तर्ज-तुमसे लागी लगन........
जय जय पारस प्रभो, भवदधितारक विभो, द्वार आया।
अर्घ्य का थाल मैंने सजाया।।टेक.।।
गर्भ से मास छह पूर्व नगरी।
रत्नमय वह बनारसपुरी थी।।
इन्द्रगण आ गए, चक्रधर पा गए, तेरी छाया,
अर्घ्य का थाल मैंने सजाया।।१।।

जन्म होते ही वंâपित मुकुट थे।
दिव्य बाजे स्वयं बज उठे थे।।
जग चकित हो गया, मोह तम खो गया, प्रभु की माया,
अर्घ्य का थाल मैंने सजाया।।२।।

वामानन्दन हो पारस प्रभो तुम।
अश्वसेन के प्रिय लाल हो तुम।।
धर्मामृत जो बहा, ज्ञानामृत को लहा, जो भी आया,
अर्घ्य का थाल मैंने सजाया।।३।।

प्रभु तुम पंचकल्याणक के स्वामी।
हो गये तीनों लोकों में नामी।।
मोक्ष में रम गए, सिद्धिपति बन गये, नहिं है काया,
अर्घ्य का थाल मैंने सजाया।।४।।

श्री कुमुदचंद्र ने तुमको ध्याया।
एक स्तोत्र सुंदर बनाया।।
संकटमोचन बने, खुद करम सब हने, छोड़ी माया,
अर्घ्य का थाल मैंने सजाया।।५।।

नाथ कल्याणमंदिर हो तुम ही।
जग का कल्याण करते हो प्रभु जी।।
विघ्नविजयी बने, मृत्युविजयी बने, सिद्धि पाया,
अर्घ्य का थाल मैंने सजाया।।६।।

तेरी भक्ती का फल मैं ये चाहूँ।
भावना आत्म पद की ही भाऊँ।।
‘‘चन्दनामति’’ प्रभो, मांगते सब विभो, तेरी छाया,
अर्घ्य का थाल मैंने सजाया।।७।।

ॐ ह्रीं कल्याणमंदिर अधिनायक सर्वसिद्धिकारक श्री पाश्र्वनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णाघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।


--दोहा--
पाश्र्वनाथ की भक्ति में, जो होते लवलीन।
ऋद्धि सिद्धि सुख पूर्ण कर, हों निज के आधीन।।८।।

।। इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलि:।।