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|| जिन धर्म विधान ||
ऊँ
जिनधर्म विधान
मंगलाचरण
अर्हन्तों मंगलं कुर्युः, सिद्धाः, कुर्युश्च मंगलम्।
आचार्याः पाठकाश्चापि, साधवो मम मंगलम्।।1।।
क्षान्त्यार्जवादिगुणगण-सुसाधनं सकललोकहितहेतुम्।
शुभधामनि धातारं, वन्दे धर्मं जिनेन्द्रोक्तम्।।2।।
धर्मः सर्वसुखाकरो हितकारो, धर्मं बुधाश्चिन्वते।
धर्मेणैव समाप्यते शिवसुखं, धर्माय तस्मैं नमः।
धर्मान्नास्त्यपरः सुह्यद्भवभृतां, धर्मस्य मूलं दया।
धर्मे चित्तमहं दधे प्रतिदिनं, हे धर्म! मां पालय।।3।।
-आर्या-छंद-
चारित्रं सर्वजिनैश्चरितं, प्रोक्तं च सर्वशिष्येभ्यः।
प्रणमामि पंचभेदं, पंचमचारित्रलाभाय।।4।।
धम्मो मंगलमुक्किट्ठं, अहिंसा संजमो तवो।
देवा वि तस्स पणमंति, जस्स धम्मे सया मणो।।5।।
-उपेन्द्रवज्रा छंद-
समुद्धृत्य जीवान् जगद्दुःखतो यः।
धरत्युत्तमे धाम्नि, धर्मः स एव।।
श्रितानां त्रिलोकेश संपत्प्रदाता।
सुधर्मः प्रकृर्यात् सदा मंगलं में।।6।।
अनुष्टुप् छंद
अहिंसा परमो धर्मः, कुर्यात् जगति मंगलम्।
मंगलं स्यात् त्रिरत्नानि, दशधर्मोऽपि मंगलम्।।7।।
मंगलं भगवान् वीरो, मंगलं गौतमो गणी।
मंगल कुदकुंदाद्यो जैनधर्मोऽस्तु मंगलम्।।8।।
अथ जिनयज्ञप्रतिज्ञापनाय मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
चौबीस तीर्थंकर पूजा
जिनधर्म विधान पूजा
अथ प्रत्येक अर्घ
बड़ी जयमाला
प्रशस्ति
आरती