|| आरती - जय सन्मति देवा ||
जय सन्मति देवा प्रभु - जय सन्मति देवा |
वीर महा अति वीर प्रभुजी - वर्धमान देवा ||
|| जय सन्मति देवा ||
त्रिशला उर अवतार लिया प्रभु, सुर नर हर्षाये |
पंद्रह मास रतन कुण्डलपुर, धनपति बरसाए || जय || १ ||
शुक्ल त्रियोदशी चैत्र मास की, आनंद करतारी |
राय सिद्धारथ घर जन्मोत्सव, ठाठ रचे भारी || जय || २ ||
तीस बरस तक रहे घर में, बाल ब्रहमचारी |
राजत्याग कर भर योवन में, मुनि दीक्षा धारी || जय || ३ ||
द्वादश वर्ष तप किया दुर्दर, विधि चकचूर किया |
झलके लोकालोक ज्ञान में, सुख भरपूर लिया || जय || ४ ||
कार्तिक श्याम अमावस के दिन, आकर मोक्ष बसे |
पर्व दिवाली चला तभी से, घर घर दीप जले || जय || ५ ||
वीतराग सर्वज्ञ हितेषी, शिव मग परकाशी |
हरिहर ब्रह्मा नाथ तुम्ही हो, जय जय अवनाशी || जय || ६ ||
दीनदयाला जग प्रतिपाला, सुर नर नाथ भजे |
सुमरत विघन टारे एक दिन में, पातक दूर भजे || जय || ७ ||
चोर भील चांडाल उभारे, भव दुःख हरण तुही |
पतित जान “शिवराम” उभारो, हे जिन शरण गही || जय || ८ ||
 
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