Home
Bhajans
Videos
Aarti
Jain Darshan
Tirthankar Kshetra
KundKundacharya
Sammed Shikharji
Vidhi Vidhan
जैन पंचांग
January
February
March
April
May
June
July
August
September
October
November
December
श्री रत्नत्रय पूजा विधान
श्री रत्नत्रय विधान प्रत्येकाक्षरसम्बन्धिनी पूजा
(३५ अर्घ्य)
न्यंचंति नीचकर्माणि, णकारोच्चारमात्रत:।
शम्र्माणि समुदयं यांति, ततोऽहं पूजयामि तं।।
ॐ ह्रीं अर्हन्नमस्कार-सम्बन्धि-प्रथम-णकाराक्षराय अर्घ्यं.....।।१।।
मोऽक्षरं मंत्रराजस्य, यो जनो जिह्वया जपेत्।
मुच्यते मोहमातंगो-पद्रवादिह तत् क्षणं।।
ॐ ह्रीं अर्हन्नमस्कार-सम्बन्धि-द्वितीय-मोऽक्षराय अर्घ्यं.....।।२।।
अकार-स्वर-संभूत-वर्णनं केन वण्र्यते।
आदौ हि द्विपंचाशद्वर्णनां पठ्यते तथा।।
ॐ ह्रीं अर्हन्नमस्कार-सम्बन्धि-तृतीय-अकारस्वराय अर्घ्यं.....।।३।।
रायंति किन्नरा देवा:, सेवया च जगद्गुरो:।
उच्चै: स्वर-विशेषेण, रकारं तमहं यजे।।
ॐ ह्रीं अर्हन्नमस्कार-सम्बन्धि-चतुर्थरकाराक्षराय अर्घ्यं.....।।४।।
हंति हमक्षयं शीघ्रं, मोह शत्रुमनादिजं।
तमहं प्रयजे तस्मात्स्वकर्महानयेऽनिशं।।
ॐ ह्रीं अर्हन्नमस्कार-सम्बन्धि-पंचम-हमक्षराय अर्घ्यं.....।।५।।
पूर्वं न प्राणिभि: प्राप्ता, ऋद्धयोऽष्टौ च विष्टये।
ताक्षरेणाशु जायन्ते, तस्मात्ताक्षरमच्च्र्यते।।
ॐ ह्रीं अर्हन्नमस्कार-सम्बन्धि-षष्ठ-ताक्षराय अर्घ्यं.....।।६।।
णमित्यक्षरं लोकेऽहो प्रणामार्थप्रकाशवंâ।
प्रणामपूर्ववंâ तस्मात्तमच्र्चेहं जलादिभि:।।
ॐ ह्रीं अर्हन्नमस्कार-सम्बन्धि-णमक्षराय अर्घ्यं.....।।७।।
इति सप्ताक्षरैर्युक्ता-नर्हतश्च जलादिभि:।
अष्टभिद्र्रव्यसंदौहै-रर्घमुत्तारयाम्यहं ।।
ॐ ह्रीं णमो अरहंताणं अर्हत्-परमेष्ठिभ्य: पूर्णार्घ्यं.....।।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
सिद्ध-प्रबंध-सम्बन्धि-णकारोऽत्र प्रपूज्यते।
तस्य प्रसादतो नूनं, नमस्यंति नरामरा:।।
ॐ ह्रीं सिद्धनमस्कार-सम्बन्धि-प्रथम-णकाराक्षराय अर्घ्यं.....।।१।।
मोस्वरूपाक्षरदक्षा, लक्ष्यीकृत्यानुवेऽप्यहम्।
ध्यायंतु हृदये स्वस्य, मोक्षमार्गानुगामिन:।।
ॐ ह्रीं सिद्धनमस्कार-सम्बन्धि-द्वितीय-मोऽक्षराय अर्घ्यं.....।।२।।
सिस्वरूपाक्षरं शाश्वत्, पूजा द्रव्येण पावनं।
पूजयामि जगत्पूज्यं, भवस्य हरणे क्षमं।।
ॐ ह्रीं सिद्धनमस्कार-सम्बन्धि-तृतीय-सिकाराक्षराय अर्घ्यं.....।।३।।
धारणं पोषणं चेहाऽमुत्रेद्धाक्षरधारणात्।
तस्मात्कारणात्तमहं, पूजा-द्रव्यै: प्रपूजये।।
ॐ ह्रीं सिद्धनमस्कार-सम्बन्धि-चतुर्थ-द्धाक्षराय अर्घ्यं.....।।४।।
सानुस्वारं णकारं य:, प्रात: प्रातश्च पूजयेत्।
सिद्धा: सिद्धिं प्रयंच्छंतु, तस्मै पूजानुबंधिने।।
ॐ ह्रीं सिद्धनमस्कार-सम्बन्धि-पंचम-प्रांत प्राप्त णकाराक्षराय अर्घ्यं.....।।५।।
इति पंचाक्षरी पूजा, भव्याणां वांछितप्रदा।
तदर्थमष्टभिद्रैव्यैरर्घमुत्तारयाम्यहं ।।
ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिभ्य: पूर्णार्घ्यं....।।
णाक्षरं तं पुनर्नौमि प्रणमंति सुरा: यदा।
आचाय्र्यवंदनायां च, पूजयामि जलादिभि:।।
ॐ ह्रीं आचार्यनमस्कार-सम्बन्धि-प्रथम-णकाराक्षराय अर्घ्यं.....।।१।।
भूयोऽपि मोक्षरं मान्य-मानन्द मन्दिरं मुदा।
जलाद्यष्ट-विधैद्र्रव्यै-र्भक्ति-भारेण भाक्तिकै:।।
ॐ ह्रीं आचार्यनमस्कार-सम्बन्धि-द्वितीय-मोऽक्षराय अर्घ्यं.....।।२।।
आकारं निर्विकारं च, साध्वाचारस्य सूचवंâ।
आचरंति मुदाचार्या:, स्वाचारार्थमहं यजे।।
ॐ ह्रीं आचार्यनमस्कार-सम्बन्धि-तृतीय-आकारस्वराय अर्घ्यं.....।।३।।
ईश्वरं स्वरसंघातं, पूजितं प्रार्थितप्रदं।
प्रमोदभरसंभूतं, भक्तिभारेण चाच्र्यते।।
ॐ ह्रीं आचार्यनमस्कार-सम्बन्धि-चतुर्थ-ईस्वराय अर्घ्यं.....।।४।।
रीत्यक्षरराजस्य, गानं कुर्वंति रागिण:।
आचार्याणां गुण-ग्रामा-नर्चयामि विशेषत:।।
ॐ ह्रीं आचार्यनमस्कार-सम्बन्धि-रिकाराक्षराय अर्घ्यं.....।।५।।
याक्षरं पूज्यते नित्यं, परमार्थं प्रकाशवंâ।
यस्यार्थधारिणोऽप्याशु, प्राप्सु:मोक्षं मुनीश्वरा:।।
ॐ ह्रीं आचार्यनमस्कार-सम्बन्धि-षष्ठयाक्षराय अर्घ्यं.....।।६।।
णमक्षरं यजामीदं, नमिताऽशेषभूतलं।
आचार्य-नमनं तस्मा-दाद्योपांतेन जायते।।
ॐ ह्रीं आचार्यनमस्कार-सम्बन्धि-सप्तम-प्रांत णमक्षराय अर्घ्यं.....।।७।।
इति सप्ताक्षरी पूजा, तृतीया पूरणीकृता।
तदर्थं जलमुख्यैश्च, स्वर्घमुत्तारयाम्यहं।।
ॐ ह्रीं णमो आइरियाणं आचार्य परमेष्ठिभ्य: पूर्णार्घ्यं......।।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
उपाध्यायाधिकारीयो, णंकार: पूज्यते नरै:।
पाठशुद्धिर्भवेद्यस्माद्विधा या व्यसनस्य च।।
ॐ ह्रीं उपाध्यायनमस्कार-सम्बन्धि-प्रथम-णकाराक्षराय अर्घ्यं.....।।१।।
भूयोपि मोऽक्षरं भव्या:, पूजयंतु विशेषत:।
पानीयप्रमुखैद्र्रव्यै:, संसारासातहानये।।
ॐ ह्रीं उपाध्यायनमस्कार-सम्बन्धि-द्वितीय-मोऽक्षराय अर्घ्यं.....।।२।।
वितिवर्णविशेषं य;, पूजाद्रव्येण पूजयेत्।
सुरै: सन्मानतां याति, विंâ पुनर्नरनायवैâ:।।
ॐ ह्रीं उपाध्यायनमस्कार-सम्बन्धि-तृतीय-उकाराक्षराय अर्घ्यं.....।।३।।
वेतिवर्णं विधानेन, नरो नारी निरन्तरं।
अर्चयंत्यर्चनाद्रव्यै:, सुरै सौरं प्रपूज्यते।।
ॐ ह्रीं उपाध्यायनमस्कार-सम्बन्धि-चतुर्थ-वकाराक्षराय अर्घ्यं.....।।४।।
ज्झाक्षरनिर्झरद्वारि-धारया गन्ध सारया।
पूजयामि शुभैद्र्रव्यै:, सुगन्धाकृष्टषट्पदै:।।
ॐ ह्रीं उपाध्यायनमस्कार-सम्बन्धि-पंचम-ज्झाक्षराय अर्घ्यं.....।।५।।
यजनं याक्षरस्योच्चै-र्जना: कुर्वंतु नित्यश:।
न्यायोपात्तेन द्रव्येणा-नीतैद्र्रव्र्यैर्जलादिभि:।।
ॐ ह्रीं उपाध्यायनमस्कार-सम्बन्धि-षष्ठ-याक्षराय अर्घ्यं.....।।६।।
नमंति प्रणिधानेन, णमित्यक्षरनामवंâ।
ये नरा: नरके घोरे, न विशंति कदाचन।।
ॐ ह्रीं उपाध्यायनमस्कार-सम्बन्धि-सप्तम-णमित्यक्षराय अर्घ्यं.....।।७।।
भूय: सप्ताक्षरीं चेमां, पूजां कुर्वन्तु भावत:।
जलाद्यष्टविधैद्र्रव्यै-रर्घमुत्तारयाम्यहं ।।
ॐ ह्रीं णमो उवज्झायाणं उपाध्याय परमेष्ठिभ्य: पूर्णार्घ्यं.....।।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
बिना णवर्णं साधूनां, वंदनं नहि जायते।
ततस्तमक्षरं नित्यं, पूज्यते परमादरात्।।
ॐ ह्रीं सर्वसाधुनमस्कार-सम्बन्धि-प्रथम-णकाराक्षराय अर्घ्यं.....।।१।।
मोक्षरं यजते यो ना, मुच्यते पापसंचयात्।
संचिनोतिपरं पुण्यं, ततोहं पूजयामितं।।
ॐ ह्रीं सर्वसाधुनमस्कार-सम्बन्धि-द्वितीय-मोक्षराय अर्घ्यं.....।।२।।
लुनाति चाघसंघातं, लोवर्णलपितं मुखात्।
यस्तं सलिलधाराभि-र्यजते वर्णमातृका।।
ॐ ह्रीं सर्वसाधुनमस्कार-सम्बन्धि-तृतीय-लोवर्णाय अर्घ्यं.....।।३।।
एक्षरं ये धरंत्युच्चै:, कर्णजापं जना: यदा।
तदा तेषां भवेत् सर्वा, संपच्च सुखसाधिनी।।
ॐ ह्रीं सर्वसाधुनमस्कार-सम्बन्धि-चतुर्थ-एऽक्षराय अर्घ्यं.....।।४।।
स-साधु: सेव्यते नित्यं, यस्य ज्ञानगुणांबुधै:।
पारं न प्राप्यते सद्भि-बहुभिश्च विचारकै:।।
ॐ ह्रीं सर्वसाधुनमस्कार-सम्बन्धि-पंचम-सकाराक्षराय अर्घ्यं.....।।५।।
सर्वार्थसाधने दक्षं, दक्षा वाक्षरचर्चनं।
कुर्वंतु करुणायुक्ता:, सशक्ता: सर्वकर्मणि।।
ॐ ह्रीं सर्वसाधुनमस्कार-सम्बन्धि-षष्ठ-व्वाक्षराय अर्घ्यं.....।।६।।
साक्षरेणांजसा सेव्या, मोक्षलक्ष्मी मन:प्रिया।
यया च रंचितं चेतो, वैचित्यं नोपढौकते।।
ॐ ह्रीं सर्वसाधुनमस्कार-सम्बन्धि-सप्तमं-सा-क्षराय अर्घ्यं.....।।७।।
हूस्वरूपाक्षरस्यौच्चै:, पूजनं योमुदाचरेत्।
हा हा हू व्हादिभिर्देव्यै:, पूजां प्राप्नोति नित्यश:।।
ॐ ह्रीं सर्वसाधुनमस्कार-सम्बन्धि-अष्टम-हू-स्वरूपाक्षराय अर्घ्यं.....।।८।।
णमहं साधुवर्गस्य, साधुसंवादतां गतां।
पूजयामि महा भक्त्या, पूजाद्रव्यैर्निरंतरं।।
ॐ ह्रीं सर्वसाधुनमस्कार-सम्बन्धि-नवम ण-मित्यक्षराय अर्घ्यं.....।।९।।
साद्र्ध द्वितीयद्वीपेषु, साधवो ये वसन्ति वै।
तदर्थमष्टभिद्र्रव्यै-रर्घमुत्तारयाम्यहं ।।
ॐ ह्रीं णमो लोएसव्वसाहूणं सर्वसाधुभ्य: पूर्णार्घ्यं.....।।
अपराजित मंत्रस्य, पूजा सन्मंगलप्रदा।
विदुषाक्षयरामेण, कृता ज्ञेया विवेकिभि:।।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
जयमाला
अर्हंत: सुरराज पूजित पदा:, सिद्धा लसत्सद्गुणा:।
आचार्या: सुचरित्र साधनपरा:, अध्यापका धीश्वरा:।।
सिद्धा: साधन साधवोऽत्र भुवने, सद्बुद्धय: साधव:।
पंचैते परमेष्ठिनो निजगुणान्, यच्छंतु चाराधिता:।।१।।
कर्मकलंकनिवारणकारणध्यान करा:। भव्यसमूहसमुद्धरणैकजिनेश्वरा:।।
सिद्धवधूवरवांछितलांछित-बोधधरा:। जन्मजरामृतिरोगनिवारणसिद्धवरा:।।२।।
आचरणे सुविचारपरा: शुभध्यानधरा:। भूरिभवार्णवतारणकारण- पीतवरा:।।
दीक्षितबुद्धिसमुद्रविवर्धन-चन्द्रकरा:। पाठकतागुणधारणपाठकनामधरा:।।३।।
सौम्यदृगंकुशमारमतंगज- मानभिदं। साधुसमूहमहं प्रयजे गुरुज्ञानविदं।।
पापहरं महामंत्रपरं प्रणमंति नरा:। ये निज भक्तिभरेण त्रिसंधिविवेकपरा:।।४।।
ते सुरसद्म भजंति निरन्तरसौख्यभरं। देवगणै: परिशोभितमधिविदूरतरं।।
इन्द्रनरेन्द्रफणीन्द्रखगेन्द्रविभूतिप्रदं। जाप्यजपाक फलेण जलेन जलोदरदं।।५।।
भूतगणं ग्रहचौररणं, मणिमंत्रपरं। नाशयतीह च पापघनाघनवातभरं।।
प्रातररं जपनीयपरं परभक्तिभरै:। धर्मपरै: करुणारसपानमहाचतुरै:।।६।।
इत्थं पंचप्रभून् वै वरविधि-सहिता श्रावका: पूजयन्ति।।
ये ते वाग्भि:स्तुवंति, प्रगुणितपरमाह्लादभाजो भवन्ति।।७।।
तेषां च पंचत्रिशत् सुगुणितगणनामसंयुतानां निमित्तं।।
वर्णानां सोपवासं विधि मनति नयं संविधत्ते स भव्य:।।८।।
ॐ ह्रीं श्री सर्वज्ञमुखसमुद्भूत-अनादिनिधन श्री अपराजितनाममंत्राधिराजाय जयमाला पूर्णार्घ्यं.....।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
महामंत्राक्षराणि ये, पूजयन्ति महादरात्।
प्राप्नुवन्ति श्रियं शीघ्रं, ते भव्या स्वात्मसौख्यदाम्।।१।।
।।इत्याशीर्वाद:।।
व्रत विधि-णमोकार पैंतीसी के उपवास-३५, सप्तमी के ७, पंचमी के ५, चतुर्दशी के १४, नवमी के ९, ऐसे उपवास ३५ होते हैं।