।। सरस्वती विधान ।।

jain temple279
ऊँ श्री सरस्वती विधान (सरस्वती स्तोत्र)

बारह अंगंगिज्जा, दंसणतिलया चरित्तवत्थहरा।
चोद्दसपुव्वाहरणा, ठावे दव्वाय सुयदेवी।।1।।
आचारशिरसं सूत्र-कृतवक्त्रां सुकंठिकाम्।
स्थानेन समवायांग-व्याख्याप्रज्ञप्तिदोर्लमात्।।12।।

वाग्देवतां ज्ञातृकथो-पासकाध्ययनस्तनीम्।
अंतकृद्दशसन्नाभि-मनुत्तरदशांगतः।।3।।

सुनितंबां सुजधनां, प्रश्नव्याकरणश्रुतात्।
विपाकसूत्रदृग्वाद-चरणां चरणांबराम्।।4।।

सम्यक्त्वतिलकां पूर्व-चतुर्दशविभूषणाम्।
तावत्प्रकीर्णकोदीर्ण-चारूपांकुरश्रियम्।।5।।

आप्तदृष्टप्रवाहौंघ-द्रव्यभावाधिदेवताम्।
परब्रह्मपथादृप्तां, स्यादुक्तिं भुक्तिमुक्तिदाम्।।6।।

निर्मूलमोहतिमिरक्षपणैकदक्षं,
न्यक्षेण सर्वजगदुज्ज्वलनैकतानम्।
सोषेव चिन्मयमहो जिनवाणि! नूनं,
प्राचीमतो जयसि देवि! तदल्पसूतिम्।।7।।

आभवादपित दुरासदमेव,
श्रायसं सुखमनन्तमचिन्त्यम्।
जायतेऽद्य सुलभं खलु पुंसां,
त्वत्प्रसादत् इहांब! नमस्ते।।8।।

चेतश्वमत्कारकरा जनानां,
महोदयाश्चाभ्युदयाः समस्ताः।
हस्ते कृताः शस्तजनैः प्रसादात्,
वतैत लोकांब! नमोस्तु तुभ्यम्।।9।।

सकलयुवतिसृष्टेरंब! चूडामणिस्त्वं,
त्वमसि गुणसुपुष्टेधर्मसृष्टेश्च मूलम्।
त्वमसि च जिनवाणि! स्वेष्टमुक्त्यंगमुख्या,
तदिह तव पदब्जं, भूरिभक्त्या नमामः।।10।।

अथसरस्वती पूजा प्रतिज्ञापनाय पुष्पांजलिं क्षिपते्।

शंभु छंद
jain temple280

तीर्थंकर के मुख से खिरती, अनअक्षर दिव्यध्वनी भाषा।
बारह कोठों में सबके हित, परिणमती सर्वजगत् भाषा।।
गणधर गुरू जिन ध्वनि को सुनकर, बारह अंगों में रचते हैं।
हम दिव्यध्वनी का आह्वानन्, करके भक्ती से यजते हैं।।1।।

ऊँ ह्मीं तीर्थंकरमुखकमलविनिर्गतद्वादशांगमयीसरस्वतीमातः! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ऊँ ह्मीं तीर्थंकरमुखकमलविनिर्गतद्वादशांगमयीसरस्वतीमातः! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।
ऊँ ह्मीं तीर्थंकरमुखकमलविनिर्गतद्वादशांगमयीसरस्वतीमातः! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
अथ अष्टक-भुजंगप्रयात छंद
मुनीचित्त सम नीर पावन लिया है।
सरस्वति चरण तीन धारा दिया है।।
जजूं तीर्थंकर दिव्यध्वनि को सदा मैं।
करूं चित्त पवन नहा ध्वनि नदी में।।1।।
ऊँ ह्मीं तीर्थंकरमुखकमलविनिर्गतद्वादशांगमयीसरस्वतीदेव्यै जलं..............।
तपे स्वर्णरस सम घिसा गंध लाया।
सरस्वति चरण चर्च कर सौख्य पाया।।
जजूं तीर्थंकर दिव्यध्वनि को सदा मैं।
करूं चित्त पवन नहा ध्वनि नदी में।।2।।
ऊँ ह्मीं तीर्थंकरमुखकमलविनिर्गतद्वादशांगमयीसरस्वतीदेव्यै चंदनं..............।
धुले श्वेत अक्षत अखंडित लिये हैं।
प्रभो1 कीर्ति को पुंज अर्पण किय हैं।।
जजूं तीर्थंकर दिव्यध्वनि को सदा मैं।
करूं चित्त पवन नहा ध्वनि नदी में।।3।।
ऊँ ह्मीं तीर्थंकरमुखकमलविनिर्गतद्वादशांगमयीसरस्वतीदेव्यै अक्षतं.............।

जुही मोगरा केतकी पुष्प लेके।
चढ़ाऊं प्रभू की ध्वनी को रूची से।।
जजूं तीर्थंकर दिव्यध्वनि को सदा मैं।
करूं चित्त पवन नहा ध्वनि नदी में।।4।।
ऊँ ह्मीं तीर्थंकरमुखकमलविनिर्गतद्वादशांगमयीसरस्वतीदेव्यै पुष्पं.............।

मलाई पुआ खीर पूरी बनाके।
चढ़ाऊं प्रभू कीर्ति को क्षुय विनाशे।।
जजूं तीर्थंकर दिव्यध्वनि को सदा मैं।
करूं चित्त पवन नहा ध्वनि नदी में।।5।।
ऊँ ह्मीं तीर्थंकरमुखकमलविनिर्गतद्वादशांगमयीसरस्वतीदेव्यै नैवेद्यं..............।

जले दीप ज्योती दशों दिक् प्रकाश।
जजें नाथ ध्वनि को स्वपर ज्ञान भासे।।
जजूं तीर्थंकर दिव्यध्वनि को सदा मैं।
करूं चित्त पवन नहा ध्वनि नदी में।।6।।
ऊँ ह्मीं तीर्थंकरमुखकमलविनिर्गतद्वादशांगमयीसरस्वतीदेव्यै दीपं..............।

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