।। नवधा-भक्ति ।।

jain temple296

साधुओ को आहार दान देने से पहले श्रावक-श्राविका जो नौ प्रकार से विनय प्रस्तुत करते है उसे नवधाभक्ति कहते हैं।

1 - प्रतिग्रहण (पड़गाहन)

2 - उच्चासन

3 - पाद प्रक्षालन

4 - पूजन

5 - नमस्कार

6 - तथा मनश्ुद्धि

7 - काय शुद्धि

8 - और आहार जल की शुद्धि बोलना।

(1) पड़गाहन -

» अतिथि के आने के पूर्वपूर्ण शुद्धि व विवेक के साथ हाथो मे कलश, श्रीफल, फल इत्यादि योग्य सामग्री संजोकर/सजाकर रखें।

» पड़गाहन को खडत्रे दाता के वस्त्र शुद्ध साफ हो तथा फटे न हो, एकदम भड़कीले न हो, वस्त्र संभाल कर पहने जिससे वे जमीन पर न लगे।

» पड़ागहन के लिए श्रावक-श्राविका हरी घास आदि पर खडत्रे न होवे।

» पड़गाहन के समय आचार्यआदि मुनि साधु को आता देखकर स्पष्ट कहें

हे! स्वामिन् नामेस्तु, नमोस्तु, नमोस्तु....................कईबार
आर्यिकाओं के लिए -
हे! मताजी वंदामि, वंदामि, वंदामि......................कईबार
ऐलक, क्षुल्लक, क्षुल्लिकाओं के लिए:-
हेस्वामिन् इच्छामि, इच्छामि, इच्छामि............कईबार

» अत्र, अत्र, अत्र (अत्र = यहां)

» तिष्ठ! तिष्ठ! तिष्ठ! (तिष्ठ = ठहरो)

» मन शुद्धि, वचन शुद्धि, काय शुद्धि, आहार जल शुद्ध है। बोलना चाहिए

» मुनियो को पड़गाहन के बाद अपना दांया हाथ मुनि की तरफ करते हुए तीन परिक्रमा करना चाहिए। इसके बाद साधु से गृह मे प्रवेश करने का आग्रह करें।

पात्र के हिसाब से विधि/भक्ति अपनाते हुए, आगे आगे स्वयं जाते हुए किंतु पात्र को बिना पीठ दिखाये तथा विवेक के साथ जीव रक्षा करते हुए स्वयं पैर ऐसी जगह धोये कि कही चींटी आदि जीव तो नही है। देखे पानी नालीइत्यादि मे तो नही जा रहा।

(2) उच्चासन - अतिथि से चैके मे लगाये गये उच्चासन को ग्रहण करने की प्रार्थना/विनय करें।

(3) पादप्रक्षलन - मुनिराज के चरणों को एक थाली में रख कर प्रक्षालन करें। तथा उस पवित्र जल को श्रावक-श्राविका विनय पूर्वक अपने मस्तिष्क पर लगावें।

(4) पूजन - पादप्रक्षलन के पश्चात् अष्टद्रव्य से अतिथि की पूजन करें। 108 के बाद जो भी मुनि आचार्य हो उनका नाम लेते हुए अर्ध चढ़ायें (108 आचार्य श्री विद्यासागर मुनी दाय का 108 मुनि समय सागराय इत्यादि)

विधि-

ऊँ ह्मींश्री 108.............. मुनीन्द्राय अत्र अवतर, अवतर संवौपटआह्वाननम्।
ऊँ ह्मींश्री 108.............. मुनीन्द्राय अत्र तिष्ठ-तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्।।
ऊँ ह्मींश्री 108.............. मुनीन्द्राय अत्र ममसन्निहितो भवभववपटसन्नि धिकरणं।
ऊँ ह्मींश्री 108.............. मुनीन्द्राय जन्मजरा मृत्युविनाशनाय जलंनिर्वपामीति स्वाहा।
ऊँ ह्मींश्री 108.............. मुनीन्द्राय संसारतापविनाशनाय चंदनंनिर्वपामीति स्वाहा।
ऊँ ह्मींश्री 108.............. मुनीन्द्राय अक्षय पद प्राप्ताये अक्षतंनिर्वपामीति स्वाहा।
ऊँ ह्मींश्री 108.............. मुनीन्द्राय कामवाणविध्वंसनाय पुष्पंनिर्वपामीति स्वाहा।
ऊँ ह्मींश्री 108.............. मुनीन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यंनिर्वपामीति स्वाहा।
ऊँ ह्मींश्री 108.............. मुनीन्द्राय मोहअंधकारविनाशनाय दीपंनिर्वपामीति स्वाहा।
ऊँ ह्मींश्री 108.............. मुनीन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपंनिर्वपामीति स्वाहा।
ऊँ ह्मींश्री 108.............. मुनीन्द्राय मोक्ष फल प्राप्तयेफलंनिर्वपामीति स्वाहा।
उदक चंदन तंदुलपुष्पकै: चरू सुदीपसुधूपफलाध्र्य कैः।
ध्वन-मंगल गानरवा कुलेममगृहे मुनिनाथव जामहे।।
ऊँ ह्मींश्री 108.............. चरण कमलेप्यो अनध्र्य पद प्राप्तये अध्र्यं स्वाहा।

5. नमस्कार - चैके के उपस्थित सभी श्रावक-श्राविका, कहें-

म्ुनि राज से ‘नमोऽस्तु’ महाराज जी कहें।

आर्यिका आदि को- शुद्धि बोल कर यथा योग्य वंदामि इत्यादि कहें।

(6) मनु शुद्धि , (7) वचन शुद्धि , (8) काय शुद्धि , (9) आहर जल शुद्ध है!

म्ुद्रिका छोड़ अंजलि बांध आहार ग्रहण कीजिये। ऐसा बोलना चाहिए।