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श्री रत्नत्रय पूजा विधान
णमोकार पैंतीसी विधानम्
व्रतोद्यापन : (संस्कृत)
-स्थापना-
मंत्राधिराजं णमोकारमंत्रम्। आह्वानन स्थापनसन्निधापनै:।।
संपूजयामीह विधानपूर्ववंâ। प्रत्येकवर्णानुगतं हितप्रदं।।
ॐ ह्रीं श्री सर्वज्ञमुखसमुद्भूत-अनादिनिधन श्री अपराजितनाममंत्राधिराज! अत्र अवतर अवतर संवौषट् इत्याह्वाननं।
ॐ ह्रीं श्री सर्वज्ञमुखसमुद्भूत-अनादिनिधन श्री अपराजितनाममंत्राधिराज! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं श्री सर्वज्ञमुखसमुद्भूत-अनादिनिधन श्री अपराजितनाममंत्राधिराज! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् इति सन्निधापनं।
पयोभि: शशांकोज्वलैश्चित्तचोरै:।
कनत्काँचनामत्रनालात्पतद्भि: ।।
गुरून् पंच संपूजयामीह भक्त्या।
यथाशक्ति संभावितान् चित्तवृत्या।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री परमब्रह्मेभ्य: अनंतानंत ज्ञान शक्तिभ्य: अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधुपंचपरमेष्ठिभ्य: जलं निर्वपामीति स्वाहा।
सुगंधागतैभ्र्रामरैर्गंधसारै: ।
सरद्गंधसंदिग्धिताशांतरालै: ।।
गुरून् पंच संपूजयामीह भक्त्या।
यथाशक्ति संभावितान् चित्तवृत्या।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री परमब्रह्मेभ्य: अनंतानंत ज्ञान शक्तिभ्य: अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधुपंचपरमेष्ठिभ्य: चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
यशोराशिशंकागतैरक्षतोघै: ।
पय: पूरसंक्षालितै: शालिजातै:।।
गुरून् पंच संपूजयामीह भक्त्या।
यथाशक्ति संभावितान् चित्तवृत्या।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री परमब्रह्मेभ्य: अनंतानंत ज्ञान शक्तिभ्य: अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधुपंचपरमेष्ठिभ्य: अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
लसत्मालतीचंपवुंâदप्रसूनै: ।
सुगंधामिलत्षट्पदारावरम्यै:।।
गुरून् पंच संपूजयामीह भक्त्या।
यथाशक्ति संभावितान् चित्तवृत्या।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री परमब्रह्मेभ्य: अनंतानंत ज्ञान शक्तिभ्य: अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधुपंचपरमेष्ठिभ्य: पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
मनोघ्राणसंतर्पवैâर्भक्ष्यभेदै: ।
जगज्जंतुक्षुद्रोगविद्राणदक्षै: ।।
गुरून् पंच संपूजयामीह भक्त्या।
यथाशक्ति संभावितान् चित्तवृत्या।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री परमब्रह्मेभ्य: अनंतानंत ज्ञान शक्तिभ्य: अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधुपंचपरमेष्ठिभ्य: नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मनोध्वांतसंघातसंघातनार्थं ।
विकाशंकरै: शंकरै: सुप्रदीपै:।।
गुरून् पंच संपूजयामीह भक्त्या।
यथाशक्ति संभावितान् चित्तवृत्या।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री परमब्रह्मेभ्य: अनंतानंत ज्ञान शक्तिभ्य: अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधुपंचपरमेष्ठिभ्य: दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
दशांगोद्भवैर्धूपधूमै: सुगंधै:।
जगद्घ्राणसंतर्पणार्थं सरद्भि:।।
गुरून् पंच संपूजयामीह भक्त्या।
यथाशक्ति संभावितान् चित्तवृत्या।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री परमब्रह्मेभ्य: अनंतानंत ज्ञान शक्तिभ्य: अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधुपंचपरमेष्ठिभ्य: धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
फलैर्नालिकेराम्रपूगै: कपित्थै:।
मनोवांछितार्थै: फलैर्दानदक्षै:।।
गुरून् पंच संपूजयामीह भक्त्या।
यथाशक्ति संभावितान् चित्तवृत्या।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री परमब्रह्मेभ्य: अनंतानंत ज्ञान शक्तिभ्य: अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधुपंचपरमेष्ठिभ्य: फलं निर्वपामीति स्वाहा।
पानीयचंदनसुशालिभवाक्षतौघै:।
पुष्पैश्चरूत्करसुदीपदशांगधूपै:।।
नानाफलैर्वरतरंविधिना ददेऽहं।
अर्घं च पंचगुरुवे गुरुवे त्रिशुद्ध्या।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री परमब्रह्मेभ्य: अनंतानंत ज्ञान शक्तिभ्य: अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधुपंचपरमेष्ठिभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।।९।।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।