्रुत, ग्यारह अंग और चैदह पूर्व का उपदेश देनेवाले, श्रुतज्ञानी, स्वाध्याय और ध्यान में तत्पर उपाध्याय परमेष्ठी को सतत नमस्कार हो।।4।।
समस्त लोक के-ढाई द्वीप के त्रिगुप्तियों के धरी, तप, नियम, ज्ञान एवं दर्शन युक्त ब्रह्मचारी साधुओं को नमस्कार हो।।5।।
पंच परमेष्ठी को भावसहित कियागया नमस्कार समस्त पापों का नाश करनेवाला है।।6।।
मनुष्य, देव, असुर और विद्याधरों द्वारा पूजित तीनों लोकों में यह णमोकार मन्त्र सभी जंगलों में सर्वप्रथम और उत्कृष्ट महमंगल है।।7।।
अर्हन्त, सिद्ध, साधु और तीनों लोकों का मंगल करनेवाला धर्म वे चारों सदा मंगलरूप हों।।8।।
अरिहन्त, सिद्ध, साधु तथा जिन प्रणीत उदार धर्म ये चारों ही तीनों लोकों में उत्तम है।।9।।
संसारीरूपी घोर राक्षस के भय से त्रस्त मैं अर्हन्त, सिद्ध, साधु और इन चारों की शरीर में जाता हूँ।।10।।
जस्स वर-धम्मचक्कं, दिणयर-बिंबं व भासुरच्छायं।
नमस्कार करने के लिए झुके हुए सुरासुरेश्वरों के मुकुटों से गिरते हुए पुष्पों-द्वारा पूजित चरणवाले अर्हन्त महावीर वर्धमान के आगे सूर्य-बिम्ब के समान देदीप्यमान और तेज से उद्भासित धर्मचक्र चलताहै। यह धर्मचक्र आकाश, पाताल और समस्त पृथ्वीमण्डल को प्रकाशित करता हुआ यहाँ के प्राणियों के मिथ्यात्वरूपी अन्धकार का हरा करें।।11-13।।
यह णमोकार मन्त्र चिन्तनमात्र से समस्त जीवलोक में राक्षस, डकिनी, पिशाच, ग्रह यक्ष और भूत-प्रेतों से प्राणियों की रक्षा करता है।।14।।
भावपूर्वक इसका स्मरण करे हुए शुद्धात्मा वाद-विवाद, व्यवहार, जुआ, युद्ध एवं राजदरबार में विजय प्राप्त करता है।।15।।
शुभ ध्यान से युक्त भव्य जीव इस णमोकार मन्त्र का प्रातः तथा सायंकाल निरन्तर ध्यान करने से मोक्ष साधक बनता है।।16।।
इस मन्त्र का स्मरण करने वाला पुरूष वेताल, रूद्र, राक्षस, राजा, कूष्माण्डी, रेवती तथा सम्पूर्ण प्राणियों से अपराजित होता है।।17।।
णमोकार मन्त्र के पदों में स्थित समस्त अक्षरों में मात्राएँ बिजली की तरह प्रकाशमान हैं और इन मात्राओं में प्रत्येक मात्रा पर चन्द्र के समान धवल, जल के सदृश निर्मल, आकारसहित एक सौ योजन प्रमाणवाली, लाखों ज्वालाओं से युक्त बिन्दु वर्णित हैं।।18-19।।
लाखों जन्म-मरणों को दूर करनेवाले णमोकार मन्त्र की शक्ति जिनमें स्थित, है, उन सोलह अक्षरों में-से प्रत्येक अक्षर जगत् का उद्योत करने वाला है।।20।।
जो भव्य जीव भावपूर्वक एकाग्र चित्त होकर इस पंचनमस्कार की दृढ़तापूर्वक स्तुति करता है, वह दसों दिशाओं को प्रकाशित करता हुआ मोक्ष प्राप्त करता है।।21।।
तप-नियम-संयमरूपी रथ पंचनमस्कर रूपी सारथी तथा ज्ञानरूपी घोड़ों से युक्त हुआ स्पष्ट ही परम निर्वाणपुर में ले जाता है।।22।।
पंच समिति और तीन गुप्तियों से युक्त जो शुद्ध मनवाला शुद्धात्मा इस विजयशाली रथ में बैठता है, वह शीघ्र मोक्ष को प्राप्त करता है।।23।।
इस णमोकार मन्त्र के चिन्तनमात्र से जल और अग्नि स्तम्भिव हो जाते हैं तथा शत्रु, महामारी, चोर औरराजकुल द्वारा होनेवाले घोर उपद्रव नष्ट हो जाते हैं।।24।।
देवता और असुरों द्वारा नमस्कार किये गये आठ, आठ सौ, आठ हज़ार या आठ करोड़ सिद्ध मेरे शरीर की रक्षा करें।।25।।
उन अर्हन्तों को नमस्कार हो, जो त्रिलोक द्वारा पूज्य और अच्छी तरह स्तुत्य हैं तथा इन्द्र और राजाओं द्वारा वन्दित हैं, और जो जन्म-मरण से रहित हैं, वे हमें मोक्ष प्रदान करें।।26।।
आठों कर्मों को नष्ट कर देनेवाले, शुचिभूत, निरंजन, कल्याणमय तथा सुरेन्द्रों और नरेन्द्रों से पूजित अनादि अनन्त सिद्ध परमेष्ठी मुझे मुक्ति प्रदान करें।।27।।
‘‘ऊँ धणु-धणु महाधणु स्वहा’’ इस मन्त्र रूपी विद्या को सुनकर सब ईष्र्या, द्वेष और मात्सर्य से भरे हृदयवाले शीघ्र ही नष्ट होते हैं।।28।।
सोलह पत्रवाला, ज्वलन्त और दीप्त स्वरवाला तथा आठ आरे और आठ वलय से युकत छह ‘पंच नमस्कार चक्र’ त्रिभुवन में प्रमाणभूत है।।29।।
यह पंचनमस्कर चक्र समस्त भुवनों को प्रकाशित करनेवाला, सम्पूर्ण शत्रुओं को दूर भागनेवाला, मिथ्यात्वरूपी अन्धकार का नाश करनेवाला, मोह को दूर करनेवाला और अज्ञान के समूह का हनन करनेवाला है।।30।।
जो पंच नमुक्कारं, परमो पुरिसो पराइ भत्तीएं
जो उत्तम पुरूष सदा मध्यस्थ, सम्यग्दृष्टि, विशुद्ध चरित्रवान्, ज्ञानी प्रवचन भक्त और गुरूजनों की शुश्रूषा में तत्पर है तथा प्रणिधान से आत्मा को शुद्ध करके प्रतिदिन दोनों सन्ध्याओं के समय उत्कृष्टों भक्तिपूर्वक आठ, आठ सौ, आठ हज़ार, आठ करोड़ मन्त्र का जाप करता है, वह तीसरे भव में सिद्धि प्राप्त करता है।।31--33।।
यह णमोकार मन्त्र ही परम मन्त्र है, परम रहस्य है, सबसे बड़ा तत्त्व है, उत्कृष्ट ज्ञान है और है शुद्ध तथा ध्यान करने योग्य उत्तम ध्यान।।34।।
यह णमोकार मन्त्र अमोघ कवच है, परकोटे की रक्षा के लिए खाई है, अमोघ शस्त्र है, उच्चकोटि का भवन-रक्षक है, ज्योति है, बिन्दु है, नाद है, तारा है, लव है, यही मात्रा भी है।।35।।
इस पंच नमस्कार चक्र में आये हुए सोलह परमाक्षर-अरिहन्त, सिद्ध, आइरिय, उवज्झाय, साहू बीज एवं बिन्दु से गर्भित हैं, जगत् में उत्तम हैं, ज्योतिस्वरूप हैं, द्वादशांगरूप श्रुतसागर के महान् अर्थ को धारण करनेवाले पूर्वों का परम रहस्य है।।36।।
भावपूर्वक स्मरण किया गया यह मन्त्र चोर, हिंसक प्राणी, विषधर-सर्प, जल, अग्नि, बन्धन, राक्षस, युद्ध और राज्य के भय का नाश करता है।।37।।