।। जैनसंघ के दिगम्बर आचार्यों की परम्परा ।।

    दिगम्बर मान्यता के अनुसार जैन संघ के आचार्यों की परम्पर इस प्रकार है। महवीर स्वामी के पश्चात निम्नप्रकार केवली, श्रुतकेवली एव अंग धारी आचार्य होते रहे।

विशेष योग्यता
तीन केवल ज्ञानधारी
नाम
1. गौतमस्वामी
2. सुधर्मास्वामी
3. जम्बूस्वामी
केवलीकाल
12 वर्ष
12 वर्ष
36 वर्ष
48 वर्ष

इन तीनो केवली-भगवंतों ने 62 वर्षो तक उत्कृष्ट साधना के द्वारा जगत् को महावीर के सदृश्य केवल ज्ञान प्राप्त कर उपदेशामृत का पान कराया और फिर निर्वाण प्रापत किया।

विशेष योग्यता
पांचश्रुत केवली
नाम
1. विष्णुनन्दि
2. नन्दिप्रिय
3. अपराजित
4. गोवर्धन
5. भद्रबाहु
केवलीकाल
14 वर्ष
22 वर्ष
19 वर्ष
29 वर्ष
100 वर्ष

    ये पांच आचार्य केवल ज्ञान के स्थान पर पूर्ण श्रुत ज्ञान ही प्राप्त कर सके। इसलिए ये श्रुत केवली कहलाये। इसमे भद्रबाहुस्वामी अंतिम श्रुत केवली थे।

विशेष योग्यता
दस पूर्वधारी आचार्य
नाम
1. विशाखाचार्य
2. प्रौष्ठिलाचार्य
3. क्षत्रियाचार्य
4. जयसेनाचार्य
5. नागसेनाचार्य
6. सिद्धार्थाचार्य
7. धृतिसेनाचार्य
8. विजयाचार्य
9. बृद्धिलिंगाचार्य
10. देवाचार्य
11. धर्मसेनाचार्य
केवलीकाल
10 वर्ष
19 वर्ष
17 वर्ष
21 वर्ष
18 वर्ष
17 वर्ष
18 वर्ष
13 वर्ष
20 वर्ष
14 वर्ष
16 वर्ष
183 वर्ष

इस प्रकार 183 वर्षों में 11 आचार्य हुए, जो ग्यारह अंग और दस पूर्वधारी आगम वेतता थे। ये न तो केवली थे और न ही श्रुत केवली, फिर भी ये आगम शास्त्रों के अधिकांश भाग के ज्ञाता थे। इनके पश्चात ज्ञान का और ह्रास हो गया और 123 वर्षो मे पांच आचार्य केवल ग्यारहअंगों के ज्ञाता ही रह गये।

विशेष योग्यता
ग्यारह अंगो का ज्ञाता
नाम
1. नक्षत्राचार्य
2. जयपालाचार्य
3. पाण्डवाचार्य
4.ध्रुवसेनाचार्य
5. कंसाचार्य
केवलीकाल
18 वर्ष
20 वर्ष
39 वर्ष
14 वर्ष
32 वर्ष
123 वर्ष

स्मृतिक्षीणता एवं एकाग्रता की उत्तरोत्तर कमी के कारण ज्ञान का बराबर हृास होता गया और फिर दशांग, नवांग एवं अष्टमअंग धारी होते रहे। ऐसे आचार्यो मे मात्र चार आचार्य हुए, जिनके नाम निम्न प्रकार है -

विशेष योग्यता
नाम
1. सुभद्राचार्य
2. यशोभद्राचार्य
3.आचार्यभद्रबाहु
4. लोहाचार्य
केवलीकाल
6 वर्ष
18 वर्ष
23 वर्ष
50 वर्ष
97 वर्ष

118 वर्षों मे पांच एकांग धारी आचार्य हुए, जिनके नाम निम्नप्रकार हैं-

विशेष योग्यता
एकांग धारी आचार्य
नाम
1. आचार्य अर्हद्बलि
2.आचार्य माघनन्दि
3.आचार्य धरसेन
4. आचार्य पुष्पदन्त
5.आचार्यभूतबलि
केवलीकाल
28 वर्ष
21 वर्ष
19 वर्ष
30 वर्ष
20 वर्ष
118 वर्ष

इनमे अंतिम तीन आचार्यो मे आचार्य धरसेन ने अपने अवशिष्ट आगम ज्ञान को आचार्य भूंतबलि और पुष्पदन्त को दक्षिण से बुलाकर प्रदान किया और आगमज्ञान के एक अंगज्ञान को नष्ट होने से बचा लिया। इस प्रकर महावीर स्वामी के पश्चात 643 वर्षो तक आचार्य-परम्परा चलती रही। इस आचार्य-परम्परा ने जैन संघ को अपने पारलौकिक ज्ञान से आगे बढ़ाया।