।। आहार शुद्धि ।।

jain temple291

जब बाल्टी पानी की सतह पर पहुंचे तब रस्सी को थोड़ा हिल दें। जिससे बाल्टी पलट जावे तथा जीवानी यथा स्थान सुरक्षित पहुंच जावे। फिर बाल्टी को ऊपर खींच लें तथा उस पर छना पानी डालकर धो लें।

ध्यान रहे जो वाला कड़ा है वो उस सिरे पर डाले जिससे कि पानी नहीं खींचते। अथवा जहां से पानी खींचते हैं वहीं ऊपर नीचे के कड़े से बाल्टी में हेंडिल तक के ऊपर ‘ै’ का कड़ा उसी रस्सी में फंसा है।

दुग्ध शुद्धि - स्वच्छ बर्तन में, प्रासुक जल से गाय भैंस के थनों को धोकर पोंछकर दूध दुहना चाहिए। और दूहने के पश्चात् ढंककर रख दें। और फिर दूसरे बर्तन में अच्छे छन्ने से छान कर 48 मिनिट के अंदर दूध को गर्म कर लेना चाहिए उबला दूध यदि बिगड़े नही ंतो 24 घंटे तक काम में ले लेना चाहिए।

दही शुद्धि:-उबले दूध को ठंडाकर बादाम या नारियल की नरेटी का एक छोटा टुकड़ा साफकर धोकर उसमें डालकर दही को जमाना चाहए।

दही जमने पर बादाम या नरेटी के टुकड़े धोकर रख दें जब दही जमाना हो फिर साफ करके डाल दें।

धृत शुद्धि:- शुद्धि दही से निकले मक्खन को तत्काल अग्नि पर रखकर गर्म कर धृत तैयार करना चाहिए इसमें से जलीय अंश पूर्ण निकल जाना चाहिए। यदिघी में जल का अंश रहा तो 24 घंटे के बाद अमर्यादित हो जाता है।

मक्खन को तत्काल गर्म कर लेनाचाहिए। जिससे जीवोत्पत्ति नहीं होती

तेल शुद्धि:- तेल भी साफ वस्तुओं से, साफ छने पानी से धोक ही छने पानी से धुली हुई मशीनों से ही निकालना चाहिए। ऐसे ही तेल का प्रयोग करना चाहिए।

खाण्ड (शक्कर) शुद्धि - बाजार से आई खाण्ड को साफ कर ले उसमें कोई छोटा जीव न हो। पश्चात् शुद्ध पानी में डालकर छानकर पकाकर बूरा बना लेते हैं।

वनस्पति शुद्धि:-

सब्जी, फलों को पहले प्रासक जल से धोकर ही चैके में ले जाना चाहिए।

फली वाली सब्जी को बीच से फाड़कर संशोधन करना चाहिए। डंठन आदि की जगह भी अच्छे से देखकर संशोधन करे।

सब्जी/फलों का जब तक स्वाद न बिगड़े तब तक ही उपयोग करना चाहिए।

फलों ने यदि सड़ना प्रारम्भ कर दि या है तब ऐसे फलों को उपयोग में नहीं लाना चाहिए।

jain temple292

ईधन शुद्धि:- आहार बनाने (पकाने) के लिए अच्छी सूखी एवं जीवों से रहित लकड़ी का ही ईंधन के रूप में उपयोग करना चाहिए। यदि हम लकड़ी लकड़ी को बिना देखें जल देते है तब उसमें चिपके या फंसे अनेक जीव हमारी असावधानी से मर जाते हैं। जिससे हिंसादोष लग जाता है।

वर्तनों की शुद्धि:- आहार बनाने में प्रयुक्त होने वाले बर्तन सूखे मंजे हो। यदि बर्तनों में गड्डे है या उनके होंठ इत्यादि ऐसे है जिनमें राख आदि भी जाती है उन्हें आहार चर्या में प्रयोग में नहीं लाना चाहिए। क्योंकि उनमें राख बगैरह लगी रहने के कारण अशुद्ध ही रहते हैं। सूखे बर्तनों को प्रासुक जल से धोकर पोंछकर ही चैके में प्रयोग करना चाहिए।

2. क्षेत्र शुद्धि:-

क्षेत्र शुद्धि के अन्तर्गत वह सभी क्षेत्र आ जाता है। जहां से प्रवेश कर साधु चैके में पहुंचते हैं। अर्थात् गृह और भोजनशाला का वह सम्पूर्ण भाग जहां से साधु आहार ग्रहण करने श्रावक के यहां आते हैं। उसको जीव जन्तुओं से रहित बना लेना चाहिए।

आहार जिस स्थान पर होना है उस स्थान पर प्रकाश की उचित व्यवस्था हो। तथा रसोई घर शौचालय से दूर होना चाहिए।

जिस मकान का छप्पर कच्चा अर्थात् खपरैल वाला हो वहां के उस पूरे स्थान पर जहां आहार बनाया गया है। और अतिथि को आहार कराना है। ऊपर चंदेवा बांध देना चाहिए। ऐसा करने से छप्पर से किसी प्रकार के अशुद्ध पदार्थ के गिरने की संभावना नहीं रहती।

3. काल शुद्धि:- आहार ग्रहण करने के लिए सूर्योदय के पश्चात् से सूर्यास्त हाने के पूर्व तक का काल उचित माना गया है। अर्थात् इसी समय में आहार को बनाना चाहिए और खाना चाहिए। अतः कृत्रिम प्रकाश में न खाना बनाना चाहिए और न ही खाना चाहिए।

4. भावशुद्धि:- भावशुदि - मनशुद्धि में समाहित हो जाती है अर्थात् - अतिथि के लिए भोजन बनाने से लेकर, आहार करवाने तक अपने मन को बिना किसी विकल्प के तैयार रखना चाहिए क्योंकि भावों का प्रभाव भी आसपास के वातावरण को प्रभावित करता है। निर्मल भावों से बनाया और अतिथि को खिलाया गया भोजन आपके पुण्य में और अतिथि के संयम में अकथनीय वृद्धि कर देता है। जिसका प्रभाव आने वाली सन्तानों पर धर्मानुकूल पड़ता है। इस प्रकार आहार दान कैसे दें इसकी भूमिका में आहार शुद्धि का विवेचन किया गया है।

2
1