चौबीस तीर्थंकर भगवान की मंगल आरती
मैं तो आरती उतारूं रे चौबीस जिनवर की।
जय जय चौबीस जिनवर, जय जय जय।।टेक.।।

पहली आरती करूं कैलाश, गिरिवर अनुपम की। गिरिवर अनुपम की।।
मुक्ति पाये जहां वृषभेश, नाभि के चन्दन की। नाभि के चंदन की।।
तीथ्र करतार कहे, युग के आधार रहे, महिमा है अपरम्पार।।
हो हो जिनकी महिमा है अपरम्पार।। मैं तो....................।।1।।

दूजी आरती करूं सिद्धक्षेत्र, चम्पापुरिवर की। चम्पापुरिवर की।।
वासुपूज्य जिनेश्वर ध्याय, वसुपूज्य नंदन की।। वसुपूज्य नंदन की।।
भक्ति करूं झूम-झूम, नृत्य करूं घूम-घूम, जीवन सुधारूं रे,
हो प्यारा-प्यारा जीवन सुधारो रे।। मैं तो..................।।2।।

तीजी आरती महागिरिराज, गिरिनार पर्वत की। गिरिनार पर्वत की।।
राहुल त्याग चले नेमिनाथ, सिद्धि को वरने को। सिद्धि को वरने को।।
दीक्षा ले साधु बने, मुक्ति के कांत बने सिद्धि लोक राजे जा,
हो हो सिद्ध लोक विराजे जा।। मैं तो...........................।।3।।

चैथी आरती करूं निर्वाण, पावापुरिवर की। पावापुरिवर की।।
त्रिशलानंदन हैं वीर महावीर, मुक्ति के स्थल की। मुक्ति के स्थल की।
कुण्डलपुर जन्म हुआ, कण-कण पवित्र हुआ, सिद्धार्थ के दरबार।
हो हो राजा सिद्धार्थ के दरबार।। मैं तो................।।4।।

पंचम आरती करूं उस तीर्थ, अद्भुत अनुपम की।। अद्भुत अनुपम की।।
सम्मेदश्खिर सिद्धक्षेत्र, बीस जिनेश्वर की।। बीस जिनेश्वर की।।
’चंदनामति’ आशा करूं, मन में विश्वास करूं, भक्ति करूं दिन रात।
हो हो प्रभु भक् करूं दिन रात।।मैं तो............................।।6।।