।। ढाई द्वीप के विद्यमान बीस तीर्थंकर ।।

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प्रश्न 1 - विदेह क्षेत्र के तीर्थंकरों के नाम बताइये।

उत्तर - विदेह क्षेत्रा में बीस तीर्थंकर होते हैं। उनके नाम निम्न प्रकार हैं-
(1) श्री सीमंधर जी
(2) श्री युगमंधर जी
(3) श्री बाहु जी
(4) श्री सुबाहु जी
(5) श्री संजातक जी
(6) श्री स्वयंप्रभ जी
(7) श्री ऋषभभानजी
(8) श्री अनंतवीर्य जी
(9) श्री सूरप्रभ जी
(10) श्री विशाल कीर्ति जी
(11) श्री वज्रधर जी
(12) श्री चन्द्रानन जी
(13) श्री चन्द्रबाहु जी
(14) श्री भुजंगमजी
(15) श्री ईश्वर जी
(16) श्री नेमिप्रभ जी
(17) श्री वीरसेन जी
(18) श्री महाभद्र जी
(19) श्री देवयश जी एव
(20) श्री अजितवीर्य जी।

प्रश्न 2 - इन्हंे विद्यमान बीस तीर्थंकर क्यों कहा जाता है?

उत्तर - इन्हें विद्यमान बीस तीर्थंकर इसीलिए कहा जाता है क्योंकि इन नामों वाले तीर्थंकर बीस ही होते हैं तथा कम से कम बीस हमेशा विद्यमान रहते हैं।

प्रश्न 3 - तो क्या ये तीर्थंकर मोक्ष नहीं जाते हैं?

उत्तर - ये तीर्थंकर मोक्ष तो अवश्य ही जाते हैं किंतु एक तीर्थंकर के मोक्ष जाने के तुरंत बाद उसी नाम के दूसरे तीर्थंकर का उद्भव हो जाता है। इस प्रकार इनका कभी अभाव नहीं होता।

प्रश्न 4 - ये तीर्थंकर कहां होते हैं?

उत्तर - विदेह क्षेत्रों में।

प्रश्न 5 - विदेह क्षेत्र की नाम की सार्थकता क्या है?

उत्तर - विदेह का अर्थ, विगत् देहाः अर्थात निकल गई देह जिसमें से वह विदेह हुआ। विदेह क्षेत्रों में चतुर्थ काल (कर्मभूमि) सदा प्रर्वतमान रहता है। उतएव वहां से मुनष्य कर्मों का नाश करके विदेह अर्थात मोक्ष जाते हैं।

प्रश्न 6 - विदेह क्षेत्र कहां-कहां हैं और कितने हैं उनका वर्गीकरण कैसे किया जाता है?

उत्तर - ढाई द्वीप में पांच मेरू सम्बंधी पांच महाविदेह क्षेत्र कहलाते हैं। विदेह क्षेत्र प्रत्ये कमेरू के पूर्व और पश्चिम होने से दस हो जाते हैं। मेरू पर्वतों के पूर्व और पश्चिम सीता सीतोदा नदियों के बहने से उनके उत्तर-दक्षिण विदेह क्षेत्र होने से 20 विदेह क्षेत्र हो जाते हैं। प्रत्ये कमेरू से सम्बंधित सीता नदी के उत्तर में विदेह क्षेत्रों की आठ कर्म भूमियां हैं तथा दक्षिण में आठ इसी प्रकार सीतोदा नदी के दक्षिण में आठ तथा उत्तर में आठ कर्मभूमियां एक मेरू से सम्बन्धित 8 गुण 4 = 32 कर्म भूमियां इसीलिए पांच मेरू सम्बंधित 32 गुणा 5 = 190 विदेह क्षेत्र की कर्मभूमियां हुईं।

प्रश्न 7 - ढाई द्वीप कौन-कौन से हैं?

उत्तर - पहला जम्बूद्वीप दूसरा घातकी खंड एंव आधा पुष्करवर द्वीप।

प्रश्न 8 - आधा पुष्करवर द्वीप क्यो?

उत्तर - क्येंकि पुष्करवर द्वीप के आधे भाग में मानषोत्तर पर्वत पड़ा हुआ है।

प्रश्न 9 - ढाई द्वीप में मेरू कहां-कहां है?

उत्तर - जम्बूद्वीप के बीचो-बीच सुदर्शन मेरू है। धातकीखंड द्वीप के पूर्व में विजय मेरू तथा पश्चिम में अचल मेरू है। पुष्कर द्वीप के पूर्व में मन्दिर मेरू तथा पश्चिम में विद्युन्माली मेरू है।

प्रश्न 10 - दूसरे द्वीप धातकी द्वीप को धातकी खंड द्वीप क्यों कहा जाता है?

उत्तर - धातकी द्वीप के उत्तर व दक्षिण में दो इष्वाकार पर्वत हैं जौ पूरे धातकी द्वीप को पूर्वी धातकी द्वीप तथा पश्चिमी धातकी द्वीप ऐसे दो भागों में विभाजित कर देते हैं। इसीलिए इसे धातकी खंड द्वीप कहा जाता है।

प्रश्न 11 - ढाई द्वीप में कितने आर्य खंड हैं?

उत्तर - ढाई द्वीप के विदेह क्षेत्रों में 160 तथा पांच भरत, पांच ऐरावत के दस इस प्रकार के कुल 170 आर्य खंड होते हैं।

प्रश्न 12 - ढाई द्वीप में एक समय में एक साथ कितने तीर्थंकर हो सकते हैं?

उत्तर - कुल 170 तीर्थंकर।

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प्रश्न 13 - 170 तीर्थंकर कौन से तीर्थंकर के समय में हुए थे?

उत्तर - भगवान श्री अजितनाथ के समय में।

प्रश्न 14 - ढाई द्वीप में कितने मलेच्छ खंड होते हैं?

उत्तर - 170 गुण 5 = 850 मलेच्छ खंड।

प्रश्न 15 - विदेह क्षेत्रों में कितने मलेच्छ खंड होते हैं?

उत्तर - 160 गुण 5 कुल 800 मलेच्छ खंड।

प्रश्न 16 - जम्बूद्वीप में कितने विद्यमान तीर्थंकर होते हैं? और कौन-कौन से?

उत्तर - (1) श्री सीमंधर जी
(2) श्री युगमंधर जी
(3) री बाहुजी एवं
(4) श्री सुबाहु जी ये चार तीर्थंकर।

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