।। आओ मंदिर चले ।।
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प्रश्न-65 लोक का अग्रभाग क्या है?

उत्तर- लोक का अग्र भाग मोख है यााइसेईषत् ग्राग्भार भूमि भी कहते हैं?

प्रश्न-66 आचार्य किसे कहते हैं?

उत्तर- जो शिक्षा-दीक्षा देते हैं। शिष्यों को प्रायश्चित (दण्ड) देकर शुद्ध करने में निपुण होते हैं। संधा के नायक होकर पंचा चार का पालन स्वयं करते और शिष्यों से कराते हैं। छत्ती समूल गुणों का पालन करते हैं वे आचार्य कहलाते हैं।

प्रश्न-67 पंचाचार क्या है?

उत्तर- पांच प्रकार का आचरण पंचाचार कहलाता है।

1. ज्ञानाचार-ज्ञान में निपुण।

2. दर्शनाचार-दर्शन, श्रद्धा, चिंतन में निपुण।

3. चरित्राचार-आचरण में निपुण।

4. तपाचार-तपस्या में निपुण।

5. वीर्याचार-आत्मशक्ति को जाग्रत करने में निपुण।

प्रश्न-68 साधु किसे कहते हैं?

उत्तर- जो नग्न दिगम्बर मुनि होकर, पिच्छी, कमण्डलु धारण कर मोक्ष मार्ग की साधना में लीन रहते हैं, केश लोच आदि 28 मूल गुणों का पालन करते हैं, उन्हें साधु कहते हैं।

प्रश्न-69 जिन चैत्य किसे कहते हैं?

उत्तर- चैत्य का अर्थ प्रतिमा होता है। जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमा या मूर्ति को जिनचैत्य कहते हैं।

प्रश्न-70 जिनचैत्यालय किसे कहते हैं?

उत्तर- चैत्यालय दो शब्दों सेमिल करबना हैं

चैत्य (प्रतिमा) $आलय (रहने का स्थान)

जहां जिन प्रतिमा या मूर्ति विराजमान हो उस पवित्र स्थान को जिन चैत्यालय (मंदिर) कहते हैं।

प्रश्न-71 चैत्यालय कितने प्रकार के होते हैं?

उत्तर- चैत्यालय दो प्रकार के होते हैं-

अकृत्रिम चैत्यालय-ये चैत्यालय चारों प्रकार के देवों के भवन, प्रासादों व विमानों तथा अन्य स्थल पर मध्य लोक में बिना किसी के बनाए स्वतः अनादि, अनिधन, शाश्वत हैं।

कृत्रिम चैत्यालय-इन्हें मनुष्य निर्मित करते हैं। ये मनुष्य लोक में होते हैं।

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प्रश्न-72 जिन आगम क्या है?

उत्तर- आप्त के वचनों को आगम कहते हैं।

आगम चार भागों में विभक्त है-

प्रथमानुयोग-पुराण-पुरूष, महापुरूष, तीर्थंकर, चक्रवर्ती आदि का जीवन-दर्शन।

चरणानुयो-मुनि और श्रावक के आचरण का वर्णन।

करणानुयोग-लोक की व्यवस्था, गणित कर्म सिद्धांत का वर्णन।

द्रव्यानुयोग-तत्व, द्रव्य, पदार्थों का वर्णन।

प्रश्न-73 आप्त किसे कहते हैं?

उत्तर- जिन्होंने आपने-आप को कर लिया हो प्राप्त, वे कहलाते हैं ‘आप्त’ अर्थात वीतराग, सर्वज्ञ, हितोपदेशी आप्त कहलाते हैं।

प्रश्न-74 जिन धर्म क्या है?

उत्तर- संसार में पड़े हुए जीवों की जो चतुर्गति रूप दुखों से रक्षा करके उत्तम स्थान (स्वर्ग, मोक्ष) में जो धरता है वह जिन धर्म है। जिनेन्द्र, द्वारा प्रति पादित सुख पाने के उपाय को िजन धर्म कहते हैं।

प्रश्न-75 पूजन का मुख्य उद्देश्य क्या हैं?

उत्तर- पूजन का मुख्य उद्देश्य आत्मशुद्धि एवं पूज्य के गुणों को प्राप्त कर, पूज्यता को उपलब्ध होना हैं

प्रश्न-76 पूजन कितने प्रकार की होती है?

उत्तर- पूजन मुख्य रूप् से दो प्रकार की होती है-
(1) द्रव्य पूजन (2) भाव पूजन

प्रश्न-77 द्रव्य पूजन क्या है?

उत्तर- जल, चंदन, अक्षत, पुष्प, नेवेद्य, दीप, धूप, फल आदि अष्ट द्रव्य चढ़ा कर भगवान का गुणानुवाद करना द्रव्य पूजन है।

प्रश्न-78 भाव पूजन क्या है?

उत्तर- अष्ट द्रव्य के बिना मन के जिनेन्द्र भगवान के स्तवन, स्तोत्र, भजन, कीर्तन, ध्यान आदि से गुणगान करना भाव पूजन है।

प्रश्न-79 द्रव्य पूजन और भाव पूजन करने का अधिकारी कौन है?

उत्तर- द्रव्य पूजन करने का अधिकारी श्रावक है, गृहस्थ है (द्रव्य पूजन में भी भावों की मुख्यता है)। भाव पूजन करने का अधिकारी श्रमण (साधु) है।

प्रश्न-80 क्या पूजन के और भी भेद हैं?

उत्तर- जिनागम में पूजन के पांच प्रकार हैं-
(1) नित्यमह पूजन (2) सर्वतोभद्र पूजन (3) कल्पदु्रम पूजन (4) अष्टान्हिका पूजन (5) इन्द्रध्वज पूजन

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