गणितशास्त्र और णमोकार मन्त्र
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यों तो गणितशास्त्र का उपयोग लोक-व्यवहार चलाने के लिए होता है, पर आध्यात्मिक क्षेत्र में भी इस शास्त्र का व्यवहारप्राचीन काल से होता चला आ रहाहै। मन को स्थिर करने के लिए गणित एक प्रधान साधन है। गणित की पेचीदी गुत्थियों में उलझकर मन स्थिर हो जाता है तथाएक निश्चित केन्द्रबिन्दु पर आश्रित होकर आत्मिक विकास में सहायक होताहै। णमोकार मन्त्र, षट्खण्डागम का गणित, गोम्टसार और त्रिलोुसारके गणित मन की सांसारिक प्रवृत्तियों को रोकते हैं और उसे कल्याण के पथ पर अग्रसर करते हैं। वास्तव में गणितविज्ञान भी इसी प्रकार का है जिसे एक बारइसमें रस मिल जाता है, वह फिर इस विज्ञान को जीवन-भर दौड़ नहीं सकता है। जैनाचार्यों ने धार्मिक गणित का विधान कर मन को स्थिर करने का सुन्दर और व्यवस्थित मार्ग बतलाया है। क्योंकि निकम्मा मन प्रसाद करता है, जब तक यह किसी दायित्वपूर्ण कार्य में लगा रहता है, तब तक इसे व्यर्थ की अनावश्यक एवं नकरने योग्य बातों के सोचने का अवसर ही नहीं मिलता है पर जहाँ इसे दायित्व से छुटकारा मिला-स्वच्छन्द हुआ कि यह उन विषयों को सोचेगा, जिनका स्मरण भी कभी कार्य करते समय नहीं होता था। मन की गति बड़ी विचित्र है। एक ध्येय में केन्द्रित करदेने पर यह स्थिर हो जाता है।

नया साधक जब ध्यान का अभ्यास आरम्भ करता है, तब उसके सामने सबसे बड़ी कठिनाइ यह आती है कि अन्य समय जिन सड़ी-गली एवं घिनौनी बातों की उसने कभी कल्पना नहीं की थी, वे ही उसे याद आती हैं और वह घबरा जाता है। इसका प्रधान कारण यही है कि जिसका वह ध्यान करना चाहता है, उसमें मन अभ्यस्त नहीं है और जिनमें मन अभ्यस्त है, उनसे उसे हटा दिया गया है; अतः इस प्रकार की परिस्थिति में मन निकम्मा हो जाता है। किन्तु मन को निकम्मा रहना आता नहीं, जिससे वह उन पुराने चित्रें को उधेड़ने लगता है जिनका प्रथम संस्कार उसके ऊपर पड़ा है। वह पुरानी बातों के विचार में संलग्न हो जाता है।

आचार्य ने धार्मिक गणित की गुत्थियों केा सुलझाने के मार्ग-द्वारा मनको स्थिर करने की प्रक्रिया बतलायी है, क्योंकि नये विषय में लगने से मन ऊबता है, घबराता है, रूकता है और कभी-कभी विरोध भी करने लगता है। जिस प्रकार पशु किसी नवीन स्थान परनये खूंटे से बांधने पर विद्रोह करता है, चाहे नयी जगह उसके लिए कितनी ही सुखप्रद क्यों न हो, फिर भी अवसर पाते ही रस्सी तोड़कर अपने पुराने स्थान पर भाग जाना चाहता है। इसी प्रकार मन भी नये विचार में लगना नहीं चहता। कारण स्पष्ट है, क्योंकि विषयचिन्तन का अभ्यस्त मन आत्मचिन्तन में लगने से घबराता है। यह बड़ा ही दुर्निग्रह और चंचल है। धार्मिक गणित के सतत अभ्यास से यह आत्मचिन्तन में लगता है और व्यर्थ की अनावश्यक बातें विचार-क्षेत्र में प्रविष्ट नहीं हो पातीं।

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णमोकार महामन्त्र का गणित इसी प्रकार का है, जिससे इसके अभ्यास द्वारा मन विषय-चिन्तन से विमुख हो जाताहै और णमोकार मन्त्र की साधना में लग जाता है। प्रारम्भ में साधक जब णमोकार मन्त्र काध्यान करना शुरू करता है तो उसका मन स्थिर नहीं रहता है। किन्तु इस महामन्त्र के गणित-द्वारा मन को थोड़े ही दिन में अभ्यस्त कर लिया जाता हैं इधर-उधर विषयों की ओर भटकने वाला चंचल मन, जो कि घर-द्वार छोड़ कर वन में रहने पर भी व्यक्ति को आन्दोलित रखता है, वह इस मन्त्र के गणित के सतत अभ्यास द्वारा इस मन्त्र के अर्थचिन्तन में स्थिर हो जाता है तथा पंचपरमेष्ठी-शुद्धता का ध्यान करने लगता है।

प्रस्तार, भंगसंख्या, नष्ट, उद्दिष्ट, आनुपूर्वी और इन गणित विधियों द्वारा णमोकार महामन्त्र का वर्णन किया गया है। इन छह प्रकार के गणित मेंचंचल मन एकाग्र हो जाता है। मन के एकाग्र होने से आत्मा की मलिनता दूर होने लगती है तथा स्वरूपाचरण की प्राप्ति हो जाती हैं। णमोकार मन्त्र में सामान्य रूप की अपेक्षा, पाँच या विशेष की अपेक्षा ग्यारह पद, चैंतीस स्वर, तीस व्यंजन, अटठावन मात्राओं-द्वारा गणित-क्रया सम्पन्न की जाती है। यहाँ संक्षेप में उक्त छहो प्रकार की विधियों का दिग्दर्शन कराया जाएगा।

भंगसंख्या-किसी भी अभीष्ट पद संख्या में एक, दो, तीन आदि संख्या को अन्तिम गच्छ संख्या एक रखकर परस्पर गुणा करने पर कुल भंगसंख्या आती है। आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ने भंगसंख्या निकालने के लिए निम्न कारणा सूत्र बतलाया है-

सव्वेपि पुव्वीांग उवरिमभंगेसु एक्ककमेक्केसु।
मेलंतित्ति य कमतो गुणिदे उप्पज्जदे संख्या।।36।।

अर्थ-पूर्व के सभी भंग आगे के प्रत्येक भंग में मिलते हैं, इसलिए क्रम से गुणा करने पर संख्या उत्पन्न होती है।

उदाहरण के लिए णमोकार मन्त्र की सामान्य पदसंख्या 5 तथा विशेष पदसंख्या 11 तथा मात्राओं की संख्या 58 को ही लिया जाता है। जिस संख्या के भंग निकालने हैं, वहीं संख्यागच्छ कहलाएगी। अतः यहाँ सर्वप्रथम 11 पदों की भंगसंख्या लानी है, इसलिए 11 गच्छ हुआ। इसको एक7दो-तीन आदि कर स्थापित किया- 1। 2। 3। 4। 5। 6। 7। 8। 9। 10। 11।

इस पदसंख्या में एक संख्या का भंग एक ही हुआ; क्योंकि एक का पूर्ववर्ती कोई अंक नहीं है, अतः एक को किसी से भी गुणा नहीं किया जा सकता है। दो संख्या के भंग दो हुए;क्योंकि दो को एक भंगसंख्या से गुणा करने पर दो गुणनफल निकला है। तीन संख्य के भंग छह हुए; क्योंकि तीन को दो की भंगसंख्या से गुणा करने पर छह हुए। चार संख्या के भंग चैबीस हुए, क्योंकि तीनकी भंग संख्या छह को चार से गुणा करने पर चैबीस गुणनफल निष्पन्न हुआ। पाँच संख्या के भंग एक सौ बीस हैं, क्योंकि पूर्वोक्त संख्या के चैबीस भंगों को पाँच से गुणा किया, जिससे 120 फल आया। छह संख्या के भंग 720 आये; क्योंकि पूर्वोक्त संख्या 120 गुणा 6 = 720 संख्यानिष्पन्न हुई। सात संख्या के भंग 5040 हुए, क्योंकि पूर्वोक्त भंगसंख्या को सात से गुणा करने र 720 गुण 7 = 5040 संख्या निष्पन्न हुई। आठ संख्या के भंग 40320 आये; क्योंकि पूर्वोक्त सात अंक की भंगसंख्या को आठ से गुणा किय तो 5040 गुण 8 = 40320 भंगों की संख्या निष्पन्न हुई। नौ संख्या के भंग 362880 हुए; क्योंकि पूर्वोक्त आठ अंक की भंगसंख्या को 9 से गुणा किया। अतः 40320 गुणा 9 = 36280 भंगसंख्या हुई। दस संख की भंगसंख्या लाने के लिए पूर्वोक्त नौ अंक की भंगसंख्या को दस से गुणा कर देने पर अभीष्ट अंक दस की भंगसंख्या निकल आएगी। अतः 362880 गुण 0 = 3628800 भंगसंख्या इस के अंक की हुई। ग्यारहवें पद की भंगसंख्या लाने के लिए पूर्वोक्त दस की भंगसंख्या को ग्यारह से गुणा कर देने परग्यारहवें पद की भंगसंख्या निकल आएगी। अतः 3628800 गुणा 11 = 39916800 ग्यारहवें पद की भंगसंख्या हुई।

प्रधान रूप में णमोकार मन्त्र में पाँच पद हैं। इनकी भंगसंख्या = 1ं 2। 3। 4। 5; ब गुण 1 =1; 1 गुण 2 = 2; 2 गुण 3 = 6; 6 गुण 4 = 24; 24 गुण 5 = 120 हुई। 58मात्राओं, 34 स्वरों और 30 यंजनों को भी गच्छ बनाकर पूर्वोक्त विधि से भंगसंख्या निकाल लेनी चाहिए। भंगसंख्या लाने पर एक संस्कृत करण सूत्र निम्न है। इस करण सूत्र का आशय पूर्वोक्त गाथा करणसूत्र से भिन्न नहीं है। मात्र जानकारी की दृष्टि से इस करण सूत्र को दिया जा रहा है। इसमें गाथोक्त ‘मेलंता’ के स्थान पर‘ परस्परहताः’ पठ है, जो सरलता की दृष्टि से अच्छा मालूम होता है। यद्यपि गाथा में भी ‘गुणिदा’ आगेवाला पद उसी अर्थ का द्योतक है। कहा गया है कि पदों को रखकर ‘‘एकाद्या गच्छपर्यन्ताः परस्परहताः पदाः। राशयस्तद्धि विज्ञेयं विकल्पगणिते फलम्।।’’ अर्थात एकादि गच्छों का परस्पर गुणा कर देने से भंगसंख्या निकल आती है।

इस गणित का अभिप्राय णमोकार मन्त्र के पदों द्वारा अंक-संख्या निकालना है। मनको अभ्यस्त और एकाग्र करने के लिए णमोकार मन्त्र के पदों का सीधा-सादा क्रमबद्ध स्मरण न कर व्यतिक्रम रूप से स्मरण करना है। जैसे पहले ‘णमो सिद्धाणं’ कहने के अनन्तर ‘णमो लेए सव्वसाहूणं’ पर का स्मरण करना। अर्थात ‘णमो सिद्धाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं, णमो आइरियाणं, णमो अरिहंताणं, णमो अवजझायाणं’ इस प्रकार स्मरण करना अथवा ‘‘णमो अरिहंताणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं, णमो आइरियाणं, णमो सिद्धाणं’’ इस रूप स्मरण करना या किन्हीं दो पद, तीन पद या चार पदों का स्मरण कर उस संख्या का निकालना। पदो ंके क्रम में किसी भी प्रकार का उलट-फेर किया जा सकता है।

यहाँ यह आशंका उठती है कि णमोकार मन्त्र के क्रम को बदल कर उच्चारण स्मरण या मनन करने पर पापलगेगा; क्योंकि इस अनादि मन्त्र का क्रमभंग होने से विपरीत फल होगा। अतः यह पद-विपर्यय का सिद्धान्त ठीक नहीं जँचता। श्रद्धालु व्यक्ति जब साधरण मन्त्रों के पद-विपर्यय से डरता है तथा अनिष्ट फल प्राप्त होने के अनेक उदाहरण सामने प्रस्तुत हैं, तब इस महामन्त्र में इस प्रकार का परिवर्तन उचित नहीं लगता।

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इस शंका का उत्तर यह है कि किसी फल की प्राप्ति करने के लिए गृहस्थ को भंगसंख्या-द्वारा णमोकार मन्त्र के ध्यान की आवश्यकता नहीं। जब तक गृहस्थ अपरिग्रही नहीं बना है, घर में रह कर ही साधना करना चाहता है, तब तक उसे उक्त क्रम से ध्यान नहीं करना चाहिए। अतः जिस गृहस्थ व्यक्ति का मन संसार के कार्यों में आसक्त है, वह इस भंगसंख्या-द्वादा मन को स्थिर नहीं कर सकता है। त्रिगुप्तियों का पालन करना जिसने आरम्भ कर दिया है, ऐसा दिगम्बर, अपरिग्रही साधु अपने मन को एकाग्र करने के लिए उक्त क्रम-द्वारा ध्यान करता है। मन को स्थिर करने के लिए क्रम-व्यतिवम रूप से ध्यान करने की अवश्यकता पड़ती है। अतः गृहस्थ को उक्त प्रयोग की प्रारम्भिक अवस्था में आवश्यकता नहीं है। हाँ, ऐसा व्रती श्रावक, जो प्रतिमा योग धारण करता है, वह इस विधि से णमोकार मन्त्र का ध्यान करने का अधिकारी है। अतएव ध्यान करते समय अपना पद, अपनी शक्ति और अपने परिणामों का विचार कर ही आगे बढ़ना चाहिए।

प्रस्तार-आनुपूर्वी और अनानुपूर्वी के अंगों का विस्तार करना प्रस्तार है। अथवा लोम-विलोम क्रम से आनुपूर्वी की संख्या को निकालना प्रस्तार है। णमोकार मन्त्र के पाँच पदों की भंगसंख्या 120 अयी है, इसकी प्रस्तार-पंक्तियाँ भी 120 होती हैं। इन प्रस्तार-पंक्तियों में मन को स्थिर किया जाता है। आचार्य नेमिचन्द सिद्धान्त-चक्रवर्ती ने गोम्मटसार जीवकाण्ड में प्रमाद का प्रस्तार निकाला है। इसी क्रम में णमोकार मन्त्र के पदों काभी प्रस्तार निकालनाहै। गाथा सूत्र निम्न प्रकार है:

पढमं पमदपमाणं कमेण णिक्खिविय उवरिमाणं च।
पिंडं पडि एक्केक्कं णिकिखत्ते होदि पत्थारों।।37।।
णिक्खित्तु विदियमेत्तं पढमं तस्सुवरि विदियमेक्केक्कं।
पिंडं पडि णिक्खे ओ एवं सव्वत्थ कायव्वो।।38।।

अर्थात्-गच्छ प्रमाण पद संख्या का विरलन करके उसके एक-एक रूप के प्रति उसके पिण्ड का निक्षेपण करने पर प्रस्ताव होता है। अथवा आगे वाले गच्छ प्रमाण का विरलन कर, उससे पूर्ववाले भंगों को उस विरलन पर रख देने और योग कर देने से प्रस्तार की रचना होती है। जैसे यहाँ 3 पदसंख्या का 4 पदसंख्या के साथ प्रस्तार तैयार करना है। तीन पदसंख्या के अंग 6 आये हैं। अतः प्रथम रीति से प्रस्तार तैयार करने के लिए तीन पद की भंगसंख्या का रिलनकिया तो 1।1।1।1।1। हुआ इसके ऊपर आगे की पदसंख्या की स्थापना की तो 414141414141 = 24
1।1।1।1।1।
हुए। इनका आगे वाली पदसंख्या के साथ प्रस्ताव बनाना हे तो इस 24 संख्या का विरलन किया
5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5
1।1।1।1।1।1।1।1।1।1।1।1।1।1।1।1।1।1 और इसके ऊपर आगेवाली संख्या स्थापित कर दी तो सब को जोड़ दने पर पस्तार बन जाता है। यह प्रस्तार संख्या 120 हुई। द्वितीय विधि से प्रस्तार निकालने के लिए जिस गच्छ प्रमाण का प्रस्तार बनाना हो, उसी का विरलन कर, पूर्व की भंगसंख्या को उसके नीचे स्थापित कर दिया जाता है और सबके जोड़ देने पर प्रस्तार हो जाता है। जैसे यह 4 पद-संख्या का प्रस्तार निकालना है तो इस चार का विरलन कर दिया 1111
6।6।6।6
और इस विरलन के नीचे पूर्व की भंगसंख्या को स्थपित कर दिया और सबको जोड़ किया तो 24 संख्या चैथे पद की आयी। यदि पाँचवें पद का प्रस्तार बनना हो तो इस पाँच का विरलन कर चैथे पद की संख्या को इसके नीचे स्थापित कर देने से द्वितीय विधि के अनुसार प्रस्तार आएगा। अतः 1111111111
24।24।24।24।24
इसका योग क्रिया तो 120 प्रस्तार आया। इस प्रकार णमोकार मन्त्र के 5 पदों की पंक्तियाँ 120 होती हैं। यहाँ पर छह-छह पंक्तियों के दस वर्ग बना कर लिखे जाते हैं। इन वर्गों से इस मन्त्र की ध्यान विधि पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है।

इस प्रकार क्रम-व्यतिवम-स्थापन-द्वारा एक सौ बीस पंक्तियाँ भी बनायी जाती हैं। इसका अभिप्राय यह है कि प्रथम वर्ग की प्रथम पंक्ति में णमोकार मन्त्र जयों का त्यों है; द्वितीय पंक्ति मेंप्रथम दो अंक संख्या रहने से इस मन्त्र का प्रथम द्वितीय पद, अनतर एक संख्या होने से पथम पद, पश्चात् तीन संख्या होन से तृतीय पद, अनन्तर चार अंक संख्या होने से चुर्थ पद और अन्त में पाँच अंक संख्या होने से पंचम द क इस मन्त्र में उच्चारण किया जाएगा अर्थात् प्रथम वर्ग की द्वितीय पंक्ति का मन्त्र इस प्रकार रहेगा-‘‘णमो सिद्धाणं णमो अरिहंताणं णमो आइरियाणं णमो अवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं।’’ इस वर्ग की तृतीय पंक्ति में पहला एक का अंक है, अतः इस मन्त्र का प्रथम पद; दूसरा तीन अंक है, अतः इस मन्त्र का तृतीय पद; तीसरा दो का अंक है, अतः इस मन्त्र का द्वितीय पद; चैथा चार का अंक है, अतः इस मन्त्र का चतुर्थ पदएवं पाँचवाँ पाँच का अंक हैं, अतः इस मन्त्र का पंचम पद का उच्चारण किया जाएगा। अर्थात् मन्त्र का रूप ‘‘णमो अरिहंताणं णमो आइरियाणं णमा सिद्धाणं णमो उवजयाणं णमो लोए सव्वसाहूणं’’ होगा। इसी प्रकारचैथी पंक्ति में प्रथम स्थान में तृतीय पद, द्वितीय में प्रथम पद, तृतीय में द्वितीय पद, चतुर्थ पद, चतुर्थ स्थान में चतुर्थ पद-और पंचम स्थान में पंचम पद होने से-‘‘णमो आइरियाणं अरिहंताणं णमो णमो सिद्धाणं णमो उवजयाणं णमो लोए सव्वसाहूणं’’ यह मन्त्र का रूप होगा। प्रथम वर्ग की पाँचवीं पंक्ति के प्रथम स्थान में द्वितीय पद, द्वितीय स्थानमें तृतीय प, चतुर्थ स्थान में चतुर्थ पद और पंचम स्थान में पंचम पद होने से ‘‘णमो सिद्धाणं आइरियाणं णमो णमो अरिहंताणं णमो अवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं।’’ यह मन्त्र का रूप हुआ। छठी पंक्ति में प्रथम स्थान में तृतीय पद, द्वितीय स्थान में द्वितीय पद, तृतीय स्थान में प्रथम पद, चतुर्थ स्थान में चतुर्थ पद और पंचम स्थान में पंचम पद के होने से ‘‘णमो आइरियाणं णमो सिद्धाणं अरिहंताणं णमो णमो उवजयाणं णमो लोए सव्वसाहूणं’’ मन्त्र का रूप होगा।

इसी प्रकार द्वितीय वर्ग की प्रथम पंक्ति में ‘‘णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो उवज्झायाणं’’ यह मन्त्र का रूप होगा। द्वितीय पंक्ति में ‘‘णमो सिद्धाणं णमो अरिहंताणं णमो आइरियाणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो उवज्झायाणं’’ यह मन्त्र; तृतीय पंक्ति में ‘‘णमो अरिहंताणं णमो आइरियाणं णमो सिद्धाणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो उवज्झायाणं’’ यह मन्त्र चतुर्थ पंक्ति में ‘‘णमो आइरियाणं णमो णमो लोए सव्वसाहूणं णमो उवज्झायाणं’’ यह मन्त्र; पंचम पंक्ति में ‘‘णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं णमो अरिहंताणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो उवज्झायाणं’’ यह मन्त्र और षष्ठ पंक्ति में ‘‘णमो आइरियाणं णमो सिद्धाणं अरिहंताणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो उवज्झायाणं’’ यह मन्त्र का रूप होगा।

तृतीय वर्ग की प्रथम पंक्ति में ‘‘णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो आइरियाणं’’ द्वितीय पंक्ति में ‘‘णमो सिद्धाणं मणे हअरिहंतण णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो आइरियाणं’’, यह मन्त्र; तृतीय पंक्ति में ‘‘णमो अरिहंताणं णमो उवज्झयाणं णमो सिद्धाण णमो लोए सव्वसाहूणं णमो आइरियाणं’’, यह मन्त्र; चतुर्थ पंक्ति में ‘‘णमो उवजयाणं णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो लाए सव्वसाहूणं णमो आइरियाणं’’, यह मन्त्र; पंचम पंक्ति में ‘‘णमो सिद्धाणं णमो उवज्झयाणं णमो अरिहताणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो साइरियाणं’’, यह मन्त्र और छठी पंक्ति में ‘‘णमो उवज्झायाणं णमो सिद्धाणं णमो अरिहंताणं णमो लोए सव्वसाहूणंणमो आइरियाणं’’, यहमन्त्र कारूप होगा।

चतुर्थ वर्ग की प्रथम पंक्ति में ‘‘णमो अरिहंताणं णमो आइरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो सिद्धाणं’’,यह मन्त्र; द्वितीय पंक्ति में ‘‘णमो अरिहंताणं णमो आइरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो सिद्धाणं’’, यह मन्त्र; तृतीय पंक्ति में ‘‘णमो अरिहंताणं णमो उवज्झायाणं णमो आइरियाणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो सिद्धाणं’’, यह मन्त्र; चतुर्थ पंक्ति में ‘‘णमोउवज्झायाण्यां णमो अरिहंताणं णमो आइरियाणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो सिद्धाणं’’, यह मन्त्र; पंचम पंक्ति में ‘‘णमो आइरियाणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो सिद्धाणं’’, यह मन्त्र; पंचम पंक्ति में ‘‘णमो अइरियाणं णमे अवज्झायाणं णमो अरिहंताणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो सिद्धाणं’’, यह मन्त्र और छठी पंक्ति में ‘‘णमो उवज्झायाणं णमो आइरियाणं णमो अरिहंताणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो सिद्धाणं’’, यह मन्त्र का रूप होगा।

पंचम वर्ग की प्रथम पंक्ति में ‘‘णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो अरिहंताणं’’, यह मन्त्र; द्वितीय पंक्ति में ‘‘णमो आइरियाणं णमो सिद्धाणं णमो उवज्झायाणं णमो लेएसव्वसाहूणं णमो अरिहंताणं’’, यह मन्त्र; तृतीय पंकिक्त में ‘‘णमो सिद्धाणं णमो उवज्झायाणं णमो आइरिाणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो अरिहंताणं’’, यह मन्त्र; चतुर्थ पंक्ति में ‘‘णमो उवजझायाणंणमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो अरिहंताणं’’, यह मन्त्र; पंचम पंक्ति में ‘‘णमो आइरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो सिद्धाणं लोए सव्वसाहूणं णमो अरिहंताणं’’, यह मन्त्र और षष्ठ पंकित में ‘‘णमो उवज्झायाणं णमो आइरियाणं णमो सिद्धाणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो अरिहंताणं’’ यह मन्त्र का रूप होगा।

षष्ठ वर्ग की प्रथम पंक्ति में ‘‘ अरिहंताणं णमो णमो सिद्धाणं णमो उवज्झायाणं णमो आइरियाणं लोए सव्वसाहूणं ’’, यह मन्त्र; द्वितीय पंक्ति में ‘‘णमो सिद्धाणं णमो अरिहंताणं णमो अवज्झायाणं णमो आइरियाणं णमो लोए सव्वसाहूणं’’, यह मन्त्र; तृतीय पंक्ति में ‘‘णमो अरिहंताणं णमो उवज्झायाणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं णमो लोए सव्वसाहूणं’’, यह मन्त्र; चतुर्थ पंक्ति में ‘‘णमो सिद्धाणं णमो उवज्झायाणां णमो अरिहंताणं णमो आइरियाणं णमो लोए सव्वसाहूणं’’, यह मन्त्र; पंचम पंक्ति में ‘‘णमो उवज्झायाणं णमो सिद्धाणं णमो अरिहंताणं णमो आइरियाणं णमो लोए सव्वसाहूणं’’ यह मन्त्र और षष्ठ पंक्ति में ‘णमो उवजयाणं णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं णमो लोए सव्वसाहूणं’’, यह मन्त्र का रूप होगा।

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सप्तम वर्ग की प्रािम पंक्ति में ‘‘णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो आइरियाणं णमोउवज्झायाणं’’, यह मन्त्र; द्वितीय पंक्ति में ‘‘णमो सिद्धाणं णमो अरिहंताणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो आइरिाणं णमो उवज्झायाणं’’, यह मन्त्र; तृतीय पंक्ति में ‘‘णमो अरिहंताणं णमो लोए सव्वसाहूणं ामो सिद्धाणं णमो आइरियाणं णमो अवज्झायाणं’’ यह मन्त्र; चतुर्थ पंक्ति में ‘णमो लोए सव्वसाहूणं णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं णमो उवज्झायाणं’’, यह मन्त्र और पंचम पंक्ति में ‘‘णमो सिद्धाणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो अरिहंताणं णमो आइरिाणं णमो उवज्झायाणं,’’ यह मन्त्र और षष्ठ पंक्ति में ‘‘णमो लोए सव्वसाहूणं णमो सिद्धाणं णमो अरिहंताणं णमो आइरियाणं णमो उवज्झायाणं,’’ यह मन्त्र का रूप होता है।

अष्टम वर्ग के प्रथम पंक्ति में ‘‘णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो उवज्झायाणं ामो आइरियाणं,’’ यह मन्त्र, द्वितीय पंक्ति में ‘‘णमो सिद्धाणं णमो अरिहंताण ामो लोए सव्वसाहूणं णमो उवज्झायाणं णमो आइरियाणं,’’ यह मन्त्र; तृतीय पंक्ति में ‘‘णमो अरिहंताणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो सिद्धाणं णमो उवज्झायाणं णमो आइरियाणं,’’ यह मन्त्र; चतुर्थ पंक्ति में ‘‘णमो लोए सव्वसाहूणं णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो उवज्झायाणं णमो आइरियाणं,’’ यह मन्त्र; पंचम पंक्ति में ‘‘णमो सिद्धाणं णमो लेए सव्वसाहूणं णमो अरिहंताणं णमो उवज्झायाणं णमो आइरियाणं,’’ यह मन्त्र और षष्ठ पंक्ति में ‘‘णमो लोए सव्वसाहूणं णमो सिद्धाणं अरिहंताणं णमो उवज्झायाणं णमो आइरिाणं,’’ यह मन्त्र का रूप होता है।

नवम वर्ग की प्रथम पंक्ति में, ‘‘णमो अरिहंताणं णमो आइरियाणं णमो लोए सव्वसाहूणं णामो उवज्झायाणं णमो सिद्धाणं,’’ यह मन्त्र; द्वितीय पंक्ति में ‘‘णमो आइरियाणं णमो अरिहंताणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो उवज्झायाण णमो सिद्धाणं,’’ यह मन्त्र; तृतीय पंक्ति में ‘‘णमो अरिहंताणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो आइरिाां णमो अवज्झायाणं णमो सिद्धाणं,’’ यह मन्त्र; चतुर्थ पंक्ति में ‘‘णमो लोए सव्वसाहूणं ामो अरिहंताणं णमो आइरियाणं णमो उवजयाणं णमो सिद्धाणं,’’ यह मन्त्र; पंचम पंक्ति में ‘‘णमो आइरिाणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो अरिहंताणं णमो अवज्झायाणं णमो सिद्धाणं,’’ यह मन्त्र और षष्ठ पंक्ति में ‘‘णमो लोए सव्वसाहूणं णमो आइरिाणं णमो अरिहंताणं णमो उवज्झायाणं णमो सिद्धाणं,’’ यह मन्त्र का रूप होता है।

दशम वर्ग की प्रथम पंक्ति में ‘‘णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं णमो लेए सव्वसाहूणं णमो उवज्झायाणं णमो अरिहंताणं’’ यह मन्त्र; द्वितीय पंक्ति में ‘‘णमो आइरिाणं णमो सिद्धाणं णमो लोए सव्वसाहूणं णमो उवज्झायाणं णमो अरिहंताणं’’ यह मन्त्र; चतुर्थ पंक्ति में ‘‘णमो लोए सव्वसाहूणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं णमो अवज्झायाणं णमो अरिहंताणं’’ यह मन्त्र; पंचम पंक्ति में ‘‘णमो आइरियाणं णमे लेोए सव्वसाहूणं णमो सिद्धाणं णमो उवज्झायाणं णमो अरिहंताणं’’ यह मन्त्रः और षष्ठ पंक्ति में ‘‘णमो लोए सव्वसाहूणं णमो आइरिाणं णमो सिद्धाणं णमो उवज्झायाणं णमो अरिहंताणं’’ यह मन्त्र का रूप होता है। इस प्रकार 120 रूपान्तर णमोकार मन्त्र के होते हैं।

णमोकार मन्त्र का उपर्युक्त विधि के उच्चारण तथा ध्यान करने पर लक्ष्य की दृढ़ता होती है तथा मन एकाग्र होता है।, जिससे कर्मों की असंख्यातगुणी निर्जरा होती है। इन अंकों को क्रमबद्ध इसलिए नहीं रखा गया है कि क्रमबद्ध होने से मन के विचार करने का अवसर कम मिलता है, फलतः मन संसार तन्त्र में पड़कर धर्म की जगह मार-धाड़ कर बैठता है। आनुपूर्वी क्रम से मन्त्र का स्मरण और मनन करने से आत्मिक शान्ति मिलती है। जो गृहस्थ व्रतोपवास करके धर्म ध्यानपूर्वक अपना दिन व्यतीत करना चाहता है, वह दिन-भर पूजा तो कर नहीं सकता। हाँ, स्वाध्याय अवश्य अधिक देर तक कर सकता है। अतः व्रती श्रावक को उपर्युक्त विधि से इस मन्त्र का जाप कर मन पवित्र करना चाहिए। जिसे केवल एक माला फेरनी हो, उसे तो सीधे रूप में ही णमोकार मन्त्र का जाप करना चाहिए। पर जिस गृहस्थ को मन को एकाग्र करना हो, उसे उपर्युक्त क्रम से जाप करने से अधिक शांति मिलती है। जो व्यक्ति स्नानादि क्रियाओं से पवित्र होकर श्वते वस्त्र पहनकर कुशासनपर बैठ उपर्युक्त विधि से इस मन्त्र का 108 बार स्मरण करता है अर्थात् 120 गुण 108 बार उपांशु जाप-बाहरी भीतरी प्रयास तो दिखलाई पड़े, पर कण्ठ से शब्दोच्चारण न हो, कण्ठ में ही शब्द अन्तर्जल्प करते रहें- करे तो वह कठित कार्य को सरलतापूर्वक सिद्ध कर लेता है। लौकिक सभी प्रकारकी मनःकामनाएं उक्त प्रकार से जाप करने पर सिद्ध होती हैं दिगम्बर मुनि कर्मक्षय करने के लिए उक्त प्रकार का जाप करते हैं। जब तक रूपातीत ध्यान की प्राप्ति नहीं होती, तब तक इस मन्त्र-द्वारा क्रिया पदस्थ ध्यान असंख्यातगुणी निर्जरा का कारण है।

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परिवर्तन-भंग संख्या में अन्त्य गच्छ का भाग देने से जो लब्ध आवे, वह उस उन्त्य गच्छ का परिवर्तनांक होता है, इसी प्रकार उत्तरोत्तर गच्छों का भाग देने पर जो लब्ध आवे वह उत्तरोत्तर गच्छसम्बंधी परिवर्तनांक संख्या होती है। उदाहरणार्थ-पूर्वोक्त भंगसंख्या 39916800 में अन्त्यगच्छ 11 का भाग दिया तो 39916800 » 11 = 3628800 परिवर्तनांक अन्त्यगच्छ का हुआ। इसी तरह 3628800 » 10 = 362880 यह परिवर्तनांक दस गच्छ का आया। 362880 » 9 अ 40320 यह परिवर्तनांक नौ गच्छ का आया। 40320 » 8 = 5040 यह परिवर्तनांक आठ गच्छ का हुआ। 5040 » 7 = 720 परिवर्तनांक सात गच्छ का आया। 720 » 6 = 120 यह परिवर्तनांक छह गच्छ का; 120 » 5 = 24 परिवर्तनांक पाँच गच्छ का; 24 » 4 = 6 परिवर्तनांक चार गच्छ का; 6 » 3 = 2 परिवर्तनांक तीन गच्छ का; 2 » 2 = 1 परिवर्तनांक दो गच्छ का एवं 1 » 1 = 1 परिवर्तनांक एक गच्छ का हुआं परिवर्तनांक चक्र निम्न प्रकार बनाया जाएगा।

परिवर्तन चक्र का प्रमाण निकालना नष्ट है। इसकी विधि है कि भंगसंख्या का भाग देने पर जो शेष रहे,उस शेष संख्यावाला भंग कही पद का मान होगा। पूर्व में 24-24 भंगों के कोठे बनाये गये हैं। अतः शेष तुलय पद समझ लेना चाहिए। एक शेष में ‘णमो अरिहंताण’ दो शेष में ‘ण्मो सिद्धाणं’ तीन शेष में ‘णमो आइरियाणं’ चार शेष में ‘णमो अवज्झायाणं’ और पाँच शेष में ‘णमो लोए सव्वसाहूणं’ पद समझना चाहिए। उदाहरणार्थ-42 संख्या कापदलानाहै। यहाँ सामान्य पदसंख्या 5 से भाग दिया तो-42 » 5 = 8, शेष 2। यहाँ शेष पद ‘ण्मो सिद्धाणं’ हुआ। 42वीं भंग पूर्वोक्त वर्गों में देखा तो ‘णमो सिद्धाणं’ का आया।

‘‘पदं धृत्वा रूपानयनमुद्दिष्टः‘‘ -पद को रखकर संख्या का प्रमाण निकालना उद्दित होता है। इसकी विधि यह है कि णमोकार मन्त्र के पद को रखकर संख्या निकालने के लिए ‘‘संठाविदूण एवं उवरीयों संगुणित्तु सगमाणे। अवणिज्ज अणंकदियं कुज्जा एमेव सव्वत्थ’’। अर्थात् एक का अंक स्थापन कर उसे सामान्य पदसंख्या से गुणा कर दें। गुणनफल में-से अनंकित पद को घटा दें, जो शेष आये, उसमें 5,10, 15, 20, 25, 30, 35, 40, 45, 50, 55, 60, 65, 70, 75, 80, 85, 90, 95, 100, 105, 110, 115 जोड़़ देने पर भंगसंख्या आती है। अपुनरूक्त भंगसंख्या 120 है, अतः 115 ही उसमें जोड़ना चाहिए। उदाहरण ‘‘णमो सिद्धाणं’ पद की भंगसंख्या निकालनी है। अतः यहाँ 1 संख्या स्थापित कर गच्छ प्रमाण से गुणा किया। 1 गुणा 5 = 5, इसमें से अनंकित पद संख्या को घटाया तो यहाँ यह अनंकित संख्या 3 है। अतः 5 - 3 = 2 संख्या हुई। 2 $ 5 = 7वां भंग, 2 $ 10 = 12वां भंग, 15 $ 2 = 17वां भंग, 20 $ 2 = 22वां भंग, 25 $ 2 = 27वां भंग, 30: 2 = 32वां भंग, 35 $ 2 = 37वां भंग, 40 $ 2 = 42वां भंग, 45 $ 2 = 47वां भंग, 50 $ 2 = 52वां भंग, 55 $ 2 = 57वां भंग, 60 $ 2 = 62वां भंग, 65 $ 2 = 67वां भंग, 70 $ 2 = 72वां भंग, 75 $ 2 = 77वां भंग, 80 $ 2 = 82वां भंग, 85 $ 2 = 87वां भंग, 90 $ 2 = 92वां भंग, 95 $ 2 = 97वां भंग, 100 $ 2 = 1022वां भंग, 105 $ 2 = 107वां भंग, 110 $ 2 = 112वां भंग, 115 $ 2 = 117वां भंग हुआ। अर्थात् ‘णमो सिद्धाणं’ यह पद 2रा 7वाँ, 12वाँ, 17वाँ, भंग है। इसी प्रकार नष्टोद्दिष्ट के गणित किये जाते हैं। इन गणितों के द्वारा भी मन को एकाग्र किया जाता है तथा विभिन्न कर्मों-द्वारा णमोकार मन्त्र के जपा-द्वारा ध्यान की सिद्धि की जाती है। यह पदस्थ ध्यान के अन्तर्गत है तथा पदस्थ ध्यान की पूर्णता इस महामन्त्र की उपर्युक्त जाप विधि के द्वारा सम्पन्न होती है। साधक इस महामन्त्र के उक्त क्रम से जाप करने पर सहस्त्रों पापों का नाश करता है। आत्मा के मोह और क्षोभ को उक्त भंगजाल-द्वारा णमोकार मन्त्र के जाप से दूर किया जाता है।