णमोकार मन्त्र का माहात्म्य
jain-img180

हमारे आगम में इस मन्त्र की बड़ी भारी महिमा बतलायी गयी है। यह सभी प्रकार की अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाला है। आत्मशोधन का हेतु होते हुए भी नित्य जाप करनेवाले के रोग, शोक, आधि,-व्याधि आदि सभी बाधाएँ दूर हो जाती है। पवित्र, अपवित्र, रोगी, दुखी, सुखी आदि किसी भी अवस्था में इ मन्त्र का जप करने से समस्त पाप भस्म हो जाते हैं तथा बाहृ और अभ्यन्तर पवित्र हो जाता है। यह समस्त विघ्नों को दूर करनेवाला तथा समस्त मंगलों में प्रथम मंगल है। किसी भी कार्य के आदि में इसका स्मरण करने से यह कार्य निर्विघ्नतया पूर्ण हो जाता है। बताया गया है।

एसो पंचणमोयारो सव्वपावप्पणासणो।
मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं होइ मंगलं।।

इस गाथा की व्याख्या करते हुए सिद्धचन्द्रगणि ने लिखा है-‘‘एष पंचनमस्कारः एष-प्रत्यक्षविधीयमानः पंचानामर्हदादीनां नमस्कारः-प्रणामः। स च कीदृशः? सर्वपापप्रणाशनः। सर्वाणि च तानि पापानि च सर्वपापानि इति कर्मधारय। सर्वपापानां प्रकर्षेण नाशनो-विध्वंसकः सर्वपापाप्रणाशनः, इति तत्पुरूषः। सर्वेषां द्रव्यभावभेद-भिन्नानां मंगलानां प्रथममिदमेव मंगलम्। च समुच्चये पंचसु पदेषु चतुथ्र्यर्थेषु षष्ठी। अत्र चाष्टषष्ठिरक्षराणि, नव पदानि, अष्टौ च सम्पदो-विश्रामस्थानानि।

पुनः सर्वेषा मंगलानां-मंगलकारकवस्तूनां दधिदूर्वाक्षतचन्दननालिकेरपूर्ण-कलश-स्वस्तिक-दर्पण-भद्रासन-वर्धमान-मत्स्ययुगल-श्रीवत्सनन्द्यावर्तादीनां मध्ये प्रथमं मुख्यं मंगलं मंगलकारको भवतिं यतोऽस्मिन् पठिते जप्ते स्मृते च सर्वाण्यपि मंगलानि भवन्तीत्यर्थः।’’

अर्थात् - यह णमोकार मन्त्र, जिसमें पंचपरमेष्ठी को नमस्कर किया गया है, सभी प्रकार के पापों को नष्ट करने वाला है। पापी से पापी व्यक्ति भी इस मन्त्र के स्मरण से पवित्र हो जाता है तथा सभी प्रकार के पाप इस महामन्त्र के स्मरण से नष्ट हो जाते हैं। यह दधि, दूर्वा, अक्षत, चन्दन, नारियल, पूर्णकलश, स्वस्तिक, दर्पण, भद्रासन, वर्धमान, मत्स्य-युगल, श्रीवत्स, नन्द्यावर्त आदि मंगल-वस्तुओं में सबसे उत्कृष्ट मंगल है। इसके स्मरण और जप से अनेक प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। अमंगल दूर हो जाता है और पुण्य की वृद्धि होती है।

तात्पर्य यह है कि किसी भी वस्तु की महिमा उसके गुणों के द्वारा व्यक्त होती है। इस महामन्त्र के गुण अचिन्त्य हैं। इसमें इस प्रकार की विद्युत् शक्ति वर्तमान है जिससे इसके उच्चारण मात्र से पाप और अशुभ का विध्वंस हो जाता है तथा परम विभूति और कल्याण की प्राप्ति होती है। इस महामन्त्र की महिमा व्यक्त करनेवाली अनेक रचनाएँ हैं; इसमें णमोकारमन्त्रमाहात्म्य, नमस्कारकल्प, नमस्कारमाहात्म्य आदि प्रधान हैं। कहा जाता है है किजन्म, मरण, भय, पराभव, क्लेश, दुःख, दारिद्य आदि इस महामन्त्र के जाप से क्षण-भर में भस्म हो जाते हैं। इसकी अचिन्त्य महिमा का वर्ण णमोकार मन्त्र-माहात्म्य में निम्न प्रकार बतलाया गया है:

मन्त्रं संसारसारं त्रिजगदुनपमं सर्वपापारिमन्त्रं
संसारोच्छेदमन्त्रं विषमविषहरं कर्मनिर्मूलमन्त्रम्।
मन्त्रं सिद्धिप्रदानं शिवसुखजननं केवलज्ञानमन्त्रं
मन्त्रं श्रीजैनमन्त्रं जप जप जपितं जन्मनिर्वाणमन्त्रम्।।1।।
आकृष्टिं सुरसम्पदां विदघते मुक्तिश्रियो वश्यतां
उच्चाटं विपदां चतुर्गतिभुवां विद्वेषमात्मैनसाम्।
स्तम्भं दुर्गमनं प्रति प्रयततो मोहस्य सम्मोहनं
पायात्पंचनमस्क्रियाक्षरमयी साराधना देवता।।2।।
अपवित्रः पवित्रों वा सुस्थितो दुःस्थितोऽपि वा
ध्याययेत् पंचनमस्कारं सर्वपापैः प्रमुच्यते।।3।।
अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत्परमात्मानं स बाहृाभ्यन्तरे शुचिः।।4।।
अपराजितमन्त्रोंऽयं सर्वविघ्नविनाशनः।
मंगलेषु च सर्वेषु प्रथमं मंगलं मतः।।5।।
विघ्नौधाः प्रलयं यान्ति शाकिनीभूतपन्नगाः।
विषो निर्विषतां याति स्तूयमाने जिनेश्वरे।।6।।
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम।
तस्मात्कारूण्यभावेन रक्ष रक्ष जिनेश्वर1।।7।।
------------

1. णमोकार-मन्त्र-माहात्म्य- ‘नित्य-नैमित्तिक पाठावली’ में प्रकाशित, पृ. 1-2।

jain-img181

अर्थात् - यह महामन्त्र संसार का सार है-जन्म मरण रूप संसार से छूटने का सुकर अवलम्बन और सारतत्त्व है; तीनों लोकों में अनुपम है-इस मन्त्र के समान चमत्कारी और प्रभावशाली अन्य कोई मन्त्र नहीं है, अतः यह तीनों लोकों में अद्भुत है; समस्त पापों का अरि है- इस मन्त्र का जाप करने से किसी भी प्रकर का पाप नष्ट हुए बिना नहीं हरता है, जिस प्रकार अग्नि काएक कण घास-फूस के बड़े-बड़े ढेरों को नष्ट कर देता है,उसी प्रकार यह मन्त्र सभी तरह के पापों को नष्ट करने वाला होने के कारण पापारि है,यह मन्त्रसंसारका उच्छेदक, व्यक्ति के भाव-संसार-राग-द्वेषादि और द्रव्य-संसार-ज्ञानावरणादि कर्मों का विनाशक है; तीक्ष्ण विषों का नाश करने वाला है अर्थात् इस महामन्त्र के प्रभाव से सभी प्रकार की विष-बाधाएँ दूर हो जाती है, यह मन्त्र कर्मों का निर्मूलक-विनाश करनेवाला है, इस मन्त्र का भावसहित उच्चारण करने से कर्मों की निर्जरा होती है तथा योग-निरोध पूर्वक इसका स्मरण से कर्मों का विनाश होता है; यह मन्त्र सभी प्रकार की सिद्धियों को देनेवाला है-भावसहित और विधिसहित इस मन्त्र का अनुष्ठान करने से सभी तरह की लौकिक-अलौकिक सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं, साधक जिस वस्तु की कामना करता है, वह उसे प्राप्त हो जाती है। दुर्लभ और असम्भव कार्य भी इस महामन्त्र की साधना से पूर्ण हो जाते हैं; यह मन्त्र मोक्ष-सुख को उत्पन्न करनेवाला है; यह मन्त्र केवलज्ञानमन्त्र कहलाता है अर्थात् इसके जाप से केवलज्ञान की प्राप्ति होती है तथा यही मन्त्र निर्वाण-सुख का देनेवाला भी है।

यह णमोकार मन्त्र देवों की विभूति और सम्पत्ति को आकृष्ट कर देनेवाला है, मुक्ति-रूपी लक्ष्मी को वश में करनेवाला है, चतुर्गति में होनेवाले सभी तरह के कष्ट और विपत्तियों को दूर करनेवाला है, आत्मा के समस्त पाप को भस्म करनेवाला है, दुर्गति को रोकनेवाला है, मोह का स्तम्भन करनेवाला है, विषयासक्ति को घटानेवाला है, आत्मश्रद्धा को जाग्रत् करनेवाला है, और सभी प्रकार से प्राणी की रक्षा करने वाला है।

पवित्र या अपवित्र अथवा सोते, जागते, चलते, फिरते किसी भी अवस्था में इस णमोकार मन्त्र का स्मरण करने से आत्मा सर्वपापों से मुक्त हो जाती है, शरीर और मन पवित्र हो जाते हैं। यह सप्तधातुमय शरीर सर्वदा अपवित्र रहता है, इसकी पवित्रता णमोकार मन्त्र के स्मरण से उत्पन्न निर्मल आत्मपरिणति द्वारा होती है। अतः निस्सन्देह यह मन्त्र आत्मा को पवित्र करने वाला है। इसका स्मरण किसी भी अवस्था में किया जा सकता हैं यह णमोकार मन्त्र अपराजित है, अन्य किसी मन्त्र द्वारा इसकी शक्ति प्रतिहत-अवरूद्ध नहीं की जा सकती हे, इसमें अद्भुत सामथ्र्य निहित है। समस्त विघ्नों को क्षण-भर में नष्ट करने में समर्थ है। इसके द्वारा भूत, पिशाच, शाकिनी, डाकिनी, सर्प सिंह, अग्नि आदि के विघ्नों को क्षण-भर में ही दूर किया जा सकता है। जिस प्रकार हलाहल विष तत्काल अपना फल देता है और उसका फल अवरूर्थ होता है,उसी प्रकार णमोकार मन्त्र भी तत्काल शुभ पुण्य का आस्त्रव करता है तथा अशुभोदय के प्रभाव को क्षीण करता है यह मन्त्र सम्पत्ति प्राप्त करने का एक प्रधान साधन है तथा सम्यक्त्व की वृद्धि में सहायक होता है। मनुष्य जीवन-भर पापस्त्रव करने पर भी अंतिम समय में इस महामन्त्र के स्मरण के प्रभाव से स्वर्गादि सुखों को प्राप्त कर लेता है। इसलिए इस महामन्त्र का महत्त्व बतालते हुए कहा गया है:

कृत्वा पापसहस्त्राणि हत्वा जन्तुशतानि च।
अमुं मन्त्रं समाराध्य तिर्यंचोऽपि दिवं गताः।। -ज्ञानार्णव

अर्थात् - तर्यंच पशु-पक्षी, जो मांसाहारी, क्रूर हैं जैसे सर्प, सिंहादि; जीवन में सहस्त्रों प्रकार के पाप करते हैं। ये अनेक प्राणियों की हिंसा करते हैं, मांसाहारी होते हैं तथा इनमें क्रोध, मान, माया और लोभ कषायों की तीव्रता होती है; फिर भी अंतिम समय में किसी दयालु द्वारा णमोकार मन्त्र का श्रवण करने मात्र से उस निन्द्य तिर्यंच पर्याय कात्याग कर स्वर्ग में देव गति को प्राप्त होते हैं।

भैया भगवतीदास ने णमोकार मन्त्र को समस्त सिद्धियों का दायक बताया है और अहर्निश इसके जाप करने पर ज़ोर दिया है। इस मन्त्र के जाप करने से सभी प्रकार की बाधाएँ नष्ट हो जाती हैं। कहा है:

जहाँ जपें णमोकार वहाँ अघ कैसे आवें।
जहाँ जपें णमोकार वहाँ विंतर भग जावें।।
जहाँ जपें णमोकार वहाँ सुख सम्पति होई।
जहाँ जपें णमोकार वहाँ दुःख रहे न कोई।।
णमोकार जपत नवनिधि मिलैं, सुख समूह आवे निकट।
‘भैया’ नित जपवो करो, महामन्त्र णमोकार है।।

यह ण्मोकार मन्त्र सभी प्रकार की आकुलाओं को दूर करने वाला और सभी प्रकार की शान्ति एवं समृद्धियों का दाता है। इसकी अचिन्त्य शक्ति के प्रभाव से बड़े-बड़े कार्य क्षण-भर में सिद्ध हो जाते हैं। जिस प्रकार रसायन के सम्पर्क से लौह भस्म आरोग्यप्रद हो जाता है, उसी प्रकार इस महामन्त्र की ध्वनियों के स्मरण, मनन से सभी प्रकर की अद्भुत सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती है। आचार्य वादीभसिंह ने क्षत्रचूड़ामणि में बताया है:

मरणक्षणलब्धेन येन श्वा देवताऽजनि।
पंचमन्त्रपदं जप्यमिदं केन न धीमता।। -10.4

अर्थात् - मरणोन्मुख कुत्ते को जीवनधर सवामी ने करूणावश णमोकार मन्त्र सुनाया था, इस मन्त्र के प्रभाव से वह पापाचारी श्वान देता के रूप में उत्पन्न हुआ। अतः सिद्ध है कि यह मन्त्र आत्मविशुद्धि का बहुत बड़ा कारण हैं

jain-img182

बताया जाता है कि णमोकार मन्त्र के एक अक्षर काभी भावसहित स्मरण करनेसे सात सागर तक भोगा जानेवाला पाप नष्ट हो जाता है, एक पद का भावसहित स्मरण करने से पचास सागर तक भोगे जानेवाले पाप का नाश होता है और समग्र मन्त्र का भक्तिभावसहित विधिपूर्वक स्मरण करने से पाँच-सौ सागर तक भोगे जानेवाले पाप का नाश हो जाता है। अभक्त प्राणी भी इस मन्त्र के स्मरण से स्वर्गादि के सुखों को प्राप्त करता है तथा भक्त प्राणी भी इस मन्त्र के स्मरण से स्वर्गादि के सुखों को प्राप्त करता है तथा भक्त प्राणी भी इस मन्त्र के स्मरण से स्वर्गादि के सुखों को प्राप्त करता है तथा भक्त प्राणी भी इस मन्त्र के जाप के प्रभाव से अनेक परिणामों को इतना निर्मल बना लेता है, जिससे उसे भव-भवान्तर के संचित पाप नष्ट हो जाते हें औरवह इतना प्रबल पुण्यास्त्रव करता है, जिससे परम्परानिर्वाण की प्राप्ति हो जाती है। सिद्धसेन ने नमस्कार माहात्म्य में बताया है:

योऽसंख्यदुःखक्षयकारणस्मृतिः य ऐहिकामुष्मिकसौख्यकामधुक्।
यो दुष्षमायामपि कल्पपादपो मन्त्राधिराजः स कथं न जप्यते।।
न यद्दीपेन सूर्येण चन्द्रेणाप्यपरेण वा।
तमस्तदपि निर्नाम स्यान्नमस्कारतेजसा।।
-नत्र मात्र, षष्ठ अ., श्लो. 23, 24

अर्थात् - भावसहित स्मरण कियागया यह णमोकार मन्त्र असंख्या दुःखों को क्षय करनेवाला तथा इहलौकिक और पारलौकिक समस्त सुखों को देनेवाला है। इस पंचमकाल में कल्पवृक्ष के समान सभी मनोरथों को पूर्ण करनेवाला यह मन्त्र ही है, अतः संसारी प्राणियों को इसका जप अवश्य करना चाहिए। जिस अज्ञान, पाप और संक्लेश के अन्धकार को सूर्य, चन्द्र और दीपक दूर नहीं कर सकते हैं, उस घने अन्धकार को यह मन्त्र नष्ट कर देता है।

इस मन्त्र के चिनतन, स्मरण और मनन करने से भूत, प्रेत, ग्रहबाधा, राजभय, चोरभय, दुष्टभय, रोगभय आदि सभी कष्ट दूर हो जाते हैं राग-द्वेषजन्य अशान्ति भी इस मन्त्र के जाप से दूर होती है। यह इस पंचमकाल में कल्पवृक्ष, चिन्तामणिरत्न या कामधेनु के समान अभीष्ट फल देनेवाला है। जिस प्रकार समुद्र के मन्थन से सारभूत अमृत एवं दधि के मन्थन से सारभूत घृत उपलब्ध होता है, उसी प्रकार आगम का सारभूत यह णमोकार मन्त्र है। इसकी आराधना से सभी प्रकार के कल्याण प्राप्त होते हैं। श्री, हृी, धृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी आदि की प्राप्ति इस मन्त्र के जप से होती है। कर्म की ग्रन्थि को खोलनेवाला यही मन्त्र है तथा भावपूर्वक नित्य जप करनेसे निर्वाण पद की प्राप्ति होती हैं

भगवान् की पूजा, स्वाध्याय, संयम, तप, दान और गुरूभक्ति के साथ प्रतिदिन इस णमोकार मन्त्र का तीनों सन्ध्याओं में जो भक्तिभावसहित जाप करता है, वह इतना पुण्यास्त्रव करता है, जिससे चक्रवर्ती, अहमिन्द्र, इन्द आदि के पदों को प्राप्त करने की शक्ति उत्पन्न हो जाती है। ऐसा व्यक्ति अपने पुण्यातिशय के कारण तीर्थंकर भी बन सकता है। अपने सातिशय पुण्य के कारण वह तीर्थ-प्रवर्तक पद को प्राप्त हो जाताहै। तथा जो व्यक्ति इस मन्त्र का आठ करोड़, आठ लाख, आठ हजार और आठ सौ आठ बार लगातार जाप करता है, वह शाश्वत पद को प्राप्त हो जाता है। लगातार सात लाख जप करनेवाले सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति प्राप्त करता है तथा दारिद्रय भी उसका नष्ट हो जाता है। धूप देकर एक लाख बार जपनेवाला भी अपनी अभीष्ट मनःकामना को पूर्ण करता है। इस मन्त्र का अचिन्त्य प्रभाव है।