शुक्रग्रहारिष्ट निवारक श्री पुष्पदन्तनाथ पूजा
स्थापना-शंभु छंद

-दोहा-

आह्वानन स्थापना, सन्निधिकरण प्रधान।
पुष्पदन्त की अर्चना, क्रमशः दे निर्वाण।।2।।

ऊँ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट आह्वाहननं।
ऊँ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थपनं।
ऊँ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।

अष्टक

-चामर छंद-

साधुचित्त के समान शुद्ध नीर ले लिया।
धार दे जिनेन्द्रपाद भव का तीर ले लिया।।
पुष्पदंतनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो।
मेरी आत्मा में शान्ति का सदैव पूर हो।।1।।
ऊँ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।

दिव्य चन्दन की ही प्रतीक केशर मेरी।
पादपद्म में विलेपते सुगंधि है मिली।।
पुष्पदंतनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो।
मेरी आत्मा में शान्ति का सदैव पूर हो।।2।।
ऊँ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।

तुच्छ तंदुलों में मोतियों की कल्पना मेरी।
नाथ! पूर्ण होएगी जरूर साधना मेरी।।
पुष्पदंतनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो।
मेरी आत्मा में शान्ति का सदैव पूर हो।।3।।
ऊँ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय अक्ष्यपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।

फूल हों या पीले चावलों में पुष्पभावना।
अर्चना के रूप में फलेगी मेरी भावना।।
पुष्पदंतनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो।
मेरी आत्मा में शान्ति का सदैव पूर हो।।4।।
ऊँ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।

खीर अैर पूरियों को थाल में भरा लिया।
भूख व्याधि शांति के लिए चरू चढ़ा दिया।।
पुष्पदंतनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो।
मेरी आत्मा में शान्ति का सदैव पूर हो।।5।।
ऊँ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।

दपीकों की ज्योति से प्रकाश फैलता सदा।
प्रभु की आरती से मन की ज्योति पाऊं सर्वदा।।
पुष्पदंतनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो।
मेरी आत्मा में शान्ति का सदैव पूर हो।।6।।
ऊँ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।

धूप धूपघट के खेके पापकर्म नाश हों।
श्रीजिनेन्द्र की कृपा से पुण्य का विकास हो।।
पुष्पदंतनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो।
मेरी आत्मा में शान्ति का सदैव पूर हो।।7।।
ऊँ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।

सत्फलों से युक्त मोक्षफल की याचना करूं।
द्राक्ष आम्र आदि अप्र्य यह भी भावना करूं।।
पुष्पदंतनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो।
मेरी आत्मा में शान्ति का सदैव पूर हो।।8।।
ऊँ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।

जलफलादि ले करूं जिनेन्द्र अर्चना।
तुम समान पद मिले, आश यह ही ’’चन्दना’’।।
पुष्पदंतनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो।
मेरी आत्मा में शान्ति का सदैव पूर हो।।9।।
ऊँ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय अनघ्र्यपदप्राप्तये अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।

रत्नत्रय की प्राप्ति हेतु तीन धार मैं करूं।
जन्म औ जरा मरण त्रिरोग नाश मैं करूं।।
पुष्पदंतनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो।
मेरी आत्मा में शान्ति का सदैव पूर हो।।10।।
शांतये शांतिधारा।

श्री जिनेन्द्र के समीप पुष्प अंजली भरूं।
पुष्प को बिखेर कर सुगंधि सर्वदिक् करूं।।
पुष्पदंतनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो।
मेरी आत्मा में शान्ति का सदैव पूर हो।।
दिव्य पुष्पांजलिः।

(अब मण्डल के ऊपर शुक्रग्रह के स्थान पर श्रीफल सहित अघ्र्य चढ़ावें)
तर्ज-चाँद मेरे आ जा रे........................................
नाथ की पूजन करते हैं-2,
अष्टद्रव्य, की थाली प्रभू के, चरणों में धरते हैं। नाथ की............।।टेक.।।

जब अशुीा कर्म के कारण, तन में व्याधी आती है।
धनहानि कलह आदिक से, मन में आंधी आती है।।
नाथ की पूजन करते हैं।।1।।

प्रभु पुष्पदंत तीर्थंकर, ग्रहशुक्र के स्वामी माने।
वे इस ग्रह की शान्ती में, ’’चन्दना’’ प्रमुख माने।।
नाथ की पूजन करते हैं।।2।।
ऊँ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय पूर्णाघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्यपुष्पांजलिः

जाप्य मंत्र- ऊँ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय नमः।
जयमाला

भगवान् तुम्हारी पूजन से, सम्यग्दर्शन मिल जाता है।
हे नाथ! तुम्हारे अर्चन से, निज अन्तर्मन खिल जाता है।।टेक.।।

जैसे अंगार दहकता है, जब सबकी पस बुझाता है।
सूरज जैसे देकर प्रकाश, धरती का तिमिर भगाता है।।
वैसे ही प्रभु मुख दर्शन से, मानों सब कुछ मिल जाता हे।
हे नाथ! तुम्हारे अर्चन से, निज अन्तर्मन खिल जाता है।।1।।

दर्शन के भाव हुए जिस क्षण, उपवास का फल प्रारंभ हुआ।
चलकर जब पहुंच गए मंदिर, लक्षोपवास फल सहज हुआ।।
प्रभु सम्मुख आ गद्गद मन से, भव भव का अघ धुल जाता है।
हे नाथ! तुम्हारे अर्चन से, निज अन्तर्मन खिल जाता है।।2।।

भक्ती में शक्ति अचिन्त्य कही, यह भुक्ति मुक्ति सब कुछ देती।
जिनप्रतिमा भले अचेतन हैं, फिर भी चेतन को फल देंती।।
पौराणिक कथन ’’चन्दना यह, कलियुग में भी फलदाता है।
हे नाथ! तुम्हारे अर्चन से, निज अन्तर्मन खिल जाता है।।3।।

हो शुक्र अनिष्ट यदी प्रभुवन, दुख इष्ट वियोग सताता है।
यह शुीा हो जावे यदि जिनवर, सांसारिक सौख्य दिलाता हे।।
प्रभु पुष्पदन्त भगवान् तेरी, भक्ती से सब मिल जाता है।
हे नाथ! तुम्हारे अर्चन से, निज अन्तर्मन खिल जाता है।।4।।
ऊँ ह्रीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णाघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्यपुष्पांजलिः

पुष्पदंत की अर्चना, हरे सकल दुख दोष।
करे शुक्रग्रह सान्त्वना, भरे स्वात्मसुख तोष।।
इत्याशीर्वादः पुष्पांजलिः।