पूर्णाघ्र्य

कुमुदचन्द्र आचार्य प्रवर ने, पाश्र्वनाथ गुणगान किया।
इस कल्याण के मंदिर में, प्रभु भक्ती को स्थान दिया।।
सर्वसिद्धिकारी यह रचना, सबके लिए सुखास्पद है।
भाव सहित ‘‘चन्दनामती’’, पूर्णाघ्र्य समर्पित प्रभु पद है।।

ॐ ह्रीं सर्वसिद्धिकरायकल्याणमंदिरस्तोत्र अधिपतिश्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्राय पूर्णाघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।


शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य मंत्र— ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं व्रूâरकमठोपद्रवजिताय श्रीपाश्र्वनाथाय नम:


अथवा
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीपाश्र्वनाथाय नम:।