भगवान श्री पाश्र्वनाथ जिनपूजा
-अथ स्थापना -

(तर्ज-गोमटेश जयः गोमटेश मम हृदय विराजो................)

तीर्थंकर जय पाश्र्वनाथ, मम हृदय विराजो-2
हम यही भावना भाते हैं, प्रतिक्षण ऐसी रूचि बनी रहे।
हो रसना में प्रभु नाममंत्र, पूजा में प्रीती घनी रहे।।हम0।।

हे पाश्र्वनाथ आदो आवो, आह्वान आपका करते हैं।
हम भक्ति आपकी कर करके, आह्वान आपका करते हैं।
प्रभु ऐसी शक्ती दे दीजे, गुण कीर्तन में मति बनी रहे।।हम0।।

ऊँ ह्रीं श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् अह्वान्नां।
ऊँ ह्रीं श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थपनं।
ऊँ ह्रीं श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।

-अथ अष्टक-

आवो हम सब करें अर्चना, पाश्र्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-4।।
सुरगंगा का उज्ज्वल जल ले, प्रभु चरणों में त्रयधार करूं।
पुनर्जन्म का त्रास दूर हो, इसीलिए प्रभु ध्यान धरूं।।
भव भव तृषा मिटाने वाली, पूजा जिन भगवान की।।
।।जिनकी0।।वंदे जिनवरम्-4।।1।।
ऊँ ह्रीं श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्र जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा

आवो हम सब करें अर्चना, पाश्र्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-4।।
मलयागिरि का शीतल चंदन, केशर संग घिसाया है।
प्रभु के चरण कमल में चर्चत, भव संताप मिटाया है।।
तनम न को शीतल कर देती, अर्चा जिन भगवान की।।
।।जिनकी0।।वंदे जिनवरम्-4।।2।।
ऊँ ह्रीं श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्र संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा

आवो हम सब करें अर्चना, पाश्र्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-4।।
चिन्मय परमानंद आतमा, नहीं मिला इनिद्रय सुख में।
प्रभु को अक्षत पुंज चढ़ाते, सौख्य अखंडित हो क्षण में।।
इन्द्र सभी मिल करें वंदना, प्रभु के अक्षयज्ञान की।।
।।जिनकी0।।वंदे जिनवरम्-4।।3।।
ऊँ ह्रीं श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्र अक्ष्ज्ञयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा

आवो हम सब करें अर्चना, पाश्र्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-4।।
रतिपति विजयी पाश्र्वनाथ को, पुष्प चढ़ाऊं भक्ती से।
निज आत्मा की सुरभि प्राप्त हो, निजगुण प्रगटे युक्ती से।।
ब्रह्मर्षीसुर स्तुति करते, चिच्चैतन्य महान की।।
।।जिनकी0।।वंदे जिनवरम्-4।।4।।
ऊँ ह्रीं श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्र कामबाणविवंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा

आवो हम सब करें अर्चना, पाश्र्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-4।।
मालपुआ रसगुल्ला बरफी, जिनवर निकट चढ़ाते ही।
नाना उदर व्याधि विघटित हो, समरस तुप्ती प्रगटे ही।।
गणधर मुनिवर भी गुण गाते, महिमा जिन भगवान की।।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतम ज्ञान की।।
।।जिनकी0।।वंदे जिनवरम्-4।।5।।
ऊँ ह्रीं श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्र क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा

आवो हम सब करें अर्चना, पाश्र्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-4।।
केवलज्ञान सूय्र हो भगवान! मुझ अज्ञान हटा दीजे।
दीपक से मैं करूं आरती, ज्ञान ज्योति प्रगटित कीजे।।
चक्रवर्ति भी करें वंदना, अतिशय ज्योतिर्मान की।।
।।जिनकी0।।वंदे जिनवरम्-4।।6।।
ऊँ ह्रीं श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्र मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा

आवो हमस ब करें अर्चना, पाश्र्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-4।।
सुरभित धूप धूपघट में मैं, खेऊं सुरभि गगन फैले।
कर्म भस्म हो जाएं शीघ्र ही, जो हैं अशुभ अशुचि मैले।।
सम्यग्दर्शन क्षायिक होवे, मिले राह उत्थान की।।
।।जिनकी0।।वंदे जिनवरम्-4।।7।।
ऊँ ह्रीं श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्र निर्वपामीति स्वाहा

आवो हमस ब करें अर्चना, पाश्र्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-4।।
अनंनास मोस्सम्मी नींबू, सेव संतरा फल ताजे।
प्रभु के सन्मुख अर्पण करते, मिले मोक्षफल भव भाजें।।
जिनवंदन से निजगुण प्रगटे, मिले युक्ति शिवधाम की।।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतम ज्ञान की।।
।।जिनकी0।।वंदे जिनवरम्-4।।8।।
ऊँ ह्रीं श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्र अष्टकर्मदहनाय धूंप निर्वपामीति स्वाहा

आवो हमस ब करें अर्चना, पाश्र्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-4।।
जल गंधादिक अघ्र्य सजाकर, जिनवर चरण चढ़ा करके।
केवल ’’ज्ञानमती’’ सुख पाकर, बसं मोक्ष में जा करके।।
इसी हेतु त्रिभुवन जनता भी, भक्ति करे भगवान की।।
।।जिनकी0।।वंदे जिनवरम्-4।।9।।
ऊँ ह्रीं श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्र अनघ्र्यपदप्राप्तये अघ्र्य निर्वपामीति स्वाहा

-दोहा-

कनक भृंग में मिष्ट जल, सुरगंगा श्वेत।
जिनपद धारा करत ही, भवजल को जल देत।।10।।
शांतये शांतिधारा।

वकुल कमल चंपा सुरभि, पुष्पाजलि विकिरंत।
मिले निजातम संपदा, होवे भव दुःख अंत।।1।।
दिव्य पुष्पांजलिः।

-अथ स्थापना -
पंचकल्याणक अघ्र्य
(मण्डल पर पांच अघ्र्य)
अथ मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
वंदन शत शत बार हैं,
पाश्र्वनाथ के चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका गर्भ कल्याणक जजते, मिले सौख्य भंडार है।।
पाश्र्वनाथ.।।टेक0।।

अश्वसेन पितु वामा माता, तुमको पाकर धन्य हुए।
तिथि वैशाख वदी द्वितीया को, गर्भ बसे जगवंद्य हुए।।
प्रभु का गर्भकल्याणक पूजत, मिले निातम सार है।
पाश्र्वनाथ.।।1।।

ऊँ ह्रीं वैशाखकृष्णाद्वितीयायां श्रीपाश्र्वनाथजिनगर्भकल्याणकाय अघ्र्य निर्वपामीति स्वाहा

वंदन शत शत बार है,
पाश्र्वनाथ के चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका जन्मकल्याणक जजते, मिले सौख्य भंडार है।।
पाश्र्वनाथ.।।

पौष कृष्ण ग्यारस तिथि उत्तम, वाराणसि में जन्म हुआ।
श्री सुमेरू की पांडुशिला पर, इन्द्रों ने जिन न्वहन किया।।
जो ऐसे जिनवर को जजते, हो जाते भव पार है।।
पाश्र्वनाथ.।।2।।
ऊँ ह्रीं पौषकृष्णाएकादश्यां श्रीपाश्र्वनाथजिनजन्मकल्याणकाय अघ्र्य निर्वपामीति स्वाहा

वंदन शत शत बार है,
पाश्र्वनाथ के चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका जन्मकल्याणक जजते, मिले सौख्य भंडार है।।
पाश्र्वनाथ.।।

पौषवदी ग्यारस जाति स्मृति, से बारह भावन भाया।
विमलता पालकि में प्रभु को, बिठा अश्ववन पहुंचाया।।
स्वयं प्रभू ने दीक्षा ली थी, जजत मिले भव पार है।।
पाश्र्वनाथ.।।3।।
ऊँ ह्रीं पौषकृष्णाएकादश्यां श्रीपाश्र्वनाथजिनदीक्षाकल्याणकाय अघ्र्य निर्वपामीति स्वाहा

वंदन शत शत बार है,
पाश्र्वनाथ के चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका जन्मकल्याणक जजते, मिले सौख्य भंडार है।।
पाश्र्वनाथ.।।

चैत्रवदी सुचतुर्थी प्रातः देवदारू तरू के नीचे।
कमठ किया उपसर्ग घोर तब, फणपति पद्मावति पहुंचे।।
जित उपसर्ग केवली प्रभु का, समवसरण हितकार है।।
पाश्र्वनाथ.।।4।।
ऊँ ह्रीं चैत्रकृष्णाचतुथ्र्यां श्रीपाश्र्वनाथजिनकेवलज्ञानकल्याणकाय अघ्र्य निर्वपामीति स्वाहा

वंदन शत शत बार है,
पाश्र्वनाथ के चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका जन्मकल्याणक जजते, मिले सौख्य भंडार है।।
पाश्र्वनाथ.।।

श्रावण शुक्ल सप्तमी पारस, सम्मेदाचल पर तिष्ठे।
मृत्युजीत शिवकांता पायी, लोकशिखर पर जा तिष्ठे।।
सौ इन्द्रों ने पूजा करके, लिया आत्म सुखसार है।।
पाश्र्वनाथ.।।5।।
ऊँ ह्रीं श्रावणशुक्लासप्तम्यां श्रीपाश्र्वनाथजिनमोक्षकल्याणकाय अघ्र्य निर्वपामीति स्वाहा

-पूर्णाघ्र्य (दोहा)-

पाश्र्वनाथ पादाब्ज को, पूजूं बारम्बार।
पूर्ण अघ्र्य से जजत ही, पाऊं सौख्य अपार।।6।।
ऊँ ह्रीं श्रीपाश्र्वनाथ पंचकल्याणकाय पूर्णाघ्र्य निर्वपामीति स्वाहा
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।

जाप्य - ऊँ ह्रीं श्रीपाश्र्वनाथजिनेंद्राय नमः।
जयमाला

(शंभु छंद-तर्ज-चंदन सा वदन...............)

जय पाश्र्व प्रभो! करूणासिंधो! हम शरण तुम्हारी आये हैं।
जय जय प्रभु के श्री चरणों में, हम शीश झुकाने आये हैं।।टेक.।।

------------------------------------------ 1. उत्तरपुराण में भगवान पाश्र्वनाथ की केवलज्ञान कल्याणक तिथि चैत्र कृष्णा चतुर्दशी है।
------------------------------------------ नाना महिपाल तपस्वी बन, पंचाग्नी तप कर रहा जभी।
प्रभु पाश्र्वनाथ को देख क्रोधवश, लकड़ी फरसे से काटी।।
तब सर्प युगल उपदेश सुना, मर कर सुर पद को पाये हैं।।जय.।।1।।

यह सर्प सर्पिणी धरणपति, पद्मावति यक्षी हुए अहो।
नाना मर शंबर ज्योतिष सुर, समकित बिन ऐसी गती अहो।।
नहि ब्याह किया प्रभु दीक्षा ली, सुर नर पशु भी हर्षाये हैं।।जय.2।।

प्रभु अश्वबाग में ध्यान लीन, कमठासुर शंबर आ पहुंचा।
क्रोधित हो सात दिनों तक बहु, उपसर्ग किया पत्थर वर्षा।।
प्रभु स्वात्म ध्यान में अविचल थे, आसन कंपते सुर आये हैं।।जय.।।3।।

धरणेंद्र व पद्मावति ने फण पर, लेकर प्रभु की भक्ती की।
रवि केवलज्ञान उगा तत्क्षण, सुर समवसरण की रचना की।।
अहिच्छत्र नाम से तीर्थ बना, अगणित सुरगण हर्षाए हैं।।जय.।।4।।

यह देख कमठचर शत्रू भी, सम्यक्त्वी बन प्रभु भक्त बने।
मुनिनाथ स्वयंभू आदिक दश, गणधर थे ऋद्धीवंत घने।।
सोलह हजार मुनिराज प्रभू के, चरणों में शिर नाये हैं।।जय.।।5।।

गणिनी सुलोचना प्रमुख आर्यिका, छत्तिस सहस धर्मरत थीं।
श्रावक इक लाख श्राविकायें, त्रय लाख वहां जिन भक्तिक थीं।।
प्रभु सर्प चिन्ह तनु हरित वर्ण, लखकर रवि शशि शर्माये हैं।।जय.6।।

नव हाथ तुंग सौ वर्ष आयु, प्रभु उग्र वंश के भास्कार हो।
उपसर्ग जयी संकट मोचन, भक्तों के हित करूणाकार हो।।
प्रभु महा सहिष्णू क्षमासिंधु, हम भक्ती करने आये हैं।।जय.।।7।।

चैंतिस अतिशय के स्वामी हो, वर प्रातिहार्य हैं आठ कहे।
आनन्त्य चतुष्टय गुण छ्यालिस, फिर भी सब गुण आनन्त्य कहे।।
बस केवल ’ज्ञानमती हेतू, प्रभु तुम गुण गाने आये हैं।।
जय पाश्र्व प्रभो! करूणासिंधो! हम शरण तुम्हारी आये हैं।।जय.।।8।।
ऊँ ह्रीं श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णाघ्र्य निर्वपामीति स्वाहा
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।

-दोहा-

जो पूजें नित भक्ति से, पाश्र्वनाथ पदपद्म।
शक्ति मिले सर्वंसहा, होवे परमानंद।।1।।

।।इत्याशीर्वादः। पुष्पांजलिः।।