|| Shree 1008 Nami Nath Bhagwan ||



Details
Emblem :~
Blue Lotus
Father :~
Vijay
Mother :~
Vapra (Vipra)
Birth Place :~
Mithila (Mathura)
Place of Nirvan :~
Samet Sikhar
Color :~
Golden
Panch-Kalyanak
Conception :~
Ashvin Krishna 2
Birth :~
Ashadh Krishna 10
Tap :~
Ashadh Krishna 10
Keval Gyan :~
Marghshirsh Shukla 11
Salvation :~
Vaishakh Krishna 14

नमिनाथ भगवान का परिचय

इसी जम्बूद्वीपसम्बन्धी भरतक्षेत्र के वत्स देश में एक कौशाम्बी नाम की नगरी है। उसमें इक्ष्वाकुवंशी ‘पार्थिव' नाम के राजा रहते थे और उनकी सुंदरी नाम की रानी थी। इन दोनों के सिद्धार्थ नाम का श्रेष्ठ पुत्र था। राजा ने किसी समय सिद्धार्थ पुत्र को राज्यभार देकर जैनेश्वरी दीक्षा ले ली और आयु के अन्त में समाधिमरणपूर्वक स्वर्गस्थ हो गये। पिता के समाधिमरण का समाचार सुनकर राजा सिद्धार्थ विरक्त हो गये। मनोहर नाम के उद्यान में जाकर महाबल नामक केवलीभगवान से धर्म का स्वरूप सुनकर क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त कर लिया और शान्त संयमी मुनि हो गये। उन्होंने ग्यारह अंग का ज्ञान प्राप्त करके सोलहकारण भावनाओं के बल से तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध कर लिया। तपश्चरणपूर्वक कर्म की निर्जरा करते हुए अन्त में समाधिमरण करके अपराजित नाम के श्रेष्ठ अनुत्तर विमान में अहमिन्द्र हो गये। वहाँ तेतीस सागर की आयु थी और एक हाथ ऊँचा शरीर था।

गर्भ और जन्म

जम्बूद्वीप के अन्तर्गत बंग देश में मिथिलानगरी है। वहाँ पर ऋषभदेव के वंशज काश्यपगोत्रीय विजय महाराज की रानी का नाम ‘वप्पिला' था। आश्विन कृष्ण द्वितीया के दिन अश्विनी नक्षत्र में वप्पिला महादेवी के गर्भ में उपर्युक्त अहमिन्द्र का जीव आ गया। आषाढ़ कृष्ण दशमी के दिन स्वाति नक्षत्र में रानी ने तीन ज्ञानधारी पुत्र को जन्म दिया। इन्द्रों ने जन्मोत्सव के बाद पुत्र का नाम ‘नमिनाथ' रखा। मुनिसुव्रतनाथ के बाद साठ लाख वर्ष के बीत जाने पर ये तीर्थंकर हुए हैं। प्रभु की आयु दस हजार वर्ष की थी और शरीर पन्द्रह धनुष ऊँचा था।

तप

जब कुमार काल के ढाई हजार वर्ष बीत गये, तब उनका राज्याभिषेक हुआ। राज्य करते हुए पाँच हजार वर्ष के बीत जाने पर एक दिन प्रभु वर्षा ऋतु से बादलों के व्याप्त होेने पर उत्तम हाथी पर बैठकर वन विहार को गये थे। उसी समय आकाशमार्ग से दो देवों ने आकर विनयपूर्वक नमस्कार करके कहना शुरू किया कि हे देव! इसी जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह में वत्सकावती देश है, उसकी सुसीमा नगरी में अपराजित नाम के तीर्थंकर को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है। उस केवलज्ञान की पूजा महोत्सव में हम लोग आये थे। उनकी सभा में प्रश्न हुआ कि क्या इस समय भरतक्षेत्र में कोई तीर्थंकर हैं ? सर्वदर्शी भगवान ने कहा कि हाँ! बंग देश की मिथिला नगरी के राजा नमिनाथ तीर्थंकर होने वाले हैं। इस समय वे देवों द्वारा लाये गये भोगोपभोग का अनुभव करते हुए गृहस्थावस्था में विद्यमान हैं। उन देवों की बात सुनते ही प्रभु नगर में वापस आ गये। विदेहक्षेत्रस्थ अपराजित तीर्थंकर तथा उनके साथ अपने पूर्व भव के सम्बन्ध का स्मरण कर भगवान संसार, शरीर, भोगों से विरक्त हो गये। तत्क्षण ही लौकांतिक देवों ने उन महामना की पूजा की। देवों द्वारा आनीत ‘उत्तरकुरू' नामक पालकी पर आरूढ़ होकर ‘चैत्रवन' नामक उद्यान में पहुँचे। वहाँ बेला का नियम लेकर आषाढ़ कृष्णा दशमी के दिन अश्विनी नक्षत्र में सायं के समय एक हजार राजाओं के साथ ‘ नम: सिद्धेभ्य:' मंत्र का उच्चारण करते हुए दीक्षित हो गये।

केवलज्ञान और मोक्ष

वीरपुर नगर के राजा दत्त ने प्रभु की प्रथम पारणा का लाभ लिया था। छद्मस्थ अवस्था के नव वर्ष बीत जाने पर वे प्रभु एक दीक्षावन में पहुँचकर बेला के नियमपूर्वक वकुल वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ हो गये। मगसिर शुक्ला एकादशी के दिन सायंकाल में लोकालोकप्रकाशी केवलज्ञान को प्राप्त हो गये।

उनके समवसरण में सुप्रभार्य आदि सत्रह गणधर थे। बीस हजार मुनि, मंगिनी आदि पैंतालीस हजार आर्यिकाएँ, एक लाख श्रावक, तीन लाख श्राविकाएँ थीं। विहार करते हुए एक मास की आयु अवशेष रहने पर भगवान नमिनाथ सम्मेदशिखर पर पहुँच गये। वहाँ एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमायोग में लीन हुए। प्रभु को वैशाख कृष्णा चतुर्दशी के दिन रात्रि के अन्तिम अश्विनी नक्षत्र में सिद्धपद प्राप्त हो गया। देवों ने आकर निर्वाण कल्याणक महोत्सव मनाया। ऐसे वे नमिनाथ तीर्थंकर सदा हमारी रक्षा करें।

Life of Shree 1008 Nami Nath Bhagwan

        Naminatha was the twenty-first Jain Tirthankar of the current era.According to Jain beliefs, he was born around 584,979 BCE . He became a siddha, a liberated soul which has destroyed all of its karma. Naminatha was born to King Vijay Raja and Queen Vipra Rani of the Ikshvaku dynasty, who were the rulers of Mithila at that time.His birth date is the 8th day of Shravan Krishna in the Indian calendar

The being that was to be Bhagavan Arishtanemi, in his earlier incarnation, was Shankh, the eldest son of king Shrishen of Hastinapur. One day some citizens and wayfarers came to the king and informed him that the highways approaching Hastinapur and the surrounding area were being terrorized by bandits and smugglers. No traveler or villager was safe from the attack of the bandits. Robbery and murder became a daily routine for them. The citizens requested he king to protect the masses. the king deputized prince Shankh to go and punish the bandits.

Prince Shankh was an accomplished diplomat and strategist. He planned and conducted his campaign in such a way that he apprehended the leader of bandits without any bloodshed. While he was on his way back he heard the cry of help of a young princess abducted by a Vidyadhar (a lower god); prince Shankh challenged the Vidyadhar, defeated him and saved princess Yahomati. when these young people saw each other they fell in love and got married. In due course prince Shankh ascended the throne.

Once a scholarly ascetic visited Hastinapur. King Shankh went for his Darshan, an asked him, “Why am I so deeply in love with Yashomati that all my desires to renounce come to a naught.” The ascetic said, “Your marital ties are many a life-time deep. For last six lives you are being married to each other, this is the seventh birth. That is the reason for such intense and deep feeling of love for each other.”

The king asked, “When these ties will be broken?”

The scholarly ascetic replied, “In your ninth incarnation you will be born as Neminath and she as Rajimati. In that birth you will be able to break this tie of love and become twenty second Tirthankar. Rajimati will also follow you on the path of renunciation and get liberated.”

Knowing all this Shankh had a deep feeling of detachment. He gave his kingdom to his son and became an ascetic. As a result of high spiritual practices and deep devotion for Jnan he earned the Tirthankar-nam-and gotra-karma and reincarnated in the Aprajit dimension of gods.

The being that was Shankh descended from the Aparajit dimension of gods into the womb of queen Shiva Devi, wife of king Samudravijay of Sauripur. The fourteen great dreams indicated that this being was to become a Tirthankar. On the fifth day of the bright half of the month of Shravaan queen Shiva Devi gave birth to a son. As per the convention 56 goddesses of directions arrived and performed the birth celebrations after the post-birth cleaning.

During the naming ceremony the king conveyed that as the queen had seen a disc with Arishta gems, the new born will be called Arishtanemi.

Omniscience and Nirvana

Arhat Neminath spent fifty four days in deep spiritual practices and then went to Vijaynat hill (Girnar). On the fifteenth day of the dark half of the month of Ashvin, in he afternoon, he was observing a two days fast and was meditating under a bamboo tree when he became an omniscient. Establishing he four pronged religious organization (Tirth) he became the twenty second Tirthankar.

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