णमोकार मन्त्र प्रत्येक व्यक्ति को सभी प्रकार से सुखदायी है। इस महामन्त्र द्वारा व्यक्ति को तीनों प्रकार के कर्तव्यों-आत्मा के प्रति, दूसरों के प्रति और शुद्धात्माओं के प्रति-का परिज्ञान हो जाता है। आत्मा के प्रति किये जाने वाले कर्तव्यों में नैतिक कर्तव्य,सौन्दर्य विषयक कर्तव्य, बौद्धिक कर्तव्य, आर्थिक कर्तव्य और भौतिक कर्तव्य परिगणित हैं। इन समस्त कर्तव्यों परविचार करने से प्रतीत होता है कि इस महामन्त्र के आदर्श से हमें अपनी प्रवृत्तियों, वासनाओं, इच्छाओं और इन्द्रय वेगों परनियन्त्रण करने की प्रेरणा मिलती है। आत्मसंयम और आत्मसम्मान की भावना जाग्रत होती है। दूसरों के प्रति सम्पन्न किये जाने वाले कर्तव्यों में कुटुम्ब के प्रति, समाज के प्रति, देश के प्रति, नगर के प्रति, मनष्यों के प्रति, पशुओं के प्रति और पेड़-पौधों के प्रति कर्तव्यों का समावेश होता है। दूसरों के प्रति कर्तव्य सम्पादन करने में तीन बातें प्रधान रूप से आती है-सचाई, समानता ओर परोपकार। ये तीनों बातें णमोकार मन्त्र की आरधना से ही प्राप्त हो सकती हैं। इस महामन्त्र का आदर्श हमारे जीवन में उक्त तीनों बातों को उत्पन्न करता हैं। शुद्धतम-परमात्प के प्रति कर्तव्य में भक्ति और ध्यान को स्थान प्राप्त होता है। हमें नित्य प्रति शुद्धात्माओं की पूजा कर उनके आदर्श गुणों को अपने भीतर उत्पन्न करने का प्रयास करना होगा। केवल णमोकार मन्त्र का ध्यान, उच्चारण ओर स्मरण उपर्युक्त तीनों प्रकार के कर्तव्यों के सम्पादन में परम सहायक है।
प्रायः लोग अशंका किया करे हैं कि बार-बार एक ही मन्त्र के जाप से कोई नवीन अर्थ तो निकलता नहीं, है, फिर ज्ञान में विकास किसी प्रकार होता है? आत्मा के राग-द्वेष विचार एक ही मन्त्र के निरन्तर जपने से कैसे दूर हो जो हैं ? एक ही पद या श्लोक बार-बार अभ्यास में लाया जाता है, तब उसका कोई विशेष प्रभाव आत्मा पर नहीं पडता है। अतः मंगलमन्त्रों के बार-बार जापकी क्या आवश्यकता है? विशेषताः णमोकार मन्त्र के सम्बन्ध में यह आशंका और भी अधिक सबल हो जाती है। क्योंकि जिन मन्त्रों के स्वामी यक्ष यक्षिणी य अन्य कोई शासक देव माने जाते हैं, उन मन्त्रों के बार-बार उच्चारण का अभिप्राय उनके अधिकारी देवें को बुलाना या सर्वदा उनके साथ अपना सम्पर्क बनाये रखना है। पर जिस मन्त्र का अधिकारी कोई शासक देव नहीं है, उस मन्त्र के बार-बार पठन और मनन से क्या लाभ?
इस आशंका का उत्तर एक गणित के विद्यार्थी के दृष्टि से बड़े सुन्दर ढंग से दिया जा सकता है। दशमलव के गणित में आवर्त संख्या बार-बार एक ही आती है, पर प्रत्येक दशमलव का एक नवीन अर्थ एवं मूल्य होता है। इसी प्रकार णमोकार मन्त्र के बार-बार उच्चारण और मनन का प्रत्येक बार नूतन ही अर्थ होगा। प्रत्येक उच्चारण रत्नत्रय गुण विशिष्ट आत्माओं के अधिक समीप ले जाएगा। वह साधक जो निश्छल भाव से अटूट श्रद्धा के साथ इस महामन्त्र का स्मरण करताहै, इसके जाप द्वारा उत्पन्न होने वाली शकित को समझता है। विषय कषाय को जीतने के लिए इस महामन्त्र का जाप अमोघ अस्त्र है। पर इनती बात सदा ध्यान में रखने की है कि मन्त्र जाप करते हुए तल्लीनता आ जाए। जिसने साधना की प्रारम्भिक सीढ़ी पर पैर रखा है, मन्त्र जाप करते समय उसके मन में दूसरे विकल्प आएंगे, पर उनकी परवाह नहीं करनी चाहिए। जिस प्रकार आरम्भ में अग्नि जलाने परनियमतः धुआँ निकलता है, पर अग्नि जब कुछ देर जलती रही है, तो धुआँ क निकलना बन्द हो जाता है। इसी प्रकार प्रारम्भिक साधना के समक्ष नाना प्रकार के संकल्प-विकल्प आते हैं, पर साधना पथ में कुछ आगे बढ़ जने पर विकल्प रूक जाते हैं। अतः दृढ़ श्रद्धापूर्वक इस मन्त्र का जाप करना चाहिए। मुझे इसमें रत्ती-भर भी शक नहीं है कि यह मंगलमन्त्र हमारी जीवन-डोर होगा ओर संकटों से हमारी रक्षा करेगा। इस मन्त्र का चमत्कार है हमारे विचारों के परिमार्जन में। यह अनुभव प्रत्येक साधक के थोड़े ही दिनों में होने लगता है कि पंचमहाव्रत, मैत्री, प्रमोद, करूण्य ओर माध्यस्थ इन भवनाओं के साथ दान, शील, तप और ध्यान की प्राप्ति इस मन्त्र की दृढ़-श्रद्धा द्वारा ही सम्भव है। जैन बनने वाला पहला साधक तो इस णमोकार मन्त्र का श्रद्धासहित उच्चारण करता है। वासनाओं का जाल, क्रोध-लोभादि कषायों की कठोरता आदि को इसी मन्त्र की साधना से नष्ट किया जा सकता है। अतएव प्रत्येक व्यक्ति को सोते-जागते, उठते-बैठते सभी अवस्थाओं में इस मन्त्र का स्मरण रखना चाहिए। अभ्यास हो जाने पर अन्य क्रियाओं में संलग्न रहने पर भी णमोकार मन्त्र का प्रवाह अन्तश्वेतना में निरन्तर चलता रहता है। जिस प्रकार हृदय की गति निरन्तर होती रहती है, उसी प्रकार भीतर प्रविष्ट हो जाने पर इस मन्त्र की साधना सतत चल सकती है।
इस मंगलमन्त्र की अराधना में इस बात का ध्यान रखना होगा कि इसे एकमात्र तोते की तरह न रटें। बल्कि अवांछनीय विकारों को मन से निकलने की भावना रखकर और मन्त्र की ऐसा करने की शक्ति पर विश्वास रखकर ही इसका जाप करें। जो साधक अपने परिणामों के जितना अधिक लगायेगा, उसे उतना ही अधीक फल प्राप्त होगां यह सत्य है कि इस मन्त्र की साधना से शनैः शनैः आत्मा नीरोग-निर्विकार होता रहता है। आत्मबल बढ़ता जाता है। जहाँ तक सम्भव हो इस महामन्त्र का प्रयोग आत्मा को शुद्ध करने के लिए ही करना चाहिए। लौकिक कार्यों की सिद्धि के लिए इसके करने का अर्थ है, मणि देकर शाक खरीदना, अतः मन्त्र की सहायता से काम-क्रोध-लोभ-मोहादि विकारों को नष्ट करना चाहिए। यह मन्त्र मंगलमन्त्र है, जीवन में सभी प्रकार के मंगलों को उत्पन्न करने वाला है। अमंगल-विकार, पाप, सद् विचार आदि सभी इसकी आराधना से नष्ट हो जाते हैं। नमस्कार माहात्म्य गाथा पच्चीसी में बताया गया है:
अर्थात् - यह णमोकार मंगलमन्त्र जिनशसन का सार और चतुर्दश पूर्वों का समुद्धार है। जिसके मन में यह णमोकार महामन्त्र है, संसार उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है। यह मन्त्र मंगल का आगार, भय के दूर करने वाला, सम्पूर्ण चतुर्विध संघ को सुख देनेवाला और चिन्तनमात्र से अपरिमित शुभ फल को देने वाला है। तीनें लोकों में णमोकार मन्त्र से बढ़कर कुछ भी सार नहीं है, इसलिए प्रतिदिन भक्तिभाव और श्रद्धापूर्वक इस मन्त्र को पढ़ना चाहिए। यह दुःखों का नाश करने वाला, सुखों को देने वला, यश को उत्पन्न करने वाला ओर संसार रूपी समुद्र से पार करने वाला है। इस मन्त्र के समान इहलोक और परलोक में अन्य कुछ भी सुखदायक नहीं है।